जयपुर: इतिहास के पन्नों में महाराणा प्रताप के शौर्य एवं जांबाजी के बहुतायत किस्से मिलते हैं. अकबर अथवा उनके सेनापति मानसिंह ने जब-जब राणा प्रताप पर भारी सैन्य बलों और खतरनाक तोप-गोलों के साथ आक्रमण किया, हर बार, हर मोर्चे पर अकबर को बुरी हार का सामना करना पड़ा. ऐसा ही एक भयंकर युद्ध 18 जून 1576 के दिन राणा प्रताप और मानसिंह के बीच हुआ था. इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध में मानसिंह के साथ अकबर की 80 हजार सेना थी, लेकिन बहादुरी की मिसाल राणा प्रताप ने अपने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ करीब 4 घंटे तक चले इस युद्ध में बीस हजार से ज्यादा सैनिक कालकवलित हुए. यह मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध है, जो बाद में हल्दीघाटी युद्ध के नाम चर्चित हुआ. इतिहासकार बताते हैं कि इस युद्ध में राणा प्रताप हारकर भी जीत गये थे. हल्दीघाटी का यह युद्ध कब और किन परिस्थितियों में हुआ, क्या थी उसकी कहानी आइये जानें...गौरतलब है कि यह युद्ध 443 साल पहले, आज ही के दिन 1576 में लड़ी गई थी.
हल्दीघाटी का दर्रा इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच हुए भयंकर युद्ध के कारण दुनिया भर में मशहूर है. यह राजस्थान में एकलिंगजी से करीब 18 किमी की दूरी पर है. वास्तव में यह अरावली पर्वत श्रृंखला खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य स्थित एक दर्रा है, जो राजसमन्द और पाली जिलों को जोड़ता है. उदयपुर शहर से करीब 40 किमी की दूरी पर स्थित इस क्षेत्र का नाम 'हल्दीघाटी' इसलिए पड़ा क्योंकि यहां की मिट्टी हल्दी जैसी पीले रंग की है.
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क्यों हुआ था हल्दीघाटी युद्ध
महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. वर्ष 1572 में महाराणा प्रताप मेवाड़ के शासक बने. 1500 के मध्य तक, मुग़ल सम्राट अकबर संपूर्ण भारत पर शासन करने के अभियान में तेजी से छोटे-मोटे राज्यों पर आक्रमण कर अपना राज्य और ताकत बढ़ा रहे थे. मेवाड़ को छोड़कर लगभग सभी राजपूत राजा अकबर के सामने आत्मसमर्पण कर चुके थे. लेकिन महाराणा प्रताप के सशक्त नेतृत्व के समक्ष मेवाड़ के सैनिक किसी भी कीमत पर अकबर के सामने नतमस्तक को तैयार नहीं थे.
शर्तों पर संधि
कहा जाता है कि लगभग तीन साल तक प्रतीक्षा करने के पश्चात अकबर ने अपने बेहद विश्वस्त राजा मानसिहं को शांति संधियों पर बातचीत करने के लिए भेजा. संधि-पत्र पत्र पढ़कर महाराणा प्रताप ने संधि पत्र पर हस्ताक्षर करने से पूर्व शर्त रखी कि वह किसी भी शासक के नेतृत्व के नीचे राज नहीं करेंगे. विदेशी शासकों का हस्तक्षेप तो हरगिज बर्दाश्त नहीं करेंगे.
भाई बना विभीषण
राणा प्रताप के पास अनुभव और संसाधनों का अभाव था. यह बात मान सिंह जानता था. इसलिए उसने लगभग 50 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप के गढ़ पर आक्रमण कर दिया. मानसिंह को विश्वास था कि राणा प्रताप को परास्त करने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. लेकिन शीघ्र ही मान सिंह के साथ ही अकबर को अपनी भूल का अहसास हो गया. क्योंकि वे जिस तरह राणा प्रताप को कमजोर समझ रहे थे, वह वास्तव में उनकी गलतफहमी थी. मान सिहं के आक्रमण करने के साथ ही भील जनजाति की छोटी सी सेना, ग्वालियर की तन्वर सेना, मेरठ के राठौरों ने मुगल सेना को चारों तरफ से घेरकर आक्रमण कर दिया. उधर महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व कमांडर हकीम खान कर रहे थे. ये कई छोटे-छोटे हिंदू मुस्लिम राज्य थे जो महाराणा प्रताप के शासन के अधीन थे. वे सभी मुगलों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए कृतसंकल्प थे. लेकिन इस दौरान राणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह जाकर मुगल सैनिकों से मिल गया. उसने मुगलों के समक्ष महाराणा की सारी सैन्य रणनीति और खुफिया रास्ते बता दिया.
जब हजारों सैनिकों की मौत का गवाह बना हल्दीघाटी
21 जून 1576 को महाराणा प्रताप और अकबर की सेना हल्दीघाटी में आमने सामने खड़ी थी. सम्राट अकबर की तरफ से नेतृत्व कर रहे सेनापति मानसिंह और राणा प्रताप के बीच भयंकर लड़ाई छिड़ गयी. मानसिंह और उसके सैनिकों ने महाराणा प्रताप की सेना के बारे में जो धारणा बनाई थी, वह युद्ध शुरु होते ही गलत साबित हुई. महाराणा प्रताप की तरफ से तीन तरफ से मुगलों सेना पर तीन तरफा हमला से मुगल हतप्रभ रह गये. मुगल सेना की टूटते विश्वास को देखते हुए मान सिंह ने महाराणा प्रताप पर पूरी ताकत के साथ आक्रमण कर दिया. क्योंकि उसने देख लिया था कि राणा प्रताप के पास ज्यादा फौज नहीं थी. धीरे-धीरे मेवाड़ की सेना निढाल पड़ने लगी. मान सिंह और उसके सैनिकों के आक्रमण से महाराणा प्रताप गंभीर रूप से घायल हो चुके थे. राणाप्रताप को युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकालने के लिए बेताब झाला सरदार ने बड़ी सफाई से राणा प्रताप की चांदी का कवच स्वयं पहन लिया, राणा प्रताप को कुछ सैनिकों द्वारा सुरक्षित युद्ध स्थल से बाहर निकालने में कामयाब हो गये. इसी बीच मान सिंह की नजर राणा प्रताप की वेषभूषा में झाला सरदार पर नजर पड़ी, मान सिंह ने तुरंत अपनी तलवार से झाला सरदार का वध कर दिया. मगर जब मान सिंह को पता चला कि उसने राणा प्रताप के धोखे में झाला सरदार की हत्या कर दी है, तो वह सिर पीट कर रह गया. महज 4 घंटे चले इस युद्ध में राणा प्रताप और अकबर के हजारों सैनिक कालकवलित हुए. खून से सने इस हल्दी घाटी में राणा प्रताप के करीबी झाला मान सिंह, हाकिम खान और ग्वालियर नरेश राम शाह तंवर सहित कई देशभक्त भी बलिदान हुए. इस युद्ध में राणाप्रताप की जान बचाने के चक्कर में उनका प्रिय घोड़ा चेतक भी मारा गया था.
शोध बताते हैं कि राणा प्रताप ने ही जीता था युद्ध
शोध बताते हैं कि हल्दीघाटी की इस लड़ाई में राणा प्रताप ने अकबर को हराया था. क्योंकि युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में बांटे थे, जिन पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर भी थे. उस समय जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को ही होता था, जिससे साबित होता है कि राणा प्रताप ने ही हल्दीघाटी का युद्ध जीता था. इसी शोध के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध हारने के कारण अकबर सेनापति मान सिंह व आसिफ खां पर नाराज भी हुए थे और दोनों को सजा स्वरूप छह महीनें तक दरबार में नहीं आने की सजा सुनाई थी. अगर मुगल सेना जीती होती तो अकबर उन्हें दंडित नहीं करते.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.