दिवाली 2018: देवभूमि उत्तराखंड में इस अंदाज में मनाई जाती है दिवाली, जानें बग्वाल के दिन भैलो नृत्य की विशेषता
उत्तराखंड में बग्वाल के दौरान भैलो नृत्य (Photo Credits- Facebook/YouTube)

भारत में हर त्योहार के कई रंग हैं, देश में एक ही त्योहार हर जगह कुछ अलग तरीके से मनाया जाता है. सभी त्योहारों की तरह दिवाली के भी देश भर में कई अलग-अलग रंग है. देवभूमि उत्तराखंड में दिवाली बेहद ही खास तरीके से मनाई जाती है. राज्य के गढ़वाली और कुमाउंनी लोगों का दिवाली मनाने का यह अंदाज अपने आप में बेहद ही अनूठा और रोमांचित होता है, यहां दिवाली को बग्वाल के नाम से जाना जाता है. उत्तराखंड की सभ्यता-संस्कृति यहां के रीति-रिवाज और त्योहारों को मनाने का तरीका बेहद ही निराला है.

दिवाली में देश भर में जहां दीप जलाए जाते हैं वहीं उत्तराखंड में इस दिन दीप जालाने के साथ-साथ भैलो खेलने का रिवाज है. भैलो खेलना राज्य की प्राचीन परंपरा है. भैलो खेलने के साथ-साथ लोग साथ में नृत्य करते हैं, गाते हैं और खुशियां बांटते हैं.

यह परंपरा उत्तराखंड में सदियों से चली आ रही है. इस दिन लोग भैलो खेलने के साथ ही उत्तराखंड की लोक संस्कृति में गुम हो जाते हैं. लोग समूहों में एकत्रित होकर पारंपरिक गीतों पर नृत्य करते हैं, जिसकी छटा देखते ही बनती है.

क्या है भैलो

भैलो का मतलब एक रस्सी से है, जो पेड़ों की छाल से बनी होती है. बग्वाल (दिवाली) के दिन लोग रस्सी के दोनों कोनों में आग लगा देते हैं और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं. भैला खेलने के लिए भ्यूंल (भीमल) की छाल के रेशों (स्योलु) से तैयार रस्सी (बेल) पर चीड़ की ज्वलनशील लकड़ी (छिल्ले) या भ्यूंल की सूखी टहनियों (क्याड़ा) के गुच्छों को बांधकर भैला तैयार किया जाता. इन भैलो को किसी ऊंचे सार्वजनिक स्थल पर मशाल की तरह जलाकर नाचते-गाते सिर के ऊपर गोल-गोल घुमाया जाता था. भैला खेलते हुए नाचते-गाते गांवभर में और गांव के चारों ओर घूमने का क्रम आधी रात के बाद भी चलता रहता है.

भैलो खेलते समय लोग गढ़वाली गीत गाते हैं, ढोल दमाऊ की थाप के साथ यह गीत इस माहौल में चार चांद लगा देते हैं, वातावरण में ये गीत इस मिठास से घुलते मानों प्रकृति ने खुद गाए हों. 'झिलमिल-झिलमिल, दिवा जगी गैनि, फिर बौड़ी ऐ ग्ये बग्वाल जैसे लोकगीत इस अवसर पर प्रचलित हैं.

क्या हैं विशेष पकवान

उत्तराखंड में बग्वाल के दिन हर घर में स्वाले, दाल के पकौड़े, भरे स्वाले, अरसा, रूटाना आदि पकवान बनाए जाते हैं. इसके अलावा झंगोरा, बाड़ी (मंडुवे का फीका हलुवा) और जौ के आटे से लड्डू तैयार कर उन्हें परात या थाली पर सजाया जाता है. इस थाली को बग्वाली फूलों (चौलाई के फूल) से सजाया जाता है. गोवंश के पैर धोकर धूप-दीप से उनकी आरती उतारी जाती है और टीका लगाने के बाद उनके सींगों पर तेल लगाया जाता है. इसके उपरांत उनको श्रद्धापूर्वक परात में सजा अन्न ग्रास दिया जाता है.