हांगकांग के बाहर भी 'लागू' चीन का नया कानून
चीन का झंडा (photo Credits: PTI)

चीन का नया कानून हांगकांग में 1 जुलाई से लागू हो गया. इस कानून के लागू होने के बाद हांगकांग में जिस तरह से विरोध प्रदर्शन शुरू हुए हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि आने वाले दिनों में विरोध की यह आग जल्दी बुझने वाली नहीं है. इस बीच हांगकांग पुलिस ने बुधवार को नए कानून के तहत पहली गिरफ्तारी की. इस कानून में मौत की सजा का प्रावधान भले ही नहीं है, लेकिन इसके तहत किसी को भी पकड़ना पुलिस और सुरक्षा तंत्र के लिए अब बहुत आसान हो गया है. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून चीन ने हांगकांग में लागू किया है, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से अर्द्ध-स्वायत्त शहर में लोकतंत्र की मांग कर रहे लोगों द्वारा धरना, प्रदर्शन आदि पर रोक लगाना है. इस क़ानून के तहत अगर हांगकांग का नागरिक अगर किसी अन्य देश में भी इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करता है, उसको दंडित करने की शक्ति भी चीनी सरकार के पास होगी. कानून के अनुच्छेद 38 में कहा गया है, "यह कानून उन लोगों पर भी लागू होगा जो इस क्षेत्र के बाहर हांगकांग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं."

विरोधियों की जुबान बंद:

अब चीन के खिलाफ एक शब्द भी बोलना, उसके राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करना राष्ट्र विरोधी गतिविधि माना जाएगा. इस कानून के लागू हो जाने के बाद प्रदर्शनकारियों को चीन के हवाले करने का रास्ता साफ हो गया है. चीन की सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों और लोकतंत्र समर्थकों को गिरफ्तार करेगी. विरोध करने वालों को ‘अपराधी’की श्रेणी में डाल कर चीन को सौंप दिया जाएगा और फिर वहां उनके साथ क्या होगा, यह कोई नहीं जानता. नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में अब वे लोग भी अपराधी माने जाएंगे जो पिछले साल सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान सरकारी दफ्तरों और पुलिस थानों पर हमले करने, राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और हांगकांग के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को बंद करने जैसी घटनाओं में शामिल थे.

यह भी पढ़ें- चीन को हो सकता था फायदा, इसलिए रेलवे ने रद्द किया थर्मल कैमरों के लिए टेंडर

जानकारों की राय में:

द जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी लॉ स्कूल में चीनी कानून में विशेषज्ञता रखने वाले प्रोफेसर डोनाल्ड सी क्लार्क यह निष्कर्ष निकालते हैं, "चीन ग्रह पर प्रत्येक व्यक्ति पर अतिरिक्त अधिकार क्षेत्र का दावा कर रहा है. इसके साथ, चीन प्रभावी रूप से उन्हें बता रहा है कि अगर वे हांगकांग में कदम रखते हैं तो उन्हें दंड और जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है. यदि आपने कभी भी ऐसा कुछ कहा है जो [चीनी] या हांगकांग के अधिकारियों को रोक सकता है, तो हांगकांग से बाहर रहें." जेसिका दून, एक थिंक टैंक जो चीन और भारत-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित है, ने कहा कि यह प्रावधान ताइवान के नागरिकों के लिए भी खतरा है, जो हांगकांग के लोकतंत्र प्रेमियों का समर्थन करते हैं. उन्होंने कहा, "मैं देख सकती हूं कि इसका इस्तेमाल ताइवान में हांगकांग के कार्यकर्ताओं का समर्थन करने वाले हांगकांग या चीन के नागरिकों को हिरासत में लेने के लिए किया जा रहा है."

इतिहास के पन्नों से:

गौरतलब है कि ब्रिटेन से आजाद होने के बाद 1 जुलाई, 1997 को ब्रिटेन द्वारा हांगकांग की संप्रभुता वापस चीन को सौंप दी गई थी और 'एक देश, दो प्रणालियां' समझौते के तहत कम से कम 50 वर्षों के लिए कुछ अधिकार दिए. उसे खुद के भी कुछ अधिकार मिले. इसमें अलग न्यायपालिका और नागरिकों के लिए आजादी के अधिकार शामिल हैं. यह व्यवस्था 2047 तक के लिए है. 1842 में हुए प्रथम अफीम युद्ध (ओपियम वॉर- 1839–1842) में चीन को हराकर ब्रिटिश सेना ने पहली बार हांगकांग पर कब्जा जमा लिया था. बाद में दूसरे अफीम युद्ध (1856–1860) में भी चीन को ब्रिटेन के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 1898 में ब्रिटेन ने चीन के कुछ अतिरिक्त इलाकों को 99 साल के लिए लीज़ पर ले लिया.

यह भी पढ़ें- भारत लगातार दिखा रहा है कि वह चीन की आक्रामकता के बावजूद पीछे नहीं हटेगा: अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी निक्की हेली

1982 में ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन को सौंपने की कार्रवाई शुरू कर दी जो 1997 में जाकर पूरी हुई. चीन ने एक देश दो व्यवस्था के तहत हांगकांग को स्वायत्तता देने का वादा किया था. चीन ने कहा था कि हांगकांग को अगले 50 सालों तक विदेश और रक्षा मामलों को छोड़कर सभी तरह की आजादी हासिल होगी. बाद में चीन ने एक समझौते के तहत इसे विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बना दिया.