Holi 2019: होली (Holi) की चर्चा होगी तो बरसाने (Barsana) और नंदगांव (Nandgaon) की होली के जिक्र के बिना बात पूरी नहीं होगी. क्योंकि यह पर्व राधा-कृष्ण (Radha Krishna) के प्रेम का प्रतीक भी है. इस जादुई आकर्षण वाले प्रेमोत्सव का बरसाने और नंदगांव में बड़ा दिव्य स्वरूप देखने को मिलता है. फाल्गुन पूर्णिमा के दिन बरसाने में ‘लट्ठमार होली’ (Lathmar Holi) का जमकर आयोजन होता है. अगले दिन बरसाने की राधारानी हुरियारिनों (गोपियों) संग नंदगांव में कृष्ण और उनके हुरियारों (ग्वालबाल) के साथ होली खेलने पहुंच जाती हैं. इस ‘लट्ठमार होली’ की तैयारियां एक माह पूर्व ही शुरु हो जाती है. जब नंदगांव और बरसाने की गोपियां अपनी लाठियों को चमकाने में जुट जाती हैं.
ब्रज की होली में नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं. कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं. नंदगांव की टोली के लोग जब पिचकारियां लेकर बरसाना पहुंचते हैं तो बरसाने की महिलाएं उन पर लाठियां बरसाती हैं. पुरुषों को इन लाठियों से खुद को बचाते हुए महिलाओं को रंगों से सराबोर करना होता है. नंदगांव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि लाठियों के प्रहार से उन्हें गहरी चोट नहीं लगती, और कभी लग जाती है तो वहीं की मिट्टी घाव पर लगाकर पुनः महिलाओं को रंगने के प्रयास में जुट जाते हैं. होली के रंगों में मस्ती घोलने के लिए भांग और ठंडाई का भी इंतज़ाम होता है. राधा-कृष्ण के प्रेम की स्मृतियों को ताजा करते हुए कीर्तन मण्डलियां गाती हैं... यह भी पढ़ें: Holi 2019: विश्व प्रसिद्ध है बरसाने की 'लट्ठमार होली', द्वापर युग में जहां श्रीकृष्ण और राधा साथ मिलकर मनाते थे यह पर्व
‘कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी’,
‘फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर’
बरसाने में राधा और उनकी सखियों के संग फूलों और रंगों से ‘लट्ठमार होली’ और ठिठोली करने के पश्चात कृष्ण अपने गोप साथियों के साथ नंदगांव लौट आते हैं.
कृष्ण और ग्वालों के नंदगांव वापस लौटने के बाद राधा और गोपियां उस विरह को बर्दाश्त नहीं कर पातीं. कृष्ण से दुबारा मिलने की चाहत में राधा के मन में एक विचार आता है. वह गोपियों से कहती हैं कि कन्हैया होली खेलने बरसाने आये और बिना फगुवा (नेग) दिए नंदगांव लौट गए, यह उचित नहीं है. राधा और गोपियां फैसला करती हैं कि कृष्ण से होली का फगुवा लेने वह सभी नंदगांव जायेंगी. नंदगांव राधारानी के गांव से बरसाना केवल 8 किमी दूर है. अगले दिन प्रातःकाल उठकर राधा बरसाने की सभी सखिंयों को एकत्र करती हैं और अपने कन्हैया के नंदगांव पहुंचती हैं.
‘दशमी दिन आ बरसाने हुरियारिन आ नंदगांम
सजीं समकीलि कल कौ बदलौ आज देंय चुकाय
बराबर हो कह गोरी रसीली’ यह भी पढ़ें: Brij Holi 2019 Dates: उत्तर प्रदेश के बरसाना, मथुरा और वृंदावन में होली महोत्सव की धूम, जानिए यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की तिथि और पूरी लिस्ट
राधा गोपियों संग नंदगांव पहुंचती हैं. कृष्ण भी ग्वाल-बाल को एकत्र करते हैं. इसके पश्चात होली और ठिठोली के बहाने राधा-कृष्ण की प्रेम लीला शुरु हो जाती है. कहते हैं, राधा-कृष्ण की इस अलौकिक होली-लीला को देखने के लिए भगवान सूर्य भी कुछ पल के लिए स्थिर रह जाते हैं. उधर अपने कन्हैया के संग होली खेलने के लिए व्याकुल गोपियां सूर्य देव से प्रार्थना करती हैं
सूरज छिप मत जइयो
आज श्याम संग होरी खेलूंगी.
राधा-कृष्ण के इस प्रेम-लीला के प्रतीक स्वरूप आज भी बरसाने की युवतियों नंदगांव के युवकों के बीच कहीं फूलों की तो कहीं लट्ठमार होली खेली जाती है. आज भी दोनों पक्षों के बीच सूर्यास्त होने तक ब्रज में जगह-जगह लट्ठमार होली चलती है. युग बदल गया मगर प्रेम का प्रतीक लट्ठमार होली की परंपरा ज्यों का त्यों दिखता है. यह नजारा देख चुके लोगों का कहना है आपने बरसाना और नंदगांव की होली नहीं देखी तो कुछ नहीं देखा. जहां आज भी लट्ठों की तड़-तड़ के बीच प्रेम के फूल बरसते हैं, परंपराओं के अबीर-गुलाल उड़ते हैं. ऐसा लगता है हम कलियुग से द्वापर युग में आ गये हों. रिश्तों की मिठास क्या होती है, यह ब्रजवासियों से सीखिये.
नोट- इस लेख में दी गई जानकारियां लेखक की अपनी निजी राय है. इसकी वास्तविकता और सटीकता का हम कोई दावा नहीं करते हैं.