कलबुर्गी: कहते हैं कि सपने उन्हीं के साकार होते हैं जो पूरी शिद्दत के साथ अपने सपनों को उड़ान देने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं, फिर चाहे रास्ते में कितनी ही परेशानियां क्यों न आए वो उसे पार करके अपनी मंजिल को पा ही लेते हैं. कर्नाटक (Karnataka) के कलबुर्गी (Kalaburagi) के एक शख्स ने दुनिया के सामने एक ऐसा ही उदाहरण पेश किया है. सुभाष पाटिल (Subhash Patil) नाम के एक शख्स ने यह साबित किया है कि सपने (Dreams) को पूरा करने और जीवन को नए सिरे से शुरू करने में कभी वक्त या हालात बाधा नहीं बनते हैं.
सुभाष पाटिल का सपना था कि वो डॉक्टर (Doctor) बनें, लेकिन इस बीच उन्हें 14 साल की जेल (14 Years Jail) हो गई, बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और न ही उम्मीद छोड़ी. यही वजह है कि जेल से बाहर आने के बाद आखिरकार उन्होंने एमबीबीएस (MBBS) की पढ़ाई पूरी की और अपने डॉक्टर बनने के सपने को साकार कर ही लिया.
देखें ट्वीट-
Kalaburagi:Subhash Patil who was convicted for 14yrs, realises his dream of becoming a doctor,says,I joined MBBS in'97,but in '02 I was jailed in a murder case.I worked at jail's OPD;After release in 2016 for good conduct,completed MBBS in '19, today I've completed 1yr internship pic.twitter.com/fE5kNleymY
— ANI (@ANI) February 15, 2020
सुभाष पाटिल की उम्र 39 साल है और उनका कहना है कि उन्होंने साल 1997 में एमबीबीएस जॉइन किया था, लेकिन 2002 में उन्हें हत्या के एक मामले में 14 साल के लिए जेल में डाल दिया गया. हालांकि जेल में रहते हुए भी सुभाष ने ओपीडी में काम किया और जेल में अच्छे आचरण के चलते उन्हें साल 2016 में स्वतंत्रता दिवस पर रिहा कर दिया गया. जेल से बाहर आने के बाद सुभाष ने 2019 में अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और अब उन्होंने 1 साल की इंटर्नशिप भी पूरी कर ली है. यह भी पढ़ें: चीन में पुलिस कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को मार रही गोली? जानें इस वायरल वीडियो की हकीकत
बताया जाता है कि सुभाष पाटिल को एक मर्डर के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उस दौरान वो कलबुर्गी में एमआर मेडिकल कॉलेज में थर्ड ईयर के छात्र थे. जिस व्यक्ति की हत्या हुई थी, उसमें मृतक की पत्नी और सुभाष की प्रेमिका को भी सजा हुई थी. जेल में रहते हुए सुभाष पाटिल केंद्रीय जेल अस्पताल में डॉक्टरों की मदद करते थे और उन्हें तपेदिक से पीड़ित कैदियों के इलाज में योगदान देने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा साल 2008 में सम्मानित भी किया जा चुका है.