रेप (Rape) और वर्जिनिटी (Virginity) जांचने के किए जाने वाले टू फिंगर टेस्ट (Two Finger Test) को मेडिकल की किताबों से बाहर निकाल देना चाहिए. ऐसा वर्धा (Vardha) के फॉरेंसिक मेडिसिन प्रोफेसर इंद्रजीत खांडेकर (Indrajit Khandekar) का कहना है. इस बारे में डॉक्टर ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ( Medical Council of India) को एक रिपोर्ट सौंपी है. यह रिपोर्ट 30 एमबीबीएस (Bachelor of Medicine and Bachelor of Surgery) और पोस्ट ग्रैजुएशन फॉरेंसिक मेडिसिन टेक्स्टबुक के रिसर्च पर आधारित है. इस मामले में उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) को भी पत्र लिखा था.
इस रिपोर्ट के मुताबिक किसी महिला के साथ बलात्कार हुआ है या नहीं यह जानने के लिए डॉक्टर टू फिंगर टेस्ट करते हैं. वर्जिनिटी टेस्ट और हाइमन की जांच भी टू फिंगर टेस्ट से ही होती है. डॉक्टर का कहना है कि इस टेस्ट की वजह से महिलाओं को मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है. डॉक्टर के अनुसार टेस्ट करने का यह तरीका पूरी तरह से अवैज्ञानिक है. बहुत सारे रिसर्च से यह बात सामने आई है कि महिलाओं के प्राइवेट पार्ट में मौजूद हाइमन की जांच से यह पूरी तरह पता नहीं लगाया जा सकता कि महिला के साथ बलात्कार हुआ है या नहीं ? क्योंकि बीना यौन संबंधों के भी हाइमन फट जाता है.
ज्यादा शारीरिक मेहनत और स्पोर्ट्स में हिस्सा लेनेवाली महिला खिलाड़ियों का हाइमन अक्सर फट जाता है. इसके बावजूद मेडिकल की किताबों में स्टूडेंट्स को इस अवैज्ञानिक टू फिंगर टेस्ट के बारे में पढ़ाया जा रहा है. यह कोर्स में है इसलिए बेवजह स्टूडेंट्स को पढ़ाया जा रहा है ताकि कोर्ट या पुलिस के निर्देश पर इस टेस्ट को किया जा सके.
आपको बता दें टू फिंगर टेस्ट से रेप पीड़ित महिलाओं को होनेवाले मानसिक यातनाओं की वजह से सुप्रीम कोर्ट साल 2013 में इस पर रोक लगा दी थी.