नये साल के तीसरे दिन यानी 3 जनवरी को संपूर्ण देश में प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है. सावित्रीबाई फुले ने नारी मुक्ति संदर्भ में न केवल नारी जगत को प्रशिक्षित करने का कार्य किया, बल्कि नारी सशक्तिकरण और वर्ण भेदभाव मिटाने में भी अहम भूमिका निभाई थी.
नारी शिक्षा एवं नारी सशक्तिकरण की दिशा में अपना सर्वस्व अर्पण करने वाली सावित्रीबाई फुले की 3 जनवरी 2024 को 192 वीं जयंती मनाई जाएगी. महिला शिक्षा की गंगोत्री कही जाने वाली सावित्रीबाई फुले का जन्म सतारा स्थिति नायगांव में 3 दिसंबर 1831 को हुआ था. इनके पिता खंडोजी नेवसे पाटिल गांव के पाटिल थे, और माँ लक्ष्मीबाई आम गृहिणी थीं. सावित्रीबाई का जन्म ऐसे समाज और काल में हुआ था, जब महिलाओं को न शिक्षा हासिल करने का अधिकार था, ना ही किसी तरह की आजादी थी. सावित्रीबाई जब मात्र नौ वर्ष की थीं, तब उनका विवाह 13 वर्षीय ज्योतिबा फुले से कर दिया गया. पति के सहयोग एवं समर्पण के कारण ही सावित्रीबाई न केवल शिक्षा हासिल की, बल्कि समस्त नारी जाति को प्रशिक्षण देने में सफल रहीं. आइये जानते हैं सावित्रीबाई के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य.
पिता के सामने खाई कसम
सावित्रीबाई को बचपन से पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था, लेकिन उन दिनों स्त्री-शिक्षा का सर्वत्र विरोध था. बालपन की बात है, एक दिन वह अंग्रेजी की किताब के पन्ने पलट रही थीं, उनके पिता खण्डोजी की नजर जब सावित्रीबाई पर पड़ी, तो वह क्रोधित होकर उसके हाथ से पुस्तक छीनकर घर से बाहर फेंक दिया. उनका कहना था, कि शिक्षा पर केवल उच्च जाति के पुरुषों का अधिकार है. यही वह समय था, जब सावित्रीबाई ने कसम खाई कि वह एक दिन पढ़ेंगी, और दूसरी औरतों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगी. अंततः वह अपने सपने साकार करने में सफलता हासिल की.
महिला शिक्षा के विरोधी उन पर पत्थर गोबर फेंकते थे
ज्योतिबा फुले जब महिलाओं को पढ़ाने स्कूल जातीं तो अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी लेकर जाती थीं, क्योंकि जाते समय महिला शिक्षा का विरोध करने वाले उन पर गोबर, पत्थर और कीचड़ फेंकते थे. स्कूल पहुंचकर वे अपने साथ रखी साड़ी पहन लेतीं, लेकिन उन्होंने कभी स्कूल जाने में कोताही नहीं बरती.
सत्यशोधक के माध्यम से साहित्य सेवा
पति ज्योतिराव के साथ सावित्रीबाई फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की, लेकिन ज्योति राव की अचानक मृत्यु के बाद सावित्रीबाई ने पति के सपनों को साकार करने हेतु सत्यशोधक आंदोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी स्वयं ली. 1893 में सासवड में आयोजित 'सत्यशोधक परिषद' की अध्यक्षता सावित्री बाई ने की. उन्होंने साहित्य के माध्यम से अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाया.
9 छात्राओं के साथ विद्यालय की स्थापना की
03 जनवरी 1848 को सावित्रीबाई ने पुणे में अपने पति के साथ विभिन्न जातियों की 9 छात्राओं के साथ महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की. इसके पश्चात एक वर्ष के भीतर पति-पत्नी ने 5 नये विद्यालय शुरू करने में सफल रहे. उनकी सफलता को तब और चार चांद लग गये, जब तत्कालीन सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया.
समाज सेवा बनी मौत का कारण
साल 1897 में पुणे में बुरी तरह प्लेग फैल गया था. प्लेग की इस महामारी में सावित्रीबाई फुले बड़े निस्वार्थ एवं समर्पण के साथ मरीजों की सेवा करती थी. सेवा करते हुए सावित्रीबाई फुले पांडुरंग बाबाजी गायकवाड के बेटे को प्लेग से बचाने के लिए उसके संपर्क में आईं और इस वजह से वे भी प्लेग का शिकार बन गईं. इस कारण 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु हो गई.