देश की खबरें | निष्कर्ष तक पहुंच चुके मामले को दोबारा नहीं खोला जा सकता, अन्यथा अराजकता उत्पन्न होगी: न्यायालय

नयी दिल्ली, 16 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि किसी मुकदमे का निष्कर्ष तक पहुंचना सुदृढ़ न्यायिक प्रणाली का मुख्य पहलू है और निष्कर्ष तक पहुंच चुके मामले को दोबारा नहीं खोला जा सकता, अन्यथा न्याय प्रशासन में अराजकता उत्पन्न हो जाएगी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने हिमाचल प्रदेश राज्य वन विकास निगम लिमिटेड के पूर्व कर्मचारियों द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पेंशन लाभ की मांग की गई थी, जबकि यह मुद्दा 2016 में एक अलग मुकदमे में अंतिम रूप प्राप्त कर चुका था।

पीठ ने कहा, ‘‘यह बिल्कुल स्पष्ट है कि वर्तमान रिट याचिका पूरी तरह से गलत है और इसे खारिज किया जाना चाहिए। हालांकि, रिकॉर्ड को अंतिम रूप देने से पहले, हम एक निर्णय प्रक्रिया के निष्कर्ष तक पहुंचने के सिद्धांत पर जोर देना और उसे दोहराना चाहेंगे। किसी कानूनी मुद्दे का निष्कर्ष तक पहुंचना एक सुदृढ़ न्यायिक प्रणाली का मुख्य पहलू है। जो मुकदमे समाप्त हो चुके हैं या अंतिम निष्कर्ष तक पहुंच चुके हैं, उन्हें फिर से नहीं खोला जा सकता है।’’

न्यायालय ने कहा कि इस न्यायालय द्वारा विशेष अनुमति याचिका या उससे उत्पन्न दीवानी अपील में दिए गए निर्णय से व्यथित कोई वादी, पुनर्विचार अधिकार का इस्तेमाल करके और उसके बाद उपचारात्मक याचिका के माध्यम से इस पर पुनर्विचार का अनुरोध कर सकता है।

पीठ ने जोर देकर कहा, ‘‘लेकिन इस तरह के निर्णय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट कार्यवाही में चुनौती नहीं दी जा सकती। अगर इसकी अनुमति दी गई, तो कोई अंतिम निर्णय नहीं होगा और मुकदमेबाजी का कोई अंत नहीं होगा। न्यायिक प्रशासन में अराजकता उत्पन्न होगी।’’

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