800 मिसाइलों से लैस होगा ईरान, चीन के साथ हुई इस गुप्त डील ने अमेरिका और इजरायल बढ़ाई टेंशन

नई दिल्ली: दुनिया इस समय एक अभूतपूर्व तनाव के दौर से गुजर रही है. विभिन्न हिस्सों में चल रहे युद्धों के बीच, कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जो युद्ध की दहलीज पर खड़े हैं. मध्य पूर्व का एक ऐसा ही देश ईरान है, जो एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ इजरायल से संभावित सैन्य टकराव की आशंकाओं से घिरा है. इन खतरों से निपटने के लिए ईरान ने अपनी सैन्य तैयारियों को तेज कर दिया है और इसी क्रम में उसने चीन के साथ एक बड़ी रक्षा डील की है, जिसने वैश्विक शक्तियों, विशेषकर अमेरिका की चिंता बढ़ा दी है.

चीन के साथ ईरान की ऐतिहासिक मिसाइल डील

वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) की एक हालिया रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि ईरान ने अपनी मिसाइल क्षमता को मजबूत करने के लिए चीन से हजारों टन मिसाइल ईंधन की खरीद का ऑर्डर दिया है. इस सौदे का सबसे महत्वपूर्ण घटक अमोनियम परक्लोरेट (Ammonium Perchlorate) है, जो ठोस-ईंधन वाली बैलिस्टिक मिसाइलों के निर्माण के लिए एक प्रमुख ऑक्सीकारक है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस ईंधन की मदद से ईरान बड़े पैमाने पर लगभग 800 से अधिक लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें तैयार कर सकता है.

यह सौदा ईरान की सैन्य तैयारियों का एकमात्र हिस्सा नहीं है. ईरान अक्टूबर 2023 में एक कथित इजरायली हमले में नष्ट हुए अपने 12 प्लैनेटरी मिक्सर (मिसाइल ईंधन बनाने वाले उपकरण) को भी ठीक करने में लगा है. इससे पहले, इसी साल फरवरी और मार्च के महीनों में छोटी दूरी की 260 मिसाइलों के लिए ईंधन की खेप तेहरान पहुंच चुकी थी.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिकी रुख 

ईरान की बढ़ती मिसाइल क्षमता और उसका महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम हमेशा से अमेरिका के लिए चिंता का विषय रहा है. अमेरिका और पश्चिमी देशों को आशंका है कि ईरान परमाणु ऊर्जा की आड़ में परमाणु बम विकसित कर रहा है.

अमेरिका का स्पष्ट संदेश: अमेरिकी प्रशासन, विशेषकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल से, यह स्पष्ट कर चुका है कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

पूर्व की कार्रवाई: अमेरिका अपनी चिंताओं को लेकर केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं है. 2022 में, अमेरिकी नौसेना ने ओमान की खाड़ी से ईरान जा रहे जहाज से 70 टन अमोनियम परक्लोरेट जब्त कर लिया था, जो इस बात का प्रमाण है कि अमेरिका ईरान की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखे हुए है.

कूटनीतिक दांव-पेंच और नया प्रस्ताव

सैन्य दबाव के बीच कूटनीति का खेल भी जारी है. हाल ही में, अमेरिका ने ईरान के सामने एक नया प्रस्ताव रखा है. इस प्रस्ताव के मुख्य बिंदु हैं:

  1. सीमित यूरेनियम संवर्धन: ईरान को नागरिक उपयोग (जैसे परमाणु ऊर्जा) के लिए सीमित स्तर पर यूरेनियम संवर्धन (Uranium Enrichment) की अनुमति दी जाएगी.
  2. शर्तें: इसके बदले में ईरान को अपनी भूमिगत संवर्धन सुविधाओं को बंद करना होगा और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की कठोर निगरानी के लिए सहमत होना होगा.
  3. क्षेत्रीय कंसोर्टियम: प्रस्ताव में एक क्षेत्रीय कंसोर्टियम बनाने का भी जिक्र है, जिसमें सऊदी अरब और अन्य अरब देश शामिल होंगे. महत्वपूर्ण बात यह है कि यूरेनियम संवर्धन का काम ईरान की धरती पर नहीं होगा.

हालांकि, ईरान की मुख्य मांग अपने परमाणु कार्यक्रम पर लगे प्रतिबंधों को हटाना है, लेकिन अमेरिकी प्रस्ताव में यह स्पष्ट नहीं है कि कौन से प्रतिबंध हटाए जाएंगे. इस मामले में एक विरोधाभास भी है, जहां ट्रंप सार्वजनिक रूप से ईरान को किसी भी प्रकार के यूरेनियम संवर्धन के खिलाफ हैं, वहीं उनका प्रशासन कम स्तर पर संवर्धन की अनुमति देने वाले प्रस्ताव पर काम कर रहा है.

मौजूदा हालात बेहद जटिल हैं. एक तरफ ईरान, चीन की मदद से अपनी सैन्य शक्ति, विशेष रूप से अपनी मिसाइल क्षमता को तेजी से बढ़ा रहा है. वहीं दूसरी तरफ, अमेरिका कूटनीतिक और आर्थिक दबाव के जरिए उसे परमाणु हथियार बनाने से रोकने की कोशिश कर रहा है. चीन के साथ हुई यह मिसाइल ईंधन डील मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकती है और पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा सकती है. आने वाला समय ही बताएगा कि यह कूटनीतिक रस्साकशी किसी शांतिपूर्ण समाधान की ओर ले जाती है या एक नए संघर्ष को जन्म देती है.