यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों में भारत और चीन भी शामिल
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस के खिलाफ 15वां प्रतिबंध पैकेज लागू किया है जिसमें चीन और भारत की कंपनियों को भी शामिल किया गया है.रूस की अर्थव्यवस्था और युद्ध क्षमता को कमजोर करने के मकसद से यूरोपीय संघ ने नए प्रतिबंध लगाए हैं. इन प्रतिबंधों में रूस के "शैडो फ्लीट" के अलावा तकनीकी आपूर्ति पर नियंत्रण और भारत, चीन, ईरान जैसे देशों की कंपनियों पर प्रतिबंध शामिल हैं.

यूक्रेन युद्ध के चलते ईयू ने रूस की "शैडो फ्लीट" के कई और जहाजों को प्रतिबंध सूची में जोड़ा है. ये जहाज प्रतिबंधों को नजरअंदाज कर रूसी तेल, हथियार और यूक्रेन से चुराया गया अनाज ले जाते हैं.

यूरोपीय आयोग के मुताबिक, इनमें से 33 जहाज रूसी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की ढुलाई कर रहे थे. अब कुल 43 जहाज ईयू के प्रतिबंधों के दायरे में आ गए हैं. ये जहाज पश्चिमी देशों द्वारा तय कीमत सीमा को तोड़ते हुए व्यापार कर रहे थे.

"शैडो फ्लीट" को लेकर पश्चिमी देशों की चिंता बढ़ रही है क्योंकि ये जहाज पारंपरिक नियमों और बीमा प्रणाली से बाहर काम करते हैं. इनमें कुछ जहाजों ने रूस के लिए उत्तर कोरिया से हथियार भी पहुंचाए हैं.

भारत और चीन पर नजर

इस बार ईयू ने चीन की 7 कंपनियों और व्यक्तियों को भी प्रतिबंध सूची में शामिल किया है. यह पहली बार है जब चीन पर यात्रा प्रतिबंध और संपत्तियों की जब्ती जैसे कड़े कदम उठाए गए हैं. ईयू का कहना है कि ये कंपनियां रूसी सेना को ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की आपूर्ति कर रही थीं. चीन और रूस के संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं.

लेकिन चीन ही नहीं, भारत, ईरान, सर्बिया और यूएई की कंपनियों और व्यक्तियों को भी निशाना बनाया गया है. इन पर आरोप है कि ये रूस की मदद के लिए प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रही हैं. खासकर भारतीय कंपनियों पर ये आरोप है कि वे रूस को संवेदनशील सामान जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और मशीनरी सप्लाई कर रही हैं, जो रूस की हथियार निर्माण प्रक्रिया में काम आ रहे हैं. हाल ही में अमेरिका ने भी भारत पर ऐसे ही प्रतिबंध लगाए थे.

भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ रुख अपनाया है और रूस से सस्ता तेल खरीदता आ रहा है. लेकिन ईयू द्वारा भारतीय संगठनों पर प्रतिबंध लगाने से यह साफ हो गया है कि पश्चिमी देशों का भारत पर दबाव बढ़ रहा है.

आर्थिक और ऊर्जा क्षेत्र पर असर

ईयू ने वित्तीय क्षेत्र में भी कड़े कदम उठाए हैं. ये कदम बेल्जियम की यूरोक्लियर जैसी संस्थाओं की मदद करेंगे, जो रूस की फ्रीज हुई संपत्तियों की देखरेख करती हैं.

इसके अलावा, दुबई स्थित पैरामाउंट एनर्जी एंड कमोडिटीज (डीएमसीसी) पर भी कार्रवाई की गई है. ईयू का आरोप है कि इस कंपनी ने रूस का तेल पश्चिमी देशों द्वारा तय कीमत से ऊपर बेचकर व्यापार किया. कंपनी के प्रमुख नील्स ट्रोस्ट को भी प्रतिबंधित किया गया है. ब्रिटेन पहले ही नवंबर 2023 में इस कंपनी पर प्रतिबंध लगा चुका है.

ईयू ने रूस और उत्तर कोरिया के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग को भी निशाना बनाया है. उत्तर कोरिया के दो बड़े रक्षा अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं. इन पर आरोप है कि ये अधिकारी रूस को हथियार और सैनिक भेजने में शामिल हैं.

रूस के भीतर भी कई बड़ी कंपनियों और रक्षा अधिकारियों को इस प्रतिबंध सूची में जोड़ा गया है. इसमें एक रासायनिक संयंत्र और एक सिविल एयरलाइन शामिल हैं, जो रूसी सेना को सामान पहुंचा रही थीं.

अगला कदम: 16वां प्रतिबंध पैकेज

ईयू जल्द ही 16वां प्रतिबंध पैकेज लाने की तैयारी में है. इसमें रूस की लिक्विफाइड नैचुरल गैस पर सख्ती और यूरोपीय कंपनियों की किसी तीसरे देश में काम करने वाली सहयोगी कंपनियों पर कड़े नियंत्रण जैसे कदम शामिल हो सकते हैं.

ईयू के विदेश नीति प्रमुख काया कालास ने कहा, "ये प्रतिबंध रूस की युद्ध मशीन को कमजोर करने के लिए हैं. हम हर मोर्चे पर यूक्रेनी जनता के साथ खड़े हैं, चाहे वो मानवीय, आर्थिक, राजनीतिक, कूटनीतिक या सैन्य सहायता हो."

ईयू का 15वां प्रतिबंध पैकेज रूस पर दबाव बढ़ाने के साथ-साथ उन देशों पर भी कार्रवाई कर रहा है जो रूस की मदद कर रहे हैं. भारत और चीन जैसे देशों की कंपनियों को शामिल करना दिखाता है कि ईयू अब वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधों का दायरा बढ़ा रहा है.

इस फैसले से भारत जैसे देशों पर पश्चिमी दबाव बढ़ सकता है, जो रूस के साथ व्यापारिक संबंध बनाए हुए हैं. ऐसे में भारत के लिए यह एक बड़ा कूटनीतिक संकेत है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)