General Bipin Rawat Death Anniversary: शौर्य और साहस का दूसरा नाम है दिवंगत जनरल बिपिन रावत, पाकिस्तान भी कांपता था, जानें उनके जीवन से जुडी दिलचस्प बातें

बतौर सीडीएस जनरल रावत पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व था और वे सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देख रहे थे.

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General Bipin Rawat Death Anniversary: शौर्य और साहस का दूसरा नाम है दिवंगत जनरल बिपिन रावत, पाकिस्तान भी कांपता था, जानें उनके जीवन से जुडी दिलचस्प बातें

बतौर सीडीएस जनरल रावत पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व था और वे सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देख रहे थे.

देश Abdul Kadir|
General Bipin Rawat Death Anniversary: शौर्य और साहस का दूसरा नाम है दिवंगत जनरल बिपिन रावत, पाकिस्तान भी कांपता था, जानें उनके जीवन से जुडी दिलचस्प बातें
सीडीएस बिपिन रावत की आज पहली बरसी हैं (IANS/Twitter)

भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ दिवंगत जनरल बिपिन रावत का हेलीकाप्टर एक साल पहले आज ही के दिन दुर्घटनाग्रस्त हुआ था. जनरल रावत भारतीय सेना के 27वें प्रमुख भी थे. 8 दिसंबर, 2021 को एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जनरल रावत, उनकी पत्नी मधुलिका और 12 सशस्त्र कर्मियों का निधन हो गया था. हादसे का शिकार हुए हेलीकॉप्टर को विंग कमांडर पृथ्वी सिंह उड़ा रहे थे. हेलीकॉप्टर सुलुर के आर्मी बेस से निकलने के बाद जनरल रावत को लेकर वेलिंगटन सैन्य ठिकाने की ओर बढ़ रहा था और सुलूर से करीब 94 किलोमीटर दूर हेलीकॉप्टर अचानक हादसे का शिकार हो गया.

सीडीएस जनरल रावत अपनी पत्नी और कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों व कर्मियों के साथ वेलिंग्टन में ‘डिफेंस सर्विसेज कॉलेज’ जा रहे थे, जहां वे थल सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे के साथ बाद में एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले थे. भारतीय सेना में उनकी चार दशक लंबी सेवा सदैव असाधारण बहादुरी से भरी रही और सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए वे हमेशा दो टूक लहजे में दुश्मन को चेताते रहते थे. दुश्मन देश की नापाक हरकतों पर उसे कड़े लहजे में चेतावनी देते हुए एक बार उन्होंने कहा था कि पहली गोली हमारी नहीं होगी लेकिन उसके बाद हम गोलियों की गिनती नहीं करेंगे. 16 मार्च 1958 को पौड़ी गढ़वाल के एक गांव में जन्मे बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सैन्य अधिकारी थे, जो 1988 में लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए थे.

आइए जानते हैं उनके जीवन से जुडी बड़ी बातें

गोरखा राइफल्स से की सैन्य करियर की शुरुआत

बिपिन रावत ने 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन से अपने सैन्य करियर की शुरुआत की थी और उसके बाद से उनका पूरा कैरियर उपलब्धियों से भरा रहा। 2011 में उन्होंने चौ. चरण सिंह यूनिवर्सिटी से मिलिट्री मीडिया स्टडीज में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। उन्हें उत्तम युद्ध सेवा मैडल, अति विशिष्ट सेवा मैडल, युद्ध सेवा मैडल, सेना मैडल, विदेश सेवा मैडल इत्यादि कई पदक मिले थे। उन्होंने 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए करगिल युद्ध में हिस्सा लिया था। इसके अलावा उन्होंने कांगो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन का नेतृत्व भी किया था और उस दौरान उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड का भी नेतृत्व किया था।

31 दिसम्बर, 2016 को संभाली भारतीय सेना की कमान

1 सितम्बर 2016 को उन्हें उप-सेना प्रमुख बनाया गया और 31 दिसम्बर 2016 को उन्होंने भारतीय सेना की कमान संभाली थी. उन्होंने सैन्य सेवाओं के दौरान एलओसी, चीन बॉर्डर तथा नॉर्थ-ईस्ट में लंबा समय गुजारा. पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी तथा पूर्वाेत्तर सहित अशांत क्षेत्रों में काम करने का उनका लंबा और शानदार अनुभव था. 2016 में उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद बिपिन रावत के नेतृत्व में 29 सितम्बर 2016 को पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी. उन्हें ऊंचाई पर जंग लड़ने (हाई माउंटेन वॉरफेयर) तथा काउंटर-इंसर्जेंसी ऑपरेशन अर्थात् जवाबी कार्रवाई के विशेषज्ञ के तौर पर जाना जाता था. सेना प्रमुख पद से रिटायरमेंट से एक दिन पहले ही 30 दिसम्बर 2019 को सरकार द्वारा उन्हें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाने की घोषणा की गई थी और 1 जनवरी 2020 को वे भारत के पहले सीडीएस बने थे.

युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं में तालमेल बढ़ाना था मुख्य उद्देश्य

बतौर सीडीएस जनरल रावत पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व था और वे सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देख रहे थे. सीडीएस के रूप में उनकी नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए त

देश Abdul Kadir|
General Bipin Rawat Death Anniversary: शौर्य और साहस का दूसरा नाम है दिवंगत जनरल बिपिन रावत, पाकिस्तान भी कांपता था, जानें उनके जीवन से जुडी दिलचस्प बातें
सीडीएस बिपिन रावत की आज पहली बरसी हैं (IANS/Twitter)

भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ दिवंगत जनरल बिपिन रावत का हेलीकाप्टर एक साल पहले आज ही के दिन दुर्घटनाग्रस्त हुआ था. जनरल रावत भारतीय सेना के 27वें प्रमुख भी थे. 8 दिसंबर, 2021 को एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जनरल रावत, उनकी पत्नी मधुलिका और 12 सशस्त्र कर्मियों का निधन हो गया था. हादसे का शिकार हुए हेलीकॉप्टर को विंग कमांडर पृथ्वी सिंह उड़ा रहे थे. हेलीकॉप्टर सुलुर के आर्मी बेस से निकलने के बाद जनरल रावत को लेकर वेलिंगटन सैन्य ठिकाने की ओर बढ़ रहा था और सुलूर से करीब 94 किलोमीटर दूर हेलीकॉप्टर अचानक हादसे का शिकार हो गया.

सीडीएस जनरल रावत अपनी पत्नी और कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों व कर्मियों के साथ वेलिंग्टन में ‘डिफेंस सर्विसेज कॉलेज’ जा रहे थे, जहां वे थल सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे के साथ बाद में एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले थे. भारतीय सेना में उनकी चार दशक लंबी सेवा सदैव असाधारण बहादुरी से भरी रही और सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए वे हमेशा दो टूक लहजे में दुश्मन को चेताते रहते थे. दुश्मन देश की नापाक हरकतों पर उसे कड़े लहजे में चेतावनी देते हुए एक बार उन्होंने कहा था कि पहली गोली हमारी नहीं होगी लेकिन उसके बाद हम गोलियों की गिनती नहीं करेंगे. 16 मार्च 1958 को पौड़ी गढ़वाल के एक गांव में जन्मे बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी सैन्य अधिकारी थे, जो 1988 में लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए थे.

आइए जानते हैं उनके जीवन से जुडी बड़ी बातें

गोरखा राइफल्स से की सैन्य करियर की शुरुआत

बिपिन रावत ने 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन से अपने सैन्य करियर की शुरुआत की थी और उसके बाद से उनका पूरा कैरियर उपलब्धियों से भरा रहा। 2011 में उन्होंने चौ. चरण सिंह यूनिवर्सिटी से मिलिट्री मीडिया स्टडीज में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। उन्हें उत्तम युद्ध सेवा मैडल, अति विशिष्ट सेवा मैडल, युद्ध सेवा मैडल, सेना मैडल, विदेश सेवा मैडल इत्यादि कई पदक मिले थे। उन्होंने 1999 में पाकिस्तान के साथ हुए करगिल युद्ध में हिस्सा लिया था। इसके अलावा उन्होंने कांगो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन का नेतृत्व भी किया था और उस दौरान उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड का भी नेतृत्व किया था।

31 दिसम्बर, 2016 को संभाली भारतीय सेना की कमान

1 सितम्बर 2016 को उन्हें उप-सेना प्रमुख बनाया गया और 31 दिसम्बर 2016 को उन्होंने भारतीय सेना की कमान संभाली थी. उन्होंने सैन्य सेवाओं के दौरान एलओसी, चीन बॉर्डर तथा नॉर्थ-ईस्ट में लंबा समय गुजारा. पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी तथा पूर्वाेत्तर सहित अशांत क्षेत्रों में काम करने का उनका लंबा और शानदार अनुभव था. 2016 में उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद बिपिन रावत के नेतृत्व में 29 सितम्बर 2016 को पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी. उन्हें ऊंचाई पर जंग लड़ने (हाई माउंटेन वॉरफेयर) तथा काउंटर-इंसर्जेंसी ऑपरेशन अर्थात् जवाबी कार्रवाई के विशेषज्ञ के तौर पर जाना जाता था. सेना प्रमुख पद से रिटायरमेंट से एक दिन पहले ही 30 दिसम्बर 2019 को सरकार द्वारा उन्हें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाने की घोषणा की गई थी और 1 जनवरी 2020 को वे भारत के पहले सीडीएस बने थे.

युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं में तालमेल बढ़ाना था मुख्य उद्देश्य

बतौर सीडीएस जनरल रावत पर तीनों सेनाओं में स्वदेशी साजो-सामान का उपयोग बढ़ाने का दायित्व था और वे सेना के तीनों अंगों के ऑपरेशन, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव, रसद पूर्ति तथा संयंत्रों में टूट-फूट संबंधी कार्य भी देख रहे थे. सीडीएस के रूप में उनकी नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य युद्ध की चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं में तालमेल को बढ़ाना था.

रक्षा सुधारों सहित विविध पहलुओं पर कर रहे थे काम

दरअसल आज दुनियाभर में सेनाओं में अत्याधुनिक तकनीकों के समावेश के चलते युद्धों के स्वरूप और तैयारियों में लगातार बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, ऐसे में देश की सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए बेहद जरूरी था कि तीनों सेनाओं की पूरी शक्ति एकीकृत होकर कार्य करे क्योंकि तीनों सेनाएं अलग-अलग सोच से कार्य नहीं कर सकती. दुश्मन के हमलों को नाकाम करने के लिए सेना के तीनों अंगों के बीच तालमेल होना बेहद जरूरी है. सेना के लिए रणनीति विकसित करने के अलावा सैन्य अधिकारियों और जवानों के बीच विश्वास बनाए रखना भी सीडीएस बिपिन रावत का महत्वपूर्ण दायित्व था और अपने सैन्य अनुभवों के आधार पर इन सभी दायित्वों को बखूबी निभाते हुए वे पहले सीडीएस के रूप में रक्षा सुधारों सहित सशस्त्र बलों से संबंधित विविध पहलुओं पर काम कर रहे थे। सीडीएस रहते सशस्त्र बलों और सुरक्षा तंत्र के आधुनिकीकरण में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा.

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