Uttar Pradesh Foundation Day Special: उत्तर प्रदेश का इतिहास लगभग 5 हजार वर्ष पुराना है. समय के साथ इसका नाम बदलता रहा है. 1 अप्रैल 1937 को ब्रिटिश शासन (British Rule) के दौरान इसे 'संयुक्त प्रांत आगरा' और 'अवध' के रूप में स्थापित किया गया था. ब्रिटिश शासनकाल में इसका नाम 'यूनाइटेड प्रॉविंस' (United Province) पड़ा, आजादी के बाद 24 जनवरी 1950 में इसका नामकरण 'उत्तर प्रदेश' (Uttar Pradesh) किया गया. इसे इस प्रदेश की त्रासदी ही कहा जाएगा, कि आजादी के करीब 70 साल बाद देश के इस सबसे बड़े प्रदेश (जनसंख्या और लोकसभाई सीटों के दृष्टिकोण से) को दिवस विशेष प्रदेशों में शामिल करने की सुधि अब आई. आइये जाने ‘उत्तर प्रदेश दिवस' की वे विशेष बातें, जो इसे खास बनाती है!
विश्व का सबसे बड़ा प्रदेश
विश्व का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश 70 साल का हो चुका है. प्राप्त सूचना आधार पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज 24 जनवरी से तीन दिन तक लखनऊ में 'उत्तर प्रदेश दिवस' मनाने का निर्णय लिया है. गौरतलब है कि उप्र के राज्यपाल राम नाईक की पहल पर साल 2018 से 'उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस' मनाया जा रहा है. जनसंख्या के आधार पर उत्तर प्रदेश एक विशाल राज्य है, जिसकी जन संख्या 22 करोड़ से ज़्यादा है. कहा जाता है कि इस राज्य की जनसंख्या इतनी विशाल है कि अगर उ.प्र. एक स्वतंत्र देश होता तो आबादी के आधार पर यूपी चीन, भारत, अमेरिका, इण्डोनेशिया और ब्राज़ील के बाद छठा सबसे बड़ा देश होता. वर्तमान में सबसे ज्यादा जिलों वाला राज्य उत्तर प्रदेश ही है वर्तमान में यहां कुल जहां 75 जिले हैं, और 80 लोकसभाई सीट तथा 403 विधान सभा की सीटें हैं.
शिव, राम, कृष्ण की नगरी
जिस भारत को गंगा-जमुनी तहज़ीब वाला देश कहा जाता है, उसका आधार वस्तुत: उत्तर प्रदेश ही है. 4000 साल पुराने इस प्रदेश की आध्यात्मिक पहचान यह है कि भगवान शिव की प्रिय नगरी काशी, भगवान श्रीराम की अयोध्या, श्रीकृष्ण की मथुरा और विश्व के सबसे बड़े मेले वाला शहर प्रयागराज इसी प्रदेश का हिस्सा हैं.
उत्तर प्रदेश का इतिहास
उप्र में 2000 ईसा पूर्व जब आर्य आए, तब से हिन्दू संस्कृति की नींव पड़ी. 400 ईसा पूर्व काल से नंद और मौर्यवंश के अलावा शुंग, कुषाण, गुप्त, पाल, और मुगलों के बाद ब्रिटिशर्स ने यहां शासन किया. यह राज्य सिर्फ हिन्दू संस्कृति नहीं बल्कि बौद्ध धर्म के प्रेरणादायी अतीत की गाथा की भूमि भी रही है.
साहित्य, संस्कृति और संगीत की त्रिवेणी
उ.प्र. कई धर्मों की संस्कृति का केंद्र है. वास्तुशिल्प, चित्रकारी, लोकसंगीत, लोकनृत्य से समृद्ध होने के साथ-साथ हिन्दुओं की प्राचीन सभ्यता का धरोहर भी है. यहां के विभिन्न आश्रमों में वैदिक साहित्य मन्त्र, मनुस्मृति, महाकाव्य वाल्मीकि रामायण, तुलसीकृत रामायण और महाभारत इसी प्रदेश में रचे गए. इस राज्य का संगीत से भी गहरा संबंध है. तानसेन और बैजू बावरा जैसे संगीतज्ञ मुग़ल शहंशाह अकबर के दरबार में थे, जो राज्य और समूचे देश में आज भी विख्यात हैं.
भारतीय संगीत के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध वाद्य सितार (वीणा परिवार का तंतु वाद्य) और तबले का विकास इसी काल के दौरान इस क्षेत्र में हुआ. हिंदी साहित्य की तो गंगोत्री ही रहा है यह प्रदेश. जहां गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास, भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानन्दन पन्त, मैथलीशरण गुप्त, सोहन लाल द्विवेदी, हरिवंशराय बच्चन, महादेवी वर्मा, राही मासूम रजा, हजारी प्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय आदि ने इसी प्रदेश में जन्म लिया.
हिन्दी या संस्कृत के अलावा उर्दू साहित्य एवं साहित्यकारों का भी गढ़ रहा है यह प्रदेश. फिराक़, जोश मलीहाबादी, अकबर इलाहाबादी, नज़ीर, वसीम बरेलवी, चकबस्त जैसे अनगिनत शायर उत्तर प्रदेश के नहीं बल्कि पूरे देश की शान रहे हैं.
पर्यटकों का भी पसंदीदा है यह राज्य
इस राज्य में एक से बढ़कर एक चीजें देखने लायक हैं. पर्यटकों के लिए उत्तर प्रदेश में बेहिसाब धार्मिक स्थल है तो वहीं मोहब्बत की सबसे खूबसूरत निशानी ताजमहल भी इसी राज्य में है. तीर्थ स्थानों में काशी, अयोध्या, विंध्याचल, चित्रकूट, शाकम्भरी देवी सहारनपुर, प्रयागराज, मथुरा, वृन्दावन, देवा शरीफ, नैमिषारण्य जैसी बड़ी सूची है, जिसे एक बार देखने की ख्वाहिश हर पर्यटन प्रेमी रखता है.