नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारत में LGBTQIA+ समुदाय को विवाह समानता का अधिकार देने से इनकार कर दिया है. समलैंगिक विवाह पर जस्टिस रवीन्द्र भट्ट ने कहा, "विवाह करने का अयोग्य अधिकार नहीं हो सकता जिसे मौलिक अधिकार माना जाए. हालांकि हम इस बात से सहमत हैं कि रिश्ते का अधिकार है, हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि यह अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है. इसमें एक साथी चुनने और उनके साथ शारीरिक संबंध का आनंद लेने का अधिकार शामिल है जिसमें गोपनीयता, स्वायत्तता आदि का अधिकार शामिल है. इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि जीवन साथी चुनने का विकल्प मौजूद है." एलजीबीटी समुदाय समेत सभी व्यक्तियों को पार्टनर चुनने का अधिकार, समलैंगिक कपल ले सकते हैं बच्चों को गोद.
न्यायमूर्ति भट का कहना है कि वह समलैंगिक जोड़ों के बच्चा गोद लेने के अधिकार पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ से असहमत हैं और इस मामले पर कुछ चिंताएं जताते हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिग कपल को बच्चे गोद लेने का अधिकार दे दिया है. कोर्ट ने कहा कि जीवन साथी चुनना किसी के जीवन का महत्वपूर्ण निर्णय माना जा सकता है. यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के मूल में है.
Supreme Court refuses to give marriage equality rights to the LGBTQIA+ community in India pic.twitter.com/IFjRVo0DRZ
— ANI (@ANI) October 17, 2023
सीजेआई ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो और सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया.सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी, हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर 'गरिमा गृह' बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए. CJI ने पुलिस को समलैंगिक जोड़े के संबंधों को लेकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया.