हिंदू सनातन धर्म (Hindu Sanatan Dharma) में किसी भी अनुष्ठान का समापन हवन (Havan) अथवा यज्ञ से किए जाने का प्रचलन है. मत्स्य पुराण (Matsya Puran) में यज्ञ या हवन के संदर्भ में उल्लेखित है कि जिस कार्य में देवता, हवनीय पदार्थ, वेदमंत्र, ऋत्विक और दक्षिणा इन पांच बातों का संयोग है, उसे ही यज्ञ या हवन कहते हैं. मान्यता है कि हवन-सामग्री अग्नि (Agni) के माध्यम से हमारे देवी-देवताओं तक पहुंचती है. हवन का एक वैज्ञानिक लाभ यह है कि इसके धुएं से वातावरण शुद्ध और पवित्र होता है, लेकिन हवन कराते हुए पुरोहित हर देवी-देवताओं का नाम लेकर ‘स्वाहा’ (Swaha) शब्द का जो उच्चारण करता है और यजमानों से भी करवाता है, उसका आशय अथवा महत्व हमने कभी जानने की कोशिश की? यहां हम उसी शब्दों के आशय को समझने की कोशिश करेंगे.
‘स्वाहा’ शब्द की महिमा बताने से पहले यह बता दें कि ‘स्वाहा’ वास्तव में अग्नि देवता की पत्नी का नाम है. हवन के दौरान जब आहुति दी जाती है तो ‘स्वाहा’ शब्द का सैकड़ों बार उच्चारण पहले पुरोहित फिर यजमान द्वारा किया जाता है. ‘स्वाहा’ का एक अर्थ यह भी होता है कि हवन सामग्री को सही तरीके से पहुंचाना. हवन के दरम्यान ‘स्वाहा’ शब्द के उच्चारण से देवताओं को अग्नि के जरिए भोग लगाया जाता है. इसीलिए कहते हैं कि कोई भी हवन या यज्ञ तब तक संपूर्ण रूप से सफल नहीं होता जब तक देवता भोग न कर लें.
कैसे दें आहुति ?
हवन सामग्री को हाथ के जरिए अग्नि कुंड में छोड़ते समय ध्यान रखें कि हवन सामग्री दाएं हाथ के मध्यमा और अनामिका उंगलियों में लें और अग्रि में छोड़ते समय अंगूठे का भी सहारा लेकर उसकी मुद्रा मृग के मुख की तरह बनायें. एक बात का और ध्यान रखें कि हमेशा झुककर अग्निकुंड में हवन सामग्री छोड़ें. चूंकि ‘स्वाहा’ अग्नि देव की पत्नी हैं इसलिए हर मंत्र के बाद इनके नाम का उच्चारण जरूरी होता है.
श्री मद्भागवत गीता तथा शिव पुराण में भी ‘स्वाहा’ शब्द का उल्लेख कई बार हुआ है. मंत्र का पाठ करने के साथ अंत में ‘स्वाहा’ शब्द का उच्चारण करके ही हवन सामग्री अग्निकुण्ड में प्रवाहित करना चाहिए. वस्तुतः कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं होता, जब तक अग्निदेवता हवन को स्वीकार न कर लें और देवता तभी हवन का ग्रहण करते हैं जब वह अग्नि के माध्यम से उन तक पहुंचता है. श्रीमद् भागवत एवं शिव पुराण के अलावा ऋग्वेद एवं यजुर्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में भी हवन को लेकर अग्नि की महत्ता के बारे में पढ़ा जा सकता है. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: तन और मन की शुद्धि के लिए फायदेमंद है हवन, जानें इसके हेल्थ बेनिफिट्स
हवन से संबंधित प्रचलित कथाएं
शिव पुराण के अनुसार, राजा दक्ष की पुत्री का नाम ‘स्वाहा’ था. ‘स्वाहा’ का विवाह अग्नि देवता के साथ हुआ था. अग्नि देवता अपनी पत्नी ‘स्वाहा’ के माध्यम से ही हविष्य (हवन करने योग्य पदार्थ) ग्रहण करते थे, जिसे अग्नि देवता के माध्यम से दूसरे देवता हविष्य ग्रहण करते थे.
‘स्वाहा’ से जुड़ी एक कथा यह है कि ‘स्वाहा’ प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह दूसरे देवी-देवताओं के आग्रह पर अग्नि के साथ सम्पन्न हुआ था. इस विवाह में उपस्थित भगवान श्रीकृष्ण ने ‘स्वाहा’ को वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य ग्रहण कर सकेंगे और हर धार्मिक अनुष्ठान तभी पूरा होता है जब आह्वान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग उन तक पहुंचा दिया जाता है.