370, CAA, तीन तलाक और राम मंदिर के बाद अब मथुरा-काशी की बारी? मोदी सरकार का कोर एजेंडा पूरा, अब अगला कदम क्या होगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने कोर एजेंडे के कई प्रमुख बिंदुओं को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से लागू कर दिया है. राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, तीन तलाक को खत्म करना, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) जैसे मुद्दे दशकों से भाजपा की विचारधारा और प्रचार का केंद्र रहे हैं. अब जब ये प्रमुख लक्ष्य हासिल हो चुके हैं, तो यह स्वाभाविक सवाल उठता है—भाजपा का अगला एजेंडा क्या होगा?

राम मंदिर

राम मंदिर आंदोलन न केवल भाजपा की राजनीति का बल्कि हिंदू समाज के सांस्कृतिक जागरण का भी प्रतीक रहा है. वर्षों के संघर्ष और लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण भाजपा की सबसे बड़ी वैचारिक और चुनावी विजय के रूप में देखा जा रहा है. यह कदम संघ के उस विचार को दर्शाता है, जिसमें भारत को सांस्कृतिक रूप से एकीकृत राष्ट्र माना जाता है.

अनुच्छेद 370: "एक राष्ट्र, एक संविधान" का संकल्प

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति ने भारत के एकीकरण की भावना को कानूनी आधार दिया. यह भाजपा के संस्थापक नेताओं जैसे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपने का साकार होना था. इस कदम से न केवल क्षेत्रीय असमानता को खत्म किया गया बल्कि यह एक मजबूत राजनीतिक संदेश भी बना कि अब भारत एक संविधान के तहत चलता है.

तीन तलाक और वक्फ कानून: मुस्लिम समाज में सुधार के प्रयास

तीन तलाक पर कानून लाकर भाजपा ने मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने का दावा किया. इसी क्रम में वक्फ संपत्ति से जुड़े कानून में संशोधन कर पारदर्शिता और जवाबदेही की बात कही गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कदम को मुस्लिम समाज के गरीब, पिछड़े और पसमांदा वर्ग के हित में बताया.

नागरिकता संशोधन कानून (CAA): शरणार्थियों के लिए राहत

CAA के माध्यम से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों—हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों—को भारत की नागरिकता देने का रास्ता खोला गया. हालांकि इस कानून का व्यापक विरोध भी हुआ और इसे धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला करार दिया गया.

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC): समता की ओर एक और कदम

UCC भारत के सभी नागरिकों के लिए एकसमान नागरिक कानून की परिकल्पना करता है. यह मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 44 से जुड़ा है और भाजपा के कोर वैचारिक एजेंडे का हिस्सा है. उत्तराखंड ने इस दिशा में पहला ठोस कदम उठाया है. गुजरात समेत कई भाजपा शासित राज्यों ने इसके समर्थन में बयान दिए हैं. हालांकि इसे लेकर विपक्ष में तीव्र असहमति और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की आशंका है.

अगला एजेंडा: मथुरा और काशी का मुद्दा

राम जन्मभूमि के बाद मथुरा और काशी दो ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जो भाजपा और संघ के वैचारिक फ्रेमवर्क में "अधूरे स्वप्न" माने जाते हैं. यद्यपि भाजपा ने इन मामलों को अपने घोषणापत्र में शामिल नहीं किया, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से समाधान की दिशा में संकेत मिलते रहे हैं.

विश्व हिंदू परिषद की हालिया बैठक और संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबले के बयान से यह संकेत मिला कि अगर कार्यकर्ता इस आंदोलन में जुड़ते हैं तो संघ उन्हें रोकेगा नहीं. भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा पहले ही कह चुके हैं कि यह मामला न्यायालय और संविधान के तहत सुलझाया जाएगा. ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि भाजपा इन मामलों में कोर्ट के फैसले के बाद क्या रुख अपनाती है.

जनसंख्या नियंत्रण कानून: सामाजिक संरचना में संतुलन?

भाजपा और उससे जुड़े संगठनों में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर चिंता जताई जाती रही है. कुछ राज्य सरकारों ने इसके संकेत भी दिए हैं. इसे सामाजिक न्याय, संसाधनों की समान भागीदारी और राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा जाता है. हालांकि आलोचक इसे अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति लक्षित मानते हैं.

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC): सुरक्षा बनाम पहचान

NRC का उद्देश्य देश के अवैध प्रवासियों की पहचान करना है. असम में इसे लागू किया गया था, लेकिन उसके बाद पूरे देश में इसे लागू करने को लेकर सरकार ने कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई. सीएए के विरोध के दौरान NRC को लेकर आशंकाएं उभर कर सामने आई थीं. फिर भी भाजपा इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और पहचान के संरक्षण का माध्यम मानती है.

नया भारत या नया एजेंडा?

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने कई दशकों पुराने एजेंडे को साकार कर दिया है. अब उनका ध्यान भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी व्यवस्था में स्थायी बदलाव लाने पर है. यूनिफॉर्म सिविल कोड का देशव्यापी विस्तार, मथुरा-काशी विवादों का समाधान, जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दे भविष्य की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं.

2024 के बाद का समय भाजपा के लिए एक नई वैचारिक यात्रा की शुरुआत हो सकता है. जहां वह अपने समर्थकों की उम्मीदों को बनाए रखते हुए, भारत के सामाजिक ताने-बाने को भी नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश करेगी.