Sehat: शाकाहारियों में हिप फ्रैक्चर का जोखिम ज्यादा क्यों होता है? जानें क्या कहती है शोध की रिपोर्ट?

अच्छी सेहत के लिए एक तरफ हरी-सब्जियों एवं सलाद जैसे शाकाहार खाद्य-पदार्थों की वकालत होती हैं, वहीं मीट एवं चिकन के 0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a5%80-facebook-greetin-2498591.html"> Missing Day 2025 Wishes: मिसिंग डे की इन हिंदी  Facebook Greetings, WhatsApp Messages और Quotes के जरिए पार्टनर को दें बधाई Missing Day 2025 Wishes: मिसिंग डे की इन हिंदी Facebook Greetings, WhatsApp Messages और Quotes के जरिए पार्टनर को दें बधाई

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Sehat: शाकाहारियों में हिप फ्रैक्चर का जोखिम ज्यादा क्यों होता है? जानें क्या कहती है शोध की रिपोर्ट?

अच्छी सेहत के लिए एक तरफ हरी-सब्जियों एवं सलाद जैसे शाकाहार खाद्य-पदार्थों की वकालत होती हैं, वहीं मीट एवं चिकन के सेवन से कैंसर, हृदय रोग एवं कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के मुख्य कारक बताये जाते हैं, लेकिन हाल ही में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में हुए एक शोध की आई रिपोर्ट शाकाहारियों पर किसी वज्रपात से कम नहीं होगी.

सेहत Rajesh Srivastav|
Sehat: शाकाहारियों में हिप फ्रैक्चर का जोखिम ज्यादा क्यों होता है? जानें क्या कहती है शोध की रिपोर्ट?
हिप फ्रैक्चर (Photo Credit: AajTak)

अच्छी सेहत के लिए एक तरफ हरी-सब्जियों एवं सलाद जैसे शाकाहार खाद्य-पदार्थों की वकालत होती हैं, वहीं मीट एवं चिकन के सेवन से कैंसर, हृदय रोग एवं कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के मुख्य कारक बताये जाते हैं, लेकिन हाल ही में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में हुए एक शोध की आई रिपोर्ट शाकाहारियों पर किसी वज्रपात से कम नहीं होगी. रिपोर्ट के अनुसार मांसाहारियों की तुलना में शाकाहारियों में कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम 50 प्रतिशत ज्यादा होता है. यह शोध कब कहां और कितने प्रतिभागियों के बीच हुआ था, और शोध के बाद आई रिपोर्ट में क्या कुछ बताया गया है, आइये जानते हैं विस्तार से... यह भी पढ़ें: Vitamin K: बॉडी के लिए किस तरह जरूरी है विटामिन के? इसकी कमी से फेफड़े हो सकते हैं खराब

चार लाख से ज्यादा पर शोध

इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में 40 से 69 वर्ष के करीब चार लाख से ज्यादा प्रतिभागियों को चार समूहों में विभाजित किया. इसमें शोधकर्ताओं ने मीट, पेसिटेरियन और (मीट चिकन के बजाय फिश खाने वाले लोग) और शाकाहारी शामिल थे. शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के लिंग, जातीयता, पोषक तत्वों की खुराक का नियमित उपयोग, गतिविधि स्तर, धूम्रपान की स्थिति और शराब की खपत सहित कई दुविधाओं का हिसाब लगाया. इसके बाद औसतन साढ़े बारह साल बाद हिप फ्रैक्चर के जोखिम को देखा. ध्यान रहे कि उन्होंने जिन लोगों को पूर्व में हिप फ्रैक्चर या ऑस्टियोपोरोसिस हो चुका था, उन्हें शोध से बाहर कर दिया था.

शाकाहारियों में ही यह जोखिम अधिक क्यों होता है?

निष्कर्षों से मिले संकेत के अनुसार जो लोग शाकाहारी भोजन करते हैं, उनमें मीट अथवा मछली खाने वालों की तुलना में कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम 50 प्रतिशत अधिक था. शोधार्थियों के अनुसार इस जोखिम का मुख्य कारण शाकाहारी भोजन करने वाले प्रतिभागियों का लोअर बॉडी मास इंडेक्स हो सकता है. कम बीएमआई का मतलब मांसपेशियों और हड्डियों का पूरी तरह स्वस्थ ना होना और चोट से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए शरीर में जरूरी वसा की कमी से है. शोधार्थियों का अनुमान है कि बढ़े हुए कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम शाकाहारियों में प्रोटीन और अन्य प्रमुख पोषक तत्वों की कमी से संबंधित हो सकता है.

शाकाहारियों को चिंतित होने की जरूरत नहीं!

शाकाहारियों में कूल्हे के फ्रैक्चर के उच्च जोखिम के बावजूद, इसका आशय यह नहीं है कि लोगों को शाकाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शोध से जुड़े एक वैज्ञानिक के अनुसार, हमने पाया कि लिंग की परवाह किए बिना, नियमित मांस खाने वालों की तुलना में शाकाहारियों मे�व

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    अच्छी सेहत के लिए एक तरफ हरी-सब्जियों एवं सलाद जैसे शाकाहार खाद्य-पदार्थों की वकालत होती हैं, वहीं मीट एवं चिकन के सेवन से कैंसर, हृदय रोग एवं कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के मुख्य कारक बताये जाते हैं, लेकिन हाल ही में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में हुए एक शोध की आई रिपोर्ट शाकाहारियों पर किसी वज्रपात से कम नहीं होगी.

    सेहत Rajesh Srivastav|
    Sehat: शाकाहारियों में हिप फ्रैक्चर का जोखिम ज्यादा क्यों होता है? जानें क्या कहती है शोध की रिपोर्ट?
    हिप फ्रैक्चर (Photo Credit: AajTak)

    अच्छी सेहत के लिए एक तरफ हरी-सब्जियों एवं सलाद जैसे शाकाहार खाद्य-पदार्थों की वकालत होती हैं, वहीं मीट एवं चिकन के सेवन से कैंसर, हृदय रोग एवं कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के मुख्य कारक बताये जाते हैं, लेकिन हाल ही में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में हुए एक शोध की आई रिपोर्ट शाकाहारियों पर किसी वज्रपात से कम नहीं होगी. रिपोर्ट के अनुसार मांसाहारियों की तुलना में शाकाहारियों में कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम 50 प्रतिशत ज्यादा होता है. यह शोध कब कहां और कितने प्रतिभागियों के बीच हुआ था, और शोध के बाद आई रिपोर्ट में क्या कुछ बताया गया है, आइये जानते हैं विस्तार से... यह भी पढ़ें: Vitamin K: बॉडी के लिए किस तरह जरूरी है विटामिन के? इसकी कमी से फेफड़े हो सकते हैं खराब

    चार लाख से ज्यादा पर शोध

    इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स में 40 से 69 वर्ष के करीब चार लाख से ज्यादा प्रतिभागियों को चार समूहों में विभाजित किया. इसमें शोधकर्ताओं ने मीट, पेसिटेरियन और (मीट चिकन के बजाय फिश खाने वाले लोग) और शाकाहारी शामिल थे. शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के लिंग, जातीयता, पोषक तत्वों की खुराक का नियमित उपयोग, गतिविधि स्तर, धूम्रपान की स्थिति और शराब की खपत सहित कई दुविधाओं का हिसाब लगाया. इसके बाद औसतन साढ़े बारह साल बाद हिप फ्रैक्चर के जोखिम को देखा. ध्यान रहे कि उन्होंने जिन लोगों को पूर्व में हिप फ्रैक्चर या ऑस्टियोपोरोसिस हो चुका था, उन्हें शोध से बाहर कर दिया था.

    शाकाहारियों में ही यह जोखिम अधिक क्यों होता है?

    निष्कर्षों से मिले संकेत के अनुसार जो लोग शाकाहारी भोजन करते हैं, उनमें मीट अथवा मछली खाने वालों की तुलना में कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम 50 प्रतिशत अधिक था. शोधार्थियों के अनुसार इस जोखिम का मुख्य कारण शाकाहारी भोजन करने वाले प्रतिभागियों का लोअर बॉडी मास इंडेक्स हो सकता है. कम बीएमआई का मतलब मांसपेशियों और हड्डियों का पूरी तरह स्वस्थ ना होना और चोट से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए शरीर में जरूरी वसा की कमी से है. शोधार्थियों का अनुमान है कि बढ़े हुए कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम शाकाहारियों में प्रोटीन और अन्य प्रमुख पोषक तत्वों की कमी से संबंधित हो सकता है.

    शाकाहारियों को चिंतित होने की जरूरत नहीं!

    शाकाहारियों में कूल्हे के फ्रैक्चर के उच्च जोखिम के बावजूद, इसका आशय यह नहीं है कि लोगों को शाकाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शोध से जुड़े एक वैज्ञानिक के अनुसार, हमने पाया कि लिंग की परवाह किए बिना, नियमित मांस खाने वालों की तुलना में शाकाहारियों में हिप फ्रैक्चर का खतरा 50 प्रतिशत अधिक था. शाकाहारियों में कम बीएमआई ने इस जोखिम के अंतर को समझाया. यहां ध्यान देने की बात ह है कि शाकाहारियों में 50 प्रतिशत अधिक जोखिम अगल 10 वर्षों में घटकर प्रति एक हजार व्यक्ति पर तीन फ्रैक्चर के मामलों में तब्दील हो गया.

    शोध पर कुछ दोष!

    शोधकर्ता स्वतंत्र रूप से शाकाहारी लोगों का आकलन नहीं कर सके, उन्हें अपने आहार में पर्याप्त प्रोटीन और कैल्शियम नहीं मिल पाता है. प्रत्येक समूह के भीतर, विभिन्न गुणवत्ता वाले आहार की भी संभावना होती है, जो हिप फ्रैक्चर के जोखिम को प्रभावित कर सकता है. अधिकांश प्रतिभागी हिप फ्रैक्चर वालों की औसत आयु से कम थे, जो परिणाम पर प्रश्न खड़ी करते हैं. प्रतिभागियों की उम्र भी प्रभावित कर सकती है कि शोधकर्ताओं ने उम्र के आधार पर जोखिम में बदलाव क्यों नहीं देखा.

    शाकाहारियों में ही यह जोखिम अधिक क्यों होता है?

    निष्कर्षों से मिले संकेत के अनुसार जो लोग शाकाहारी भोजन करते हैं, उनमें मीट अथवा मछली खाने वालों की तुलना में कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम 50 प्रतिशत अधिक था. शोधार्थियों के अनुसार इस जोखिम का मुख्य कारण शाकाहारी भोजन करने वाले प्रतिभागियों का लोअर बॉडी मास इंडेक्स हो सकता है. कम बीएमआई का मतलब मांसपेशियों और हड्डियों का पूरी तरह स्वस्थ ना होना और चोट से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए शरीर में जरूरी वसा की कमी से है. शोधार्थियों का अनुमान है कि बढ़े हुए कूल्हे के फ्रैक्चर का जोखिम शाकाहारियों में प्रोटीन और अन्य प्रमुख पोषक तत्वों की कमी से संबंधित हो सकता है.

    शाकाहारियों को चिंतित होने की जरूरत नहीं!

    शाकाहारियों में कूल्हे के फ्रैक्चर के उच्च जोखिम के बावजूद, इसका आशय यह नहीं है कि लोगों को शाकाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शोध से जुड़े एक वैज्ञानिक के अनुसार, हमने पाया कि लिंग की परवाह किए बिना, नियमित मांस खाने वालों की तुलना में शाकाहारियों में हिप फ्रैक्चर का खतरा 50 प्रतिशत अधिक था. शाकाहारियों में कम बीएमआई ने इस जोखिम के अंतर को समझाया. यहां ध्यान देने की बात ह है कि शाकाहारियों में 50 प्रतिशत अधिक जोखिम अगल 10 वर्षों में घटकर प्रति एक हजार व्यक्ति पर तीन फ्रैक्चर के मामलों में तब्दील हो गया.

    शोध पर कुछ दोष!

    शोधकर्ता स्वतंत्र रूप से शाकाहारी लोगों का आकलन नहीं कर सके, उन्हें अपने आहार में पर्याप्त प्रोटीन और कैल्शियम नहीं मिल पाता है. प्रत्येक समूह के भीतर, विभिन्न गुणवत्ता वाले आहार की भी संभावना होती है, जो हिप फ्रैक्चर के जोखिम को प्रभावित कर सकता है. अधिकांश प्रतिभागी हिप फ्रैक्चर वालों की औसत आयु से कम थे, जो परिणाम पर प्रश्न खड़ी करते हैं. प्रतिभागियों की उम्र भी प्रभावित कर सकती है कि शोधकर्ताओं ने उम्र के आधार पर जोखिम में बदलाव क्यों नहीं देखा.

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