फाल्गुन का महीना काशीवासियों के लिए बहुत खास महीना होता है. फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से भी पुकारा जाता है. कहीं-कही इसे आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. शिव (Shiva) पुराण एवं अन्य पुराणों में भी उल्लेखित है कि शिवरात्रि (Shivratri) के दिन माता पार्वती से विवाह रचाने के बाद भगवान शिव रंगभरी एकादशी के दिन ही माता पार्वती का गौना कराने अपने ससुराल पहुंचे थे. शास्त्रों में लिखा है कि मथुरा (Mathura) अगर कृष्ण की प्यारी नगरी रही है तो काशी बाबा विश्वनाथ यानी भगवान शिव की सबसे प्यारी जगह है. और रंगभरी एकादशी के दिन तो काशी और भी न्यारी बन जाती है, आखिर भोले भंडारी अपनी प्रिय पत्नी पार्वती का गौना कराने जो पहुंचते हैं.
ससुराल के लिए विदा करने से पूर्व माता पार्वती की प्रतिमा पर परंपरानुरूप हल्दी एवं तेल का उबटन लगाया जाता है. इसके पश्चात उऩका सोलह श्रृंगार किया जाता है, उन्हें एक दुल्हन की तरह सजाया जाता है. उनके गौना के हर रश्म पर मंगल गीत गाये जाते हैं.
सोने के कटोरिया मे हल्दी लियावा हो...,
लगावा हो हरदी धीरे धीरे...,
नमोस्तूते मां गौरा नमोस्तूते..
वैदिक ब्राह्मणों का समूह भी शिव-पार्वती के सुखी दांपत्य जीवन के लिए पूरे विधि-विधान से मंत्रोच्चारण करते हैं. शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव जब पार्वती के प्रति आशक्त होते हुए उनका गौना कराने अपने ससुराल पहुंचे थे तो पार्वती की खुशी का ठिकाना नहीं था. शिवजी के साथ कैलाश पहुंचने के लिए पार्वती स्वयं सोलह श्रृंगार में रुचि लेती हैं. तत्पश्चात बाबा विश्वनाथ मंदिर के महंत माता पार्वती को ठंडई, पंचमेवा, व मिष्ठान का भोग लगाकर उनकी आरती उतारते हैं. इसके पश्चात चांदी की पालकी पर माता पार्वती की झांकी निकाली जाती है.
भगवान शिव का भी सोलह श्रृंगार किया जाता है. पार्वती जी का गौना कराने आये भगवान शिव अपने भक्तों के साथ पूरे गाजे-बाजे के साथ रंग और गुलाल की होली खेलते अपने ससुराल पहुंचते हैं. इस विशेष पर्व पर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी रंगों से सराबोर हो जाती है. हर शिव भक्त रंग और गुलाल की होली खेलते हुए शिव जी का भजन गाते हुए खुशियां मनाता है. यह भी पढ़ें- Holi 2019: बांके बिहारी के रंगों से सराबोर होने की दीवानगी है रंगभरनी एकादशी
जब शिव भी सामान्य बन जाते हैं
हिंदू शास्त्रों में उल्लेखित है कि भगवान शिव जितने भोलेभाले हैं उतनी ही जल्दी आक्रोशित हो उठते हैं. उनकी तीसरी आंख कब खुल जायेगी, किसी को पता नहीं, लेकिन प्रेमरस के सामने स्वयं शिभ भी अत्यंत सहज. सुलभ और साधारण से बन जाते हैं. कहते हैं कि प्रेम का देवता जिसे स्पर्श कर लेता है, वह बस प्रेमी ही बनकर रह जाता है. पार्वती के प्रेम के दीवाने भगवान शिवजी की भी कुछ ऐसी ही स्थिति हो जाती है. प्रेमरंग से सराबोर प्रेमी के लिए संपूर्ण जगत प्रेममय हो जाता है. आखिर यह रंगभरी एकादशी में वह कौन-सा रंग है जिसके आगे कृष्ण ही नहीं शिव भी सारी शक्तियों से परे एक प्रेम नायक बन जाते हैं.