बरसाना, नंद गांव और श्रीकृष्ण की जन्मभूमि ब्रज में होली खेलने के बाद अगले क्रम में वृंदावन की रंगभरनी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. फाल्गुन एकादशी के दिन मनाये जाने के कारण इसे रंगभरनी एकादशी का नाम दिया गया है. मान्यता है कि बरसाने और नंदगांव और ब्रज में होली खेलने के बाद श्री कृष्ण भगवान रंग-भरी एकादशी के दिन वृंदावन में भी होली खेलने आए थे.
क्या है लट्टमार होली के पीछे का संदेश
रंगभरनी एकादशी को लेकर एक वृंदावन में एक बेहद लोकप्रिय कथा है. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण फाल्गुन पूर्णिमा के दिन अपने ग्वाल बालों को लेकर राधा रानी के साथ होली खेलने उनके गांव बरसाने आया करते थे. परंतु राधारानी अपनी अपनी सखियों के साथ मिलकर उन्हें बांस और डंडों से मार कर भगाने का नाटक करती थीं. बाद में यही नाटक ‘लट्ठमार होली’ के नाम से लोकप्रिय हो गया. आज होली की यह परंपरा विश्व भर में लोकप्रिय है. कहते हैं श्रीकृष्ण महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे. किसी महिला को संकट में देखते तो तुरंत उसकी रक्षा करते थे. माना जाता है कि ‘लट्ठमार होली’ श्रीकृष्ण के उसी सदेश का आशय है. लट्ठमार होली खेलते समय महिलाएं इतने लाड़-प्यार से लट्ठ बरसाती थीं कि पुरुषों को गहरी चोट नहीं लगे.
महत्ता रंगभरनी एकादशी का
हिंदू शास्त्रों के अनुसार रंग भरनी एकादशी का खास महत्व होता है. इस दिन वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. भारत ही नहीं सात समंदर पार से भी कृष्णभक्त वृंदावन आते हैं, और बांके बिहारी के रंगों से सराबोर हो स्वयं को कृतार्थ मानते हैं.
इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, इसका हिस्सा बनने के लिए भारी संख्या में भक्तगण वृंदावन में मंदिर के बाहर डेरा डालना शुरू कर देते हैं. प्रातःकाल साढ़े चार बजे जैसे ही मंदिर के कपाट खुलते हैं, भक्तों का सैलाब-सा उमड़ पड़ता है. यह समय श्री बांके बिहारी की आरती का वक्त होता है. इस दिन श्वेत वस्त्रों और सोलह श्रृंगार में बांके बिहारी की खूबसूरती देखते बनती है.
बांके बिहारी के प्रति भक्तों दीवानगी
दोपहर बाद बांके बिहारी चांदी की पिचकारी से भक्तों पर केशर मिला खुशबूदार रंगों की फुहारें छोड़ते हैं. उनके हाथों में रंगभरी पिचकारी देखते ही भक्तों में एक अजीब सा उत्साह पैदा हो जाता है. उनके बीच इस रंग को प्रसाद स्व्ररूप ग्रहण करने की होड़-सी मच जाती है. हर कोई बांके बिहारी के रंग से सराबोर होना चाहता है. उनके मुखारबिंदु की एक झलक पाकर वे अपने आप को धन्य मानने लगते है. मंदिर प्रांगण में अबीर-गुलाल के गुबारों और होरी गीत से सराबोर संपूर्ण परिदृश्य एकदम अलौकिक सा नजर आता है. मानों हम द्वापर युग में पहुंच गये हों. कृष्ण भक्ति में दीवाने होकर लोग नृत्य करने लगते हैं. रंगों का यह उत्सव देर शाम तक चलता है. होली खेलने के बाद बांकेबिहारी जी को शयनभोग में गरम-गरम जलेबी परोसी जाती है. यह परंपरा भी सदियों से चली आ रही है. सूर्यास्त के पश्चात आरती के बाद बांके बिहारी शयन के लिए चले जाते हैं. यह भी पढ़ें- Holi 2019: नंदगांव की लट्ठमार होली, जब राधा गोपियो संग श्रीकृष्ण से लेने पहुंची थी 'फगुवा'
इस बार होली का दुगना आनंद ले सकेंगे भक्त
इस बार जबकि 17 मार्च को रंगभरनी एकादशी का पर्व पड़ रहा है. इससे पूर्व बांके बिहारी शाम के समय भक्तों के साथ होली खेलते थे, लेकिन इस बार नये कार्यक्रम के अनुसार पहली बार दिन में भी बांके बिहारी भक्तों के साथ होली खेलेंगे. होली खेली जाएगी. यानी 17 मार्च की सुबह श्रृंगार आरती के बाद साढ़े आठ बजे से ही बांके बिहारी जी भक्तों पर रंग बरसाना शुरू कर देंगे. पहले वह फूलों की होली खेलेंगे, तत्पश्चात रंगों की होली होगी. यह रंगारंग पर्व दोपहर एक बजे राजभोग की आरती तक चलेगा. इसके पश्चात ठाकुर जी शयनकक्ष में प्रवेश कर जायेंगे. फिर सायंकाल साढ़े चार बजे पुनः ठाकुर जी दर्शन देंगे और रात साढ़े आठ बजे तक होली खेली जायेगी. इसके पश्चात 20 मार्च को भी शयन आरती तक होली खेली जायेगी. इसके पीछे यही वजह है कि दूरदराज से आये अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को बांके बिहारी के साथ रंग खेलने का अवसर मिल सकेगा.