Chhatrapati Sambhaji Maharaj Rajyabhishek Din: आज ही के दिन हुआ था छत्रपती संभाजी महाराज का राज्याभिषेक! जिनके शौर्य का प्रशंसक था उनका हत्यारा औरंगजेब
संभाजी महाराज (Photo Credits: Instagram)

Chhatrapati Sambhaji Maharaj Rajyabhishek Din: छत्रपति शिवाजी महाराष्ट्र (Chhatrapati Shivaji Maharaj) की वीरता के किस्से दुनिया भर में विख्यात हैं, लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि शिवाजी की तरह उनके पुत्र संभाजी का जीवन भी देश और हिंदुत्व (Hindutva) को समर्पित था. संभाजी भी पिता शिवाजी की तरह शौर्य एवं बहादुरी के प्रतीक थे. बचपन से शिवाजी के साथ युद्ध भूमि में रहकर संभाजी युद्ध के कला कौशल के साथ-साथ कूटनीति में भी दक्ष हो गये थे. यही वजह थी कि संभाजी ने मुगल बादशाह औरंगजेब के करीब 120 युद्ध किया और हर युद्ध में औरंगजेब को हार का सामना करना पड़ा था. शिवाजी की मृत्यु के पश्चात संभा जी का आज के ही दिन 16 जनवरी को राज्याभिषेक हुआ था. आइये जानें संभाजी के शासनकाल से जुड़ी कुछ रोचक यादें...

छत्रपति संभाजी राजे (Chhatrapati Shivaji Maharaj) का जन्म 14 मई 1657 में पुरंदर दुर्ग (पुणे) में शिवाजी की दूसरी पत्नी सई बाई के गर्भ से हुआ था. संभाजी मात्र दो साल के थे, उनकी माँ की मृत्यु हो गयी. उनकी परवरिश उनकी दादी जीजाबाई ने की. माना जाता है कि संभाजी राजे में बहादुरी शौर्यता के बीज दादी जीजाबाई ने ही बोये थे.

संभाजी का राज्याभिषेक

साल 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात उनकी तीसरी पत्नी सोयराबाई के बेटे राजाराम को सिंहासन पर बिठाया गया. उस समय संभाजी पन्हाला में कैद थे. राजाराम के राज्याभिषेक की खबर मिलने की खबर संभाजी को मिली तो उन्होंने पन्हाला किले के किलेदार की हत्या कर किले पर कब्जा कर लिया. इसके बाद संभाजी ने 18 जून 1680 को रायगढ़ किले पर भी कब्जा कर लिया. राजाराम, उनकी पत्नी जानकी और मां सोयराबाई को गिरफ्तार कर लिया.

औरंगजेब ने पगड़ी बांधने की कसम क्यों खाई?  

16 जनवरी 1681 में महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में क्षत्रपति संभा जी का भव्य राज्याभिषेक हुआ. उधर शिवाजी की मृत्यु के पश्चात मुगल बादशाह औरंगजेब (Aurangzeb) को लगा था कि वह अब आसानी से रायगढ़ किले (Raigad Fort) पर कब्जा कर लेगा. लेकिन रायगढ़ की सत्ता पर बैठते ही संभाजी ने औरंगजेब की नाक में दम करना शुरू कर दिया था. औरंगजेब जब भी रायगढ़ पर हमला करता, संभाजी से उसे हार ही मिलती. संभाजी से बार-बार हारने के बाद बादशाह औरंगजेब ने कसम खाई थी कि जब तक वह छत्रपति संभा जी को गिरफ्तार नहीं कर लेगा, वह अपने सर पर पगड़ी नहीं बांधेगा.

संभाजी ने अपने ही सामंतों को क्यों दिया मृत्यु-दण्ड!

राजाराम को रायगढ़ की सल्तनत नहीं मिलने से उनके समर्थक असंतुष्ट थे. उन्होंने औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद अकबर से रायगढ़ पर आक्रमण कर उसे मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाने की गुजारिश करने के लिए पत्र लिखा, किंतु मोहम्मद अकबर संभाजी की शूरवीरता से परिचित था. उसने वह पत्र संभाजी को भेज दिया. इस राजद्रोह से क्रोधित होकर छत्रपति संभाजी ने अपने सभी गद्दार सामंतों को मृत्युदण्ड दिया. बाद में औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर ने दक्षिण भागकर संभाजी का आश्रय ग्रहण किया. इसके बाद औरंगजेब ने संभा जी के विरुद्ध अपनी पूरी ताकत झोंक दी.

किसने की थी संभाजी से गद्दारी?

संभाजी ने 1683 में पुर्तगालियों को पराजित किया. इस समय वह किसी राजकीय कार्य से संगमेश्वर में रह रहे थे. जिस दिन वह रायगढ़ के लिए प्रस्थान करने वाले थे, उसी दिन कुछ ग्रामीणों ने उन्हें अपनी समस्या बतायी. ग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुए संभाजी ने अपने साथ सिर्फ दो सौ सैनिकों को रखकर बाकी सेना को रायगढ़ भेज दिया. उसी वक्त उनके साले गरुढ जी शिरके ने गद्दारी कर मुगल सरदार मुकरन खान के साथ गुप्त रास्ते से 5 हजार फौज के साथ संभा जी पर हमला कर दिया. ये वह रास्ता था, जो सिर्फ मराठों को पता था. संभाजी महाराज ने कभी नहीं सोचा था कि शत्रु इस रास्ते से भी आ सकते हैं. उन्होंने लड़ने का प्रयास किया, किंतु इतनी बड़ी सेना के आगे 200 सैनिकों की शौर्यता काम नहीं आयी, और अपने खास मित्र कवि कलश के साथ वे बंदी बना लिये गये. संभा जी से खफा औरंगजेब ने संभा जी को अपने कब्जे में पाकर क्रूरता एवं अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं. दोनों की जुबान कटवा दी और आंखे निकलवा ली.

संभाजी के शौर्य का प्रशंसक औरंगजेब भी था

औरंगजेब के मुस्लिम बनने का आदेश लेकर जो हरकारा संभाजी के पास गया था, संभाजी ने उसके मुंह पर थूक दिया. 11 मार्च 1689 के दिन हिंदू नववर्ष के दिन औरंगजेब ने दोनों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करवा दिये. लेकिन इस हत्या से पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा कि मेरे चार पुत्रों में से एक भी अगर तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिंदुस्तान में कब का हमारा सल्तनत बन गया होता. कहा जाता है कि जब संभाजी महाराज के शरीर के क्षत-विक्षत टुकड़े तुलापुर के नदी में फेंके गये, तो किनारे रहने वाले लोगों ने शव के टुकड़े इकट्ठा करके उसे सिला और उसका पूरी विधि से अंतिम संस्कार किया.