Savitribai Phule Jayanti 2023: देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले के जीवन के 6 रोचक एवं प्रेरक प्रसंग!
Savitribai Phule Jayanti 2023 (Photo: file photo )

   भारत की पहली सामाजिक कार्यकर्ता एवं महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) का जन्म 3 जनवरी 1831 को सतारा (महाराष्ट्र) स्थित नायगांव में हुआ था. वह मां लक्ष्मी और पिता खंडोजी नेवसे पाटिल की सबसे बड़ी बेटी थीं. उन दिनों दलित महिलाओं को सीमित दायरे में रखा जाता था. शिक्षा के प्रति रुझान होते हुए भी वे पढ़-लिख नहीं सकी थीं, लेकिन शादी के बाद पति ज्योतिराव फुले के सहयोग से उन्होंने शिक्षा हासिल करने के साथ-साथ गांव की महिलाओं को भी शिक्षा के लिए प्रेरित किया. नववर्ष की 3 जनवरी को देश में उनकी 192 वीं जयंती मनायी जायेगी. इस समय देश में चर्चा है कि 3 जनवरी को महिला शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए. आइये जानते हैं देश की पहली शिक्षिका के जीवन से जुड़े कुछ रोचक और प्रेरक तथ्य.

विवाह के वक्त अशिक्षित थीं!

  सावित्री बाई का विवाह मात्र 9 वर्ष की उम्र में ज्योतिराव फुले से हो गई थी. शादी के समय सावित्रीबाई फुले अशिक्षित थीं, लेकिन विवाह के पश्चात पति के लिए खेत में खाना खिलाने के वक्त पति की मदद और खुद की लगन से प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, और आगे चलकर देश की पहली शिक्षिका होने का गौरव हासिल किया. यह भी पढ़ें : Savitribai Phule Quotes 2023: सावित्रीबाई फुले जयंती पर उनके ये महान विचार WhatsApp Stickers, HD Wallpapers के जरिए भेजकर दें शुभकामनाएं

देश में पहली महिला स्कूल की शुरुआत की

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर 18 महिला स्कूल शुरू किया. साल 1848 में पुणे (महाराष्ट्र) के भिडेवाडा में देश का पहला बालिका स्कूल की स्थापना की गई थी. इसके बाद महाराष्ट्र में अन्य 16 महिला स्कूल खोलने के बाद पुणे में 18वां स्कूल खोला गया. उन दिनों ऐसी उपलब्धि अर्जित करना इतना आसान नहीं था.

क्यों फेंके जाते थे उन पर पत्थर और गोबर?

 19वीं सदी में पिछड़ी जाति की महिलाओं को शिक्षा हासिल करना और सामाजिक गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना असंभव था. कहा जाता है कि सावित्रीबाई फुले जब पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थरों से मारते उन पर गोबर और कीचड़ फेंकते कि वे स्कूल तक न जा सकें. सावित्रीबाई हमेशा अपने बैग एक अतिरिक्त साड़ी रखतीं और स्कूल जाकर गंदी साड़ी बदलती थीं.

बाल-हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना!

 सावित्रीबाई फुले ने समाज में स्त्री विरोधी कुप्रथाओं मसलन सती-प्रथा, बाल-विवाह और विधवा-विवाह निषेध के खिलाफ आवाज उठाई. 28 जनवरी 1853 को उन्होंने गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए बाल-हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की, और जीवनपर्यंत उसी के लिए लड़ती रहीं. उन दिनों एक महिला द्वारा उठाया अत्यंत साहसिक कदम थे.

कविता के माध्यम से शिक्षा एवं समाज के प्रति जागृति करने का प्रयास

  सावित्रीबाई शिक्षा और समाज सेवा में जागृति लाने के लिए कविताएं भी लिखती थीं. उनकी ऐसी ही एक कविता है,

वाचा-लिहा, स्वावलंबी व्हा, मेहनती व्हा, काम करा-ज्ञान आणि संपत्ती गोळा करा, ज्ञानाशिवाय सर्व काही नष्ट होते, ज्ञानाशिवाय आपण प्राणी बनतो, म्हणून निष्क्रिय बसू नका, जा, जा आणि अत्याचारित आणि सोडून दिलेल्यांकडून शिकून घ्या. दु:खांनो, तुम्हाला शिकण्याची सुवर्ण संधी आहे, म्हणून शिका आणि जातीचे बंधन तोडून टाका, ब्राह्मणांची पुस्तके लवकरात लवकर फेकून द्या.

अर्थात

जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर. बनो मेहनती काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो. ज्ञान बिना सब खो जाता है ज्ञान बिना हम जानवर बन जाते है इसलिए,खाली ना बैठो,जाओ जाकर शिक्षा लो दमितो और त्यागते हुए लोगों के दुखों का अंत करो. तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है इसलिए सीखो और जाति-बंधन तोड़ दो ब्राह्मणों के ग्रंथ यथाशीघ्र फेंक दो

सत्यशोधक समाज की स्थापना!

पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने 24 सितंबर 1873 सत्यशोधक समाज की स्थापना की. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा की भी शुरुआत की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा विवाह 25 दिसंबर 1873 को कराया गया. 28 नवंबर 1890 को ज्योतिबा फुले को बीमारी के चलते मृत्यु हो गई.