Women Facing Discrimination: पूर्वाग्रह के चलते अब भी पक्षपात का सामना कर रही हैं महिलाएं
No Women Facing Discrimination ( Photo Credit: Twitter)

सान फ्रांसिस्को, दो अप्रैल: (द कन्वरसेशन्स) अगर आप किसी बड़ी कंपनी, विश्वविद्यालय या बड़े संगठन में काम करते हैं तो संभवत: आपने कार्यस्थल पर लैंगिक और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ लड़ने से जुड़े अनिवार्य प्रशिक्षण सत्र में भी हिस्सा लिया होगा. नियोक्ता डीईआई नीति के नाम से प्रसिद्ध... विविधता, समानता और समावेशीकरण को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. लेकिन, अध्ययनों की मानें तो इन प्रयासों का अनजाने में किए जाने वाले भेदभाव पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है और अंत में बढ़ते-बढ़ते यह स्पष्ट भेदभाव में बदल जाता है. यह भी पढ़ें: UPI Payment: यूपीआई भुगतान प्रणाली ढांचे के वित्तपोषण को 0.3 प्रतिशत का शुल्क लगा सकती है सरकार- अध्ययन

मैं पेशे से प्रोफेसर और भौतिकीविद हूं और विश्वविद्यालय में 30 साल से काम कर रही हूं. मैं मेडिसिन और विज्ञान के क्षेत्र में भी भेदभाव के बारे में पढ़ती हूं और बोलती हूं. ज्यादातर महिला सहकर्मियों की तरह, अपने पूरे करियर में कई मौकों पर मैंने भी व्यक्तिगत रूप से लैंगिक भेदभाव को देखा और महसूस किया है.

लेकिन, हाल के वर्षों में दो बातें बदली हैं. पहली, आधुनिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्रभावी हस्तक्षेप पर वर्षों के अध्ययन का प्रभाव दिखने लगा है. दूसरा, मैं देख रही हूं कि लोगों में भी धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है और अब लोग पहले के मुकाबले भेदभाव और प्रताड़ना आदि से निपटने में ज्यादा मुखर हैं.

अगर इन बदलावों को एक साथ देखें तो इससे मुझे आशा दिखी है कि संभवत: चिकित्सा क्षेत्र भी भेदभाव के खिलाफ लड़ाई की दिशा में प्रगति करने का प्रयास कर रहा है.

मैंने यह समझने के लिए एक अध्ययन किया कि आखिरकार ऐसा क्या है जो महिलाओं को उनके करियर में पीछे खींच रहा है, मैंने मेडिसिन शिक्षा से जुड़े क्षेत्र के उच्च पदस्थ लोगों सहित 100 से ज्यादा पुरुषों और महिलाओं से इस बारे में बात की. मेरे अध्ययन में दर्जनों लोगों ने मुझे ‘डीईआई’ (विविधता, समानता, समावेशीकरण) नीतियों के बारे में कहानियां बतायीं, मंशा सही होने के बावजूद उसके परिणाम अच्छे नहीं मिल रहे हैं.

उदाहरण के लिए नियोक्ता समिति को प्रोत्साहित किया जाता है कि वह किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों की संख्या में विविधता रखे. मेरे अध्ययन में मैंने पाया कि किसी महिला या कम प्रतिनिधित्व वाले समूह के किसी व्यक्ति को नियुक्ति देने या उसे पदोन्नत करने को नियोक्ता समिति ‘‘कोटा पूरा करने’’ या ‘‘छवि अच्छी बनाने वाले कदम’’ के रूप में देखती है और समिति ऐसे कदमों को पद के लिए सर्वोत्तम अभ्यर्थी के चयन की उनकी क्षमता पर दबाव डालना समझती है.

मैंने जिन लोगों से बातचीत की थी, उनमें से एक पुरुष संकाय सदस्य ने दावा किया कि उनकी नयी सहकर्मी को ‘‘सिर्फ महिला होने के कारण’’ नियुक्ति दी गई है, जबकि उसके पास योग्यता अन्य पुरुष अभ्यर्थियों के मुताबिक ही योग्यता थी. ऐसी प्रतिक्रिया बहुत बड़ी वजह है कि नीतियों को लागू करने के बावजूद समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है और महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम पदोन्नति मिल रही है.

यह भी स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष लैंगिक भेदभाव भी हो रहा है. 2021 में मैंने जो अध्ययन प्रकाशित किया था, उसमें मुझे लोगों ने बताया था कि कैसे एक विभाग के पुरुष प्रमुख ने महिला सहकर्मी के डेस्क पर कुत्ते का पट्टा रख दिया था और कैसे एक उच्च पद के लिए आयी महिला अभ्यर्थी को नियोक्ता समिति के प्रमुख से ‘‘हंसमुख’’ (वार्म एंड फजी) नहीं होने के लिए आलोचना झेलनी पड़ी थी.

प्रशिक्षण ऐसे भेदभाव को खत्म करने में असफल हो रहे हैं.

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