APJ Abdul Kalam Jayanti 2023: अखबार बेचने से मिसाइल-मैन बनने तक की कुछ रोचक एवं प्रेरक प्रसंग!
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जयंती 2023 (Photo Credits: Instagram)

APJ Abdul Kalam Jayanti 2023 स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक के सर्वाधिक योग्य, प्रतिष्ठित एवं प्रतिभावान राष्ट्रपति रहे हैं, डॉक्टर अबुल पाकिर जैनलाब्दीन अब्दुल कलाम. दुनिया उन्हें मिसाइल मैन के नाम से भी जानती है. अब्दुल कलाम महान वैज्ञानिक, विचारक, और युवाओं के आदर्श के रूप में भी पहचान रखते हैं. उनकी प्रतिभा, साहस और समर्पण के कारण ही भारत परमाणु शक्ति वाले देशों में शुमार हो सका है. अत्यंत साधारण, मेहनतकश और विनम्र परिवार में पैदा हुए और अखबार बेचकर स्कूल फीस की व्यवस्था करने वाले अब्दुल कलाम की 92 वीं जयंती पर आइये जानते हैं सिफर से शिखर छूने वाले इस महान शख्सियत के जीवन से जुड़े कुछ रोचक एवं प्रेरक प्रसंग..   यह भी पढ़े: APJ Abdul Kalam Birth Anniversary 2023 Quotes: ‘मिसाइल मैन’ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जयंती पर शेयर करें उनके ये 10 प्रेरणादायी विचार

माँ और पिता से विरासत में मिली ये चीजें

  अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम (तमिलनाडु) में एक मिडिल क्लास परिवार में हुआ था. पिता जैनुलाबदीन स्थानीय ठेकेदार के साथ मिलकर लड़की की नाव बनाते थे, जो हिंदू तीर्थयात्रियों को रामेश्वरम से धनुषकोडी ले जाती थी. माँ आशियम्मा को आदर्श मानने वाले कलाम को ईश्वर में विश्वास और करुणा का भाव माँ से तथा ईमानदारी और अनुशासन पिता से विरासत में मिली थी.

कलाम ने सीखा कि लीडर कैसा होना चाहिए

  1979 में कठिन परिश्रम के बावजूद कलाम का SLV-3 सैटेलाइट फेल गया. कलाम निराश हो गये. उनके लीडर सतीश धवन ने उन्हें मीडिया के सामने बुलाया और प्रोजेक्ट की असफलता की जिम्मेदारी स्वयं ली, लेकिन वादा किया कि उनकी टीम एक साल के भीतर इसी प्रोजेक्ट को लांच करेगी. कलाम को एक साल का समय दिया गया. कलाम रात-दिन मेहनत कर जुलाई 1980 में सैटेलाइट रोहिणी लांच करने में सफल रहे. सतीश धवन ने अब्दुल कलाम को पुनः मीडिया के सामने बुलाया, बताया कि किस तरह मि. कलाम की कठिन परिश्रम रंग लाई है. कलाम सतीश शर्मा की तरफ देखते रह गये और तब उन्होंने सीखा कि लीडर में क्या गुण होना चाहिए.

जब अपनी ही सगाई में जाना भूल गए

एक बार अब्दुल कलाम ने बताया था कि उनके एक गुरु ने उन्हें भागवत गीता दिया था, जिसे पढ़कर वे बहुत प्रभावित हुए थे. गीता की एक पंक्ति कठिनाइयां आएंगी और चली जाएंगी को उन्होंने अपने जीवन का सूत्र बना लिया था. उन दिनों अब्दुल कलाम 32 वर्ष के थी, वह अपने प्रोजेक्ट एसएलवी-3 सैटेलाइट की तैयारी में बुरी तरह मशगूल थे. और भी तमाम तनाव उनके जीवन में थे. काम में व्यस्त कलाम अकसर खाना-पीना भूल जाते थे, उसी दरमियान उनकी सगाई तय हो गई. लेकिन अपने प्रोजेक्ट में इस कदर डूबे हुए थे कि वह अपनी सगाई में जाना भूल गए.

जब न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर हुए थे उत्पीड़न का शिकार

 80 वर्षीय एपीजे कलाम कई कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए न्यूयॉर्क गये हुए थे. 29 सितंबर को भारत वापस लौटते समय न्यूयॉर्क के जेएफके हवाई अड्डे पर अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों द्वारा जैकेट और जूते उतरवाकर उत्पीड़ित किया गया. इसके बाद विमान में अपनी सीट पर बैठने के बाद जेएफके एयरपोर्ट अधिकारी दुबारा अंदर आए और राष्ट्रपति को एक बार फिर से चेकिंग की गई. सभी भारतीयों एवं एयर इंडिया अधिकारियों ने इस जघन्य कृत्य का कड़ा विरोध किया था.

पोखरण परीक्षण विवाद

11 मई 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुए पोखरण परीक्षण द्वितीय मामले पर साइट परीक्षण के निर्देशक के संथानम ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर विवाद पैदा किया था कि थर्मोन्यूक्लियर बम वास्तव में एक फिसल परीक्षण था, लेकिन अब्दुल कलाम ने उनके दावों को सिरे से खारिज कर दिया. पोखरण द्वितीय के एक अन्य प्रमुख सहयोगी आर चिदंबरम ने भी के संथानम के दावों को गलत प्रमाण कर दिया.  

कलाम ने बच्चों को समझाया शब्दों का महत्व

एक बार डॉ कलाम बच्चों के बीच अपने बचपन का जिक्र करते हुए बताया, - तब मैं बहुत छोटा था. मां हमारे लिए खाना बनाती थी. एक रात मां ने सब्जी-रोटी बनाई और पिताजी को परोसी. मैंने देखा रोटियां काफी जली हुई थी. लेकिन पिताजी ने रोटियां बड़े आनंद से खाई. मैंने देखा था कि मां ने जली रोटियों के लिए पिताजी से माफी मांगी थी. पिताजी ने मुस्कुराकर कहा था, मुझे जाली रोटियां भी पसंद हैं. अगले दिन मैंने पिताजी से पूछा, - आपको जली रोटियां वाकई पसंद हैं. पिताजी ने कहा नहीं, लेकिन एक जली रोटी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकतीलेकिन जले शब्द बहुत कुछ बिगाड़ सकते हैं.

निधन

   27 जुलाई 2015 में कलाम शिलांग (मेघालय) के आईआईएम कॉलेज में लेक्चर दे रहे थे, तभी उन पर खतरनाक दिल का दौरा पड़ा. वे वहीं गिर पड़े. उन्हें तुरंत अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टर ने उन्हें मृत्यु घोषित कर दिया. कहा जाता है कि उनके पैतृक निवास रामेश्वरम में उनकी अंतिम यात्रा में करीब साढ़े तीन लाख लोगों ने हिस्सा लिया था.