130 साल बाद मिलेगा फ्रांसीसी सेना के कैप्टन को प्रमोशन
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

फ्रांस में अल्फ्रेड द्रेफ्यूस को प्रमोशन देने की तैयारी चल रही है. फ्रांसीसी सेना के इस कैप्टन को गलत तरीके से 1894 में देशद्रोही करार दिया गया था.सोमवार को फ्रांस की संसद के निचले सदन ने इस मुद्दे पर पेश बिल पास कर दिया. यह एक ऐतिहासिक भूल सुधार की कार्रवाई है जिसका संबंध देश में कुख्यात गैरयहूदीवाद के इतिहास से है. फ्रांस की राष्ट्रीय संसद के निचले सदन में इससे जुड़ा बिल पारित होने के बाद इसे ऊपरी सदन सेनेट में बहस के लिए भेजा जाएगा. वहां इस पर बहस की तारीख अभी तय नहीं है. सेनेट से पारित होने के बाद अल्फ्रेड द्रेफ्यूस को ब्रिगेडियर जनरल के रैंक पर प्रमोट किया जाएगा. सेनेट में बिल पास होते ही यह प्रमोशन लागू हो जाएगा.

द्रेफ्यूस के इस प्रतीकात्मक प्रमोशन की पृष्ठभूमि वास्तव में19वीं सदी के आखिर में फ्रांसीसी सेना और समाज में व्यापक रूप से फैला गैरयहूदीवाद है. 129 साल बाद द्रेफ्यूस को यह प्रमोशन तब देने की तैयारी है, जब एक बार फिर देश में यहूदियों पर नफरती हमले तेज हो गए हैं.

संसद में यह बिल राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों की मध्यमार्गी पार्टी के नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री गाब्रिएल अटाल की तरफ से पेश किया गया. अटाल का कहना है, "अल्फ्रेड द्रेफ्यूस को ब्रिगेडियर जनरल के पद पर प्रमोट करना एक भूल सुधार की कार्रवाई, उनकी प्रतिभा को मान्यता और इस गणराज्य के लिए उनकी प्रतिबद्धता को सम्मान है." अटाल ने यह भी कहा, "जिस गैरयहूदीवाद ने द्रेफ्यूस को चोट पहुंचाई वह कोई अतीत की चीज नहीं." अटाल के पिता भी यहूदी थे और उनका कहना है कि फ्रांस को "हर तरह के भेदभाव को पूरी तरह से खत्म करने के प्रति अटल प्रतिबद्धता की" की दोबारा पुष्टि करनी चाहिए.

कौन हैं अल्फ्रेड द्रेफ्यूस

36 साल के आर्मी कैप्टन द्रेफ्यूस को अक्टूबर 1894 में तोपखाने के नए उपकरणों की खुफिया जानकारी जर्मन मिलीट्री अटैशे को देने का दोषी करार दिया गया. उन पर लगा आरोप एक दस्तावेज पर लिखावट के मेल से हुआ जो पेरिस में जर्मनों के रद्दी की टोकरी में मिला था. द्रेफ्यूस के खिलाफ मुकदमा चला, उस वक्त देश में गैरयहूदीवाद की लहर चल रही थी. हालांकि उपन्यासकार एमिली जोला ने तब कैप्टन के पक्ष में "आई अक्यूज" नाम का एक पर्चा निकाला था.

सबूत नहीं होने के बावजूद द्रेफ्यूस को देशद्रोही करार दिया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली. हालांकि खुफिया सेवा के प्रमुख लेफ्टिनेंट कर्नल जॉर्जेस पिकार्ट ने इस मामले की गोपनीय रूप से दोबारा छानबीन की और पता लगाया कि उस संदेश पर जो लिखावट थी वह सेना के एक और अधिकारी फर्डिनांट वाल्सिन एस्टहाजी की थी. जब पिकार्ट ने इसे फ्रेंच आर्मी के जनरल स्टाफ के सामने पेश किया तो उन्हें सेना से निकाल दिया गया और एक साल के लिए जेल में डाल दिया गया, जबकि एस्टरहाजी को बरी कर दिया गया.

द्रेफ्यूस के मूल्यों को जिंदा करने की कोशिश

जून 1899 में द्रेफ्यूस के खिलाफ दोबारा मुकदमा चला. पहले उन्हें दोषी पाया गया और फिर 10 साल के कैद की सजा मिली. उसके बाद उन्हें आधिकारिक रूप से माफी दे दी गई लेकिन दोषमुक्त नहीं किया गया. 1906 में काफी उठापटक के बाद हाईकोर्ट में की गई अपील ने पुराने फैसले को पलट कर उन्हें दोषमुक्त करार दिया. उसके बाद उन्हें मेजर के रैंक पर सेना में बहाल किया गया. वह पहले विश्वयुद्ध में लड़े और 1935 में 76 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई.

नया बिल पेश करने वालों की दलील है कि अगर द्रेफ्यूस ने सामान्य परिस्थितियों में अपनी नौकरी जारी रखी होती तो वह फ्रांसीसी सेना के शीर्ष पद पर पहुंचते. बिल का समर्थन करने वालों का कहना है कि द्रेफ्यूस को पेरिस की उस कब्रगाह में दफनाया जाता जो फ्रांस के महानायकों के लिए सुरक्षित है. यह फैसला तो राष्ट्रपति ही ले सकते हैं. राष्ट्रपति से जुड़े एक सूत्र ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि इस वक्त उनकी प्राथमिकता उन नैतिक मूल्यों को आगे ले जाना है जो आज भी प्रासंगिक हैं. ये मूल्य सत्य, न्याय, गैरयहूदीवाद और निरंकुशता के लिहाज से बेहद जरूरी हैं.

इस्राएल और अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा यहूदी फ्रांस में रहते हैं. इसके साथ ही यूरोपीय संघ में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी भी यही है. 7 अक्टूबर 2023 के इस्राएल पर हमास के हमले के बाद फ्रांस में यहूदी समुदाय के खिलाफ हमले बढ़ गए हैं. फ्रांस के होलोकॉस्ट मेमोरियल और पेरिस के तीन सिनेगॉग और एक रेस्तरां को भी निशाना बनाया गया है.