Yogini Ekadashi Vrat 2019: योगिनी एकादशी व्रत करने से मिलता है 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना पुण्य, जानें इसका महत्व और पूजा विधि
भगवान विष्णु (Photo Credits: Facebook)

प्रत्येक वर्ष आषाढ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी के रूप में मनाए जाने का विधान है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष योगिनी एकादशी का व्रत 29 जून 2019 को पड़ रहा है. इस एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन पीपल के पेड़ की भी पूजा करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.

व्रत एवं पूजा की विधि

यह त्रैलोक की सबसे लोकप्रिय एकादशी है. इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा इंसान मोक्ष को प्राप्त होता है. योगिनी एकादशी का व्रत शुरू करने से एक रात पूर्व से ही व्रत के नियम लागू हो जाते हैं. दशमी की रात्रि से शुरू होकर एकादशी की प्रातःकाल दान-पुण्य की विधि निभाने के साथ ही व्रत सम्पन्न होता है. दशमी की तिथि से ही तामसी भोजन एवं नमक का परित्याग कर देना चाहिए. एकादशी की प्रातःकाल स्नान-ध्यान के पश्चात व्रत शुरू करने का संकल्प लिया जाता है. मान्यता है कि इस दिन स्नान के लिए धरती माता की रज यानी मिट्टी का इस्तेमाल करना शुभ एवं मंगलकारी होता है. इसके अलावा स्नान के पूर्व तिल के उबटन (पानी तिल पीसकर बना लेप) से शरीर पर लेप लगवाएं.

स्नान के बाद मिट्टी का एक कलश स्थापित करें. कलश में पानी, अक्षत और मुद्रा रखकर उसके ऊपर उसी आकार का दीया रखें. दीये में चावल ऱखें और उसके ऊपर भगवान विष्णु की पीतल की प्रतिमा स्थापित करें. प्रतिमा को रोली अथवा सिंदूर का टीका लगाएं और अक्षत चढ़ाएं. इसके बाद कलश के सामने शुद्ध देशी घी का दीप प्रज्जवलित कर तुलसी का पत्ता एवं फल-फूल का प्रसाद चढ़ाकर विधि विधान से विष्णु भगवान की पूजा करें.

योगिनी एकादशी का महात्म्य

पूरे त्रैलोक में लोकप्रिय योगिनी एकादशी का व्रत करने से इंसान के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत के संदर्भ में भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना फलदाई होता है. इस व्रत को नियमपूर्व करने से व्रती के सारे पाप मिट जाते हैं और उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है. संभव हो तो रात में जागकर भगवान का भजन कीर्तन करें. एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है. अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें.

प्रचलित पौराणिक कथा

प्राचीनकाल में अलकापुरी नगरी में कुबेर नाम का राजा रहता था. वह भगवान शिव का अनन्य भक्त था और प्रतिदिन शिव जी की पूजा किया करता था. पूजा के लिए उसके यहां हेम नामक माली फूल लाता था. हेम की पत्नी विशालाक्षी बहुत सुंदर थी. एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लाकर राजा के पास पहुंचाने के बजाय अपनी पत्नी के साथ हंसी-ठिठोली करने लगा. इधर पूजा के मंडप में बैठे राजा ने दोपहर तक उसकी प्रतीक्षा करने के पश्चात अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर देखो कि माली क्यों नहीं आया. सेवकों ने कहा, महाराज वह पापी अतिकामी है. अपनी पत्नी के साथ हंसी-मजाक कर रहा होगा. सेवकों की बात सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलवाया. राजा के भय से भयभीत हो माली कांपता हुआ ‍उपस्थित हुआ. राजा कुबेर ने क्रोधित होते हुए कहा, अरे पापी! नीच! तूने मेरे परम पूजनीय शिवजी जी का अनादर किया है. मैं तुझे शाप देता हूं कि तू जिंदगी भर स्त्री वियोग सहते हुए मृत्यु को प्राप्त हो और अगले जन्म में भी कोढ़ी बने.’ राजा के शाप से शापित होकर माली मृत्यु को प्राप्त होने के पश्चात कोढ़ी बनकर पृथ्वी पर आ गया.

पृथ्वीलोक में आकर माली को तमाम कष्ट उठाने पड़े. वह भयानक जंगल में घूमता-भटकता रहा. अकसर उसे भूखे पेट भी सोना पड़ता था. चूंकि वह शिव भक्त था, इसीलिए उसे पूर्व जन्म की सभी बातें याद थीं. एक दिन भटकते-भटकते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम पहुंच कर उनके पैरों पर गिर पड़ा. उसे देख मार्कण्डेय ऋषि ने पूछा तुमने ऐसा कौन सा अपराध किया है कि तुम्हारी यह स्थिति हो गई है. माली ने सारी कहानी बता दी. तब ऋषि ने कहा, तुमने सच्ची बात बताई, इसलिए मैं तुम्हें एक व्रत बतलाता हूं. अगर तुम आषाढ़ माह के कृष्णपक्ष की योगिनी एकादशी का विधि पूर्वक व्रत एवं पूजन करोगे तो तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे. यह सुन माली ने मार्कण्डेय ऋषि के सामने साष्टांग प्रणाम किया. इसके पश्चात उसने मार्कण्डेय ऋषि द्वारा बताए विधि से योगिनी एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से शापमुक्त हो माली अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा.