काम आया भारत का दबाव: चीनी सेना हटी पीछे, जल्द एलएसी पर सामान्य होगी स्थिति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Photo Credit: ANI/File)

आखिर भारत का दबाव काम आया और चीन ने गलवान घाटी के तनाव वाले इलाके से अपने सैनिकों को 2 किलोमीटर पीछे हटा लिया है. 15 जून को इसी जगह खूनी संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. चीनी सैनिकों ने गलवान, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा से भी अपने कैंप पीछे हटाए हैं. चीनी भारी बख्तरबंद वाहन अभी भी गलवान नदी क्षेत्र में गहराई वाले क्षेत्रों में मौजूद हैं, जिन्हें शाम तक हटाये जाने की बात चल रही है. हालांकि अभी इस बारे में सेना का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक अच्‍छी शुरुआत है और जल्द ही स्थिति समान्य हो जाएगी.

चीनी सेना ने उन स्थानों से 1-2 किलोमीटर की दूरी पर टेंट, वाहनों और सैनिकों को हटा दिया है, जहां कोर कमांडर स्तर की वार्ता में असहमति पर सहमति व्यक्त की गई थी. वार्ता में यह भी तय किया गया था कि दोनों देश 72 घंटे तक एक-दूसरे पर नजर रखेंगे कि विवादित क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए जमीन पर क्या कदम उठाए गए हैं. हालांकि रविवार शाम तक पूर्वी लद्दाख में जमीन पर कोई डी-एस्केलेशन नहीं था, लेकिन सोमवार से कुछ आगे बढ़ने की उम्मीद जताई गई थी. सबसे पहले गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से ही चीनी सेना के पीछे जाने की उम्मीद थी. इसी के तहत आज सुबह चीनी सैनिकों के गलवान, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा से अपने कैंप पीछे हटाने की खबर मिली. भारतीय सेना बहुत सतर्कता से इस घटनाक्रम पर नजर रख रही है. गलवान घाटी को अब बफर जोन बना दिया गया है ताकि आगे फिर से कोई हिंसक घटना न हो.

प्रसार भारती की संवाददाता नंदिता के अनुसार गलवान के पेट्रोल 14 प्‍वाइंट में जो चीनी सैनिकों ने टेंट लगा रखे थे, उन्‍हें उखाड़ कर वहां से ले जा रहे हैं. लेफ्टनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीनी कमांडर लियो लिन के बीच वार्ता के बाद यह प्रक्रिया शुरू हुई है. उन्‍होंने बताया कि सेना की ओर से इस मूवमेंट की पुष्टि करने के बाद ही अधिकारिक जानकारी दी जाएगी.
सभी फॉरवर्ड एरिया से पीछे हटना पड़ेगा चीन को

मेजर जनरल (रिटायर्ड)  ध्रुव कटोच ने प्रसार भारती से बातचीत में कहा कि यह बहुत सकारात्मक घटना है और दोनों देशों के बीच रिश्‍तों को नॉर्मल बनाने की ओर बड़ा कदम भी. उन्‍होंने कहा, "एलएसी पर भारतीय सेना एक जगह पर तैनात है, चीनी सेना एक जगह पर और दोनों के बीच एक गैप है. दोनों की सेनाएं इस गैप में पेट्रोलिंग करती रहती हैं. लेकिन बीते कुछ दिनों में चीनी सेना ने इस प्‍वाइंट के पास टेंट लगा दिये और सशस्त्र वाहन लाकर खड़े कर दिये और सेना की टुकड़ी को तैनात कर दिया, जो कि प्रोटोकॉल के खिलाफ था. लेकिन दोनों देशों के जवानों के बीच हुई झड़प के बाद अब हम चीन पर विश्‍वास तब तक नहीं कर सकते, जब तक पुष्टि नहीं हो जाए."
रिटायर्ड मेजर जनरल ने आगे कहा कि चीनी सेना गलवान से तो पीछे हट रही है, अब हमें यह देखना होगा कि बाकी जगहों पर भी ऐसा करती है कि नहीं. उनको पेंगोंग सो से भी पीछे हटना है. हम मान कर चल रहे हैं कि वहां से भी हमें सकारात्मक खबर मिलेगी. प्रोटोकॉल के अनुसार चीन की सेना को सभी फॉरवर्ड एरिया से पीछे हटना पड़ेगा, जहां-जहां तम्‍बू गाड़ रखे हैं. इन जगहों से हटने को चीन का पहला कदम माना जाएगा, जबकि दूसरा कदम वो होगा, जिसमें उसे पीछे वाली पोजीशन से हटना होगा। आखिरी कदम होगा, जो रिजर्व फोर्स वो बाहर से लेकर आये हैं, उसे वापस ले जाएं.

मेजर जनरल कटोच ने कहा कि यह एक अच्छी शुरुआत जरूर हुई है, लेकिन यह मामला इतनी जल्दी समाप्त नहीं होने वाला है. अगर इस प्रकार से चलता रहा तो 2-3 हफ्ते में स्थिति सामान्‍य हो जाएंगी लेकिन अगर कोई समस्या बीच में आयी, तो एक से दो महीने तक लग सकता है.
6 जून को शुरू हुई वार्ता
लद्दाख की पूर्वी सीमा पर भारत और चीन के बीच चल रहे गतिरोध को खत्म करने के लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडर 6 जून को पहली बार आमने-सामने बैठे। चीन के मोलदो क्षेत्र में हुई इस बैठक के बाद लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने सेना मुख्यालय को भारत-चीन वार्ता से संबंधित एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। बैठक में लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने अपने चीनी समकक्ष दक्षिण शिनजियांग सैन्य क्षेत्र के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन से स्पष्ट रूप से पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे, गलवान घाटी, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में 'फिंगर-4 से फिंगर 8' क्षेत्र से कब्ज़ा हटाकर अप्रैल, 2020 की यथास्थिति बहाल करने को कहा था।

वार्ता के दौरान चीनी सेना पीएलए ने भी भारत की फीडर सड़कों और पुलों के निर्माण का कड़ा विरोध किया, जिस पर भारतीय पक्ष ने कहा कि चीनी घुसपैठ को खाली किया जाए और भारत सीमा पर अपने निर्माणों को नहीं रोकेगा. कुल मिलाकर दोनों देशों के बीच 2-2 किलोमीटर हटने की बात तय हुई थी. इस वार्ता में हुई सहमति जब जमीन पर नहीं उतरीं तो 15 जून को भारत-चीन के ब्रिगेडियर और कर्नल स्तर की वार्ता हुई जिसमें भी चीन ने गलवान घाटी के पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 से टेंट हटाने पर सहमति जताई. दिन में बैठक करने के बाद देर शाम चीनी सैनिक फिर वादे से मुकर गए और टेंट लगा दिए. इसी मुद्दे पर भारतीय सैनिक विरोध दर्ज कराते हुए पेट्रोलिंग पॉइंट 14 पर चीनी जवानों को पीछे धकेल रहे थे. उसी दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई.
इसी बीच चीन के सैनिकों ने अचानक लोहे की रॉड और पत्थरों से हमला कर दिया जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए. इस घटना के बाद 22 जून को कमांडर स्तर की दूसरे दौर की 11 घंटे तक हुई वार्ता में भारत ने चीन से दो टूक कहा कि पहले लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से अपने सेना हटाकर 2 मई से पहले की स्थिति बहाल करें, तभी आगे की बातचीत संभव है. भारत और चीन के कोर कमांडरों के बीच तीसरे दौर की वार्ता 29 जून को 12 घंटे हुई जिसमें चीन गलवान जैसी झड़प नहीं दोहराने पर सहमत हुआ. यह भी तय हुआ कि दोनों पक्ष चरणबद्ध तरीकों से सीमावर्ती क्षेत्रों से सैनिकों को हटाएंगे और बैठक में बनी सहमतियों पर दोनों देश 72 घंटों तक एक-दूसरे पर नजर रखेंगे.

तीसरे दौर की वार्ता में बनी सहमतियों के बावजूद चीन ने विवादित क्षेत्रों से पीछे हटना नहीं शुरू किया. इस बीच कूटनीतिक प्रयासों के तहत दो बार दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की वार्ता भी हुई. 3 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे के साथ लेह में सिन्धु नदी के तट पर 11,000 फीट की ऊंचाई पर सेना की पोस्ट नीमू पर पहुंचे और सेना के जवानों से बातचीत की. यहां से राजनीतिक दबाव बनाने के लिए ड्रैगन को एक निर्णायक और दृढ़ संदेश भेजा गया. इस तरह देखा जाए तो सैन्य, कूटनीतिक और राजनीतिक दबावों के चलते चीन पस्त हो गया और आज तीसरे दौर की वार्ता में बनी सहमतियों के अनुसार विवादित क्षेत्रों से पीछे हटना पड़ा.

भारत की ओर से अभी पेट्रोलिंग प्वाइंट-14 और 15, गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और फिंगर क्षेत्र सहित सभी चार विवादित क्षेत्रों से चीनी सैनिकों के हटने की निगरानी की जा रही है क्योंकि विभिन्न स्थानों पर निकासी की सीमा अलग-अलग है. लद्दाख में चीनी सैनिकों का पीछे हटना शुरू हो गया है जो पिछले 48 घंटों में गहन कूटनीतिक, सैन्य जुड़ाव और संपर्कों का परिणाम है.