
जर्मनी में बिजली पूरे यूरोप में सबसे महंगी है. इससे लोगों की जेब पर असर पड़ता है, खासकर तब जब अर्थव्यवस्था भी ठीक नहीं चल रही हो. पर क्या जर्मनी इस मुश्किल का हल निकाल सकता है?जर्मनी में नया साल तूफानी मौसम के साथ शुरू हुआ. पवन चक्कियां तेज गति से चल रही थीं और कई जगहों पर अच्छी धूप खिली थी. फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी सिस्टम्स के हिसाब से, जर्मनी में अक्षय ऊर्जा से बिजली का उत्पादन मांग की तुलना में 125 फीसदी ज्यादा था.
उत्पादन बढ़ने से बिजली की कीमतें कम हो गईं और कुछ घंटों के लिए तो बिजली मुफ्त में भी मिलने लगी.
2024 में, जर्मनी की औसतन 59 फीसदी बिजली अक्षय ऊर्जा के स्रोतों से बनी थी. लेकिन सर्दियों के लिए इतना उत्पादन काफी नहीं होता. 12 दिसंबर, 2024 को जर्मनी की बिजली जरूरतों का सिर्फ 18 फीसदी ही अक्षय ऊर्जा से पूरा हुआ, बाकी बिजली कोयले और गैस से चलने वाले पावर प्लांट और यूरोपीय संघ के पड़ोसी देशों से आयात करनी पड़ी.
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यूरोपीय संघ में शामिल देश एक दूसरे को बिजली सप्लाई करते हैं. इसका मतलब है कि अनुकूल परिस्थितियों में जर्मनी ऊर्जा का निर्यात करता है, जबकि प्रतिकूल परिस्थितियों में उसे बिजली खरीदनी पड़ती है. 2024 में जर्मनी ने ज्यादातर बिजली फ्रांस से खरीदी, जो अपनी 70 फीसदी ऊर्जा जरूरतें परमाणु ऊर्जा से पूरी करता है.
आयात और निर्यात की कीमतें यूरोपीय ऊर्जा एक्सचेंज द्वारा तय कीमतों के हिसाब से निर्धारित की जाती हैं. इसके अलावा, उपभोक्ताओं को राष्ट्रीय करों और अन्य शुल्क का भुगतान भी करना पड़ता है. जर्मनी में, बिजली की कीमत का लगभग 30 फीसदी, ग्रिड शुल्क होता है. यह शुल्क बिजली बनाने वाले ग्रिड के विस्तार की लागत को बताता है. कर और दूसरे शुल्क इसका लगभग एक तिहाई हिस्सा हैं.
घरों और कंपनियों की कीमतें
घरों और कंपनियों को कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव के बारे में जल्दी पता नहीं चलता क्योंकि उनके पास अक्सर लंबे समय के करार होते हैं. वो बिजली आपूर्तिकर्ता को एक तय समय के लिए एक निश्चित कीमत चुकाते हैं, जैसा कि करार में तय होता है.
हालांकि 2025 की शुरुआत से, आपूर्तिकर्ताओं को मौजूदा कीमतों पर गतिशील दरें भी देनी होंगी. इसका मतलब है, जो ग्राहक इलेक्ट्रिक कार चार्ज करने या हीट पंप चलाने के लिए ज्यादा बिजली इस्तेमाल करते हैं, उनके पास यह जानने का हक होगा कि कब आपूर्ति ज्यादा होगी और कीमतें कम, ताकि वो जरूरत के हिसाब से बिजली खर्च कर सकें.
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2024 में, जर्मनी में भूरे कोयले से बिजली उत्पादन में लगभग 8 फीसदी की गिरावट हुई, जबकि काले कोयले से 27 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई. 2015 से, कोयले से पैदा होने वाली बिजली घटकर लगभग आधी हो गई है, जिससे कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन में भी काफी कमी हुई है.
2024 पहला साल था जब जर्मनी ने बिना परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपनी बिजली जरूरतों को पूरा किया. आखिरी तीन परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जो 2023 में बंद कर दिए गए थे, उनसे 6 फीसदी बिजली ही मिल रही थी. क्या बढ़ी हुई कीमतों के लिए हवा और धूप की कमी ही जिम्मेदार है? या ऊर्जा कंपनियां शायद जानबूझकर बिजली की कीमतें बढ़ाने के लिए कोयले और गैस से चलने वाले बिजली संयंत्रों को ग्रिड से ना जोड़कर आपूर्ति कम कर रही हैं?
यह सवाल अब जर्मन फेडरल कार्टेल कार्यालय पूछ रहा है. यह संघीय आर्थिक मंत्रालय का हिस्सा है और बाजार में उचित प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है. किसी भी तरह की गड़बड़ी का पता चलने पर यह जुर्माना लगा सकता है.
अर्थव्यवस्था और बिजली की कीमतें
पूरे यूरोप में कहीं भी बिजली जर्मनी से ज्यादा महंगी नहीं है. संघीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, 2024 में तीन से चार लोगों के परिवार को प्रति किलोवाट घंटे के लिए लगभग 40 सेंट चुकाने पड़े. दूसरी ओर हंगरी और बुल्गारिया में, जहां बिजली पर राज्य सब्सिडी देता है, उपभोक्ताओं को केवल 10 सेंट चुकाने पड़े.
जर्मनी में भी बिजली पर सब्सिडी मिलती है, लेकिन केवल औद्योगिक कंपनियों को. हालांकि, ये कंपनियां भी सब्सिडी की कीमतों से खुश नहीं हैं. 2021 में जहां कारखाने बिजली के लिए लगभग 12 सेंट प्रति किलोवाट घंटे का भुगतान कर रहे थे, वहीं 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद कीमतें 50 सेंट से ज्यादा हो गईं. 1 जुलाई 2022 को, कंपनियों के लिए कर और अन्य शुल्क काफी कम कर दिए गए.
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आज, कारखानों को लगभग 17 सेंट का भुगतान करना पड़ता है. हालांकि, यह दूसरे प्रतिस्पर्धी देशों में मिलने वाली कीमतों से काफी ज्यादा है. उदाहरण के लिए 2023 में, जर्मन ऑटोमोटिव कंपनियों ने बिजली के लिए चीन में अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में दोगुना और अमेरिका में लगभग तीन गुना ज्यादा भुगतान किया. बिजली की कीमतों को कम करना सबसे जरूरी आर्थिक कामों में से एक है.
क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के धुर-दक्षिणपंथी गुट की तरफ से चांसलर पद के दावेदार फ्रीडरिष मैर्त्स ने चुनावी मंचों से बिजली की कीमतें घटाने की बात कही है. हालांकि, वह इसकी भरपाई कैसे करेंगे, इसे लेकर कुछ नहीं बताया गया है.
यह बात साफ है कि अक्षय ऊर्जा, ग्रिड और भंडारण सुविधाओं का लगातार विस्तार आने वाले कई सालों तक महंगा रहेगा. एक बार बुनियादी ढांचा तैयार हो जाने पर ही पवन और सौर ऊर्जा के आर्थिक फायदे पता चलेंगे.