डॉ. राजेंद्र प्रसाद पुण्यतिथि: जानिए भारत के पहले राष्ट्रपति के बारे में कुछ रोचक बातें, देश के लिए दी थी ये कुर्बानी
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, (Photo Credit: Wikimedia Commons)

स्वतंत्र भारत में राष्ट्रपति को राष्ट्र का प्रथम नागरिक माना जाता है. उसके पास भारतीय सशस्त्र सेना का सर्वोच्च कमान भी होता है. राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा सम्पन्न होता है. 1950 में देश के पहले राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने दस वर्षों तक इस पद को गर्वान्वित किया. आज देश उनकी पुण्य-तिथि मना रहा है.

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (Rajendra Prasad) का जन्म सिवान (बिहार) के जिरादेई गांव में 3 दिसंबर को एक कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता महादेव सहाय और मां कमलेश्वरी देवी थीं. राजेंद्र प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा छपरा जिला स्कूल से शुरु हुई थीं. उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर कानून में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. उस समय बिहार में भी बाल-विवाह का काफी प्रचलन था. लिहाजा 12 वर्ष की उम्र में राजेन्द्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी नामक कन्या से हो गया. राजेंद्र प्रसाद शुरु से अत्यंत सरल, गंभीर एवं धर्मपरायण प्रवृत्ति के थे. उनकी हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी भाषा में अच्छी पकड़ थी.

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चंपारण आंदोलन से राजनीति में प्रवेश: उन दिनों बिहार में भारी तादात में अंग्रेजों द्वारा नील की खेती की जाती थी, लेकिन सरकार मजदूरों को उचित पारिश्रमिक नहीं देती थी. 1917 में महात्मा गांधी ने बिहार के इन मजदूरों की समस्याओं पर पहल की. इसी समय राजेंद्र प्रसाद जी पहली बार गांधी जी के संपर्क में आये. गांधी जी ने बिहार के नील की खेती करने वाले मजदूरों के पक्ष में एवं अंग्रेज सरकार की ज्यादती के खिलाफ चंपारण आंदोलन की शुरुआत की. राजेंद्र प्रसाद ने इस आंदोलन में गांधी जी का बढ़चढ़ कर साथ दिया. यही नहीं इसके अलावा कांग्रेस द्वारा सभी आंदोलनों में बिहार के इस सपूत ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

नमक सत्याग्रह में योगदान: इस समय तक राजेंद्र प्रसाद गांधी जी के काफी करीबी बन चुके थे. 1930 में शुरू हुए नमक सत्याग्रह आंदोलन में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एक तेज-तर्रार कार्यकर्ता के रूप में नजर आए. राजेंद्र प्रसाद की इस सक्रियता को देखते हुए गांधी जी ने उन्हें बिहार राज्य का प्रमुख बना दिया. उन्होंने नमक बेचकर धन की व्यवस्था की और अंग्रेजी सरकार द्वारा बनाए नमक कानून का उल्लंघन किया. लिहाजा उन्हें 6 माह की सजा हुई थी. नमक सत्याग्रह आंदोलन के बाद वह 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उसी शिद्दत से जुड़े रहे.

संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप पसंद नहीं: देश में गणतंत्र की स्थापना के साथ ही 26 जनवरी 1950 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने देश के पहले राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया. राष्ट्रपति के तौर पर वे 1950 से 1962 तक बने रहे. अपने कार्यकाल में उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया. हिंदू अधिनियम पारित करते समय डॉ राजेंद्र प्रसाद ने काफी कड़ा रुख अपनाया था. साल 1962 में राष्ट्रपति पद से हट जाने के बाद राजेंद्र प्रसाद को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया था.

संविधान निर्माण और बहन की अंत्येष्टि: 25 जनवरी के दिन आजाद भारत में संविधान लागू किए जाने की सारी औपचारिकताएं पूरी की जा रही थी. उसी समय डॉ राजेंद्र प्रसाद को उनकी बहन भगवती देवी की मृत्यु की खबर मिली. अगले दिन उन्हें बहन की अंत्येष्टि में शामिल होना था. लेकिन डॉ प्रसाद ने परिस्थितियों को देखते हुए सर्वप्रथम संविधान की स्थापना की रस्म पूरी की. क्योंकि मामला देश में लागू होने जा रही संविधान की थी. जब संविधान की सारी प्रक्रियाएं पूरी हो गईं, उसके बाद ही वे बहन के अंतिम संस्कार में शामिल हो सके.

1962 में राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के पश्चात डॉ राजेंद्र प्रसाद ने राजनीति से संन्यास ले लिया. उन्होंने जीवन के शेष दिन पटना के करीब स्थित एक आश्रम में बिताई. इसी आश्रम में 28 फरवरी को देश के प्रथम राष्ट्रपति ने जीवन की अंतिम सांस ली.