नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह मामले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (D Y Chandrachud) ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक लोगों के साथ उनके यौन रुझान के आधार पर भेदभाव न किया जाए. सीजेआई ने कहा, "यौन अभिविन्यास के आधार पर संघ में प्रवेश करने का अधिकार प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है. विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यक्तिगत कानूनों सहित मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है. समलैंगिक जोड़े सहित अविवाहित जोड़े संयुक्त रूप से एक बच्चे को गोद ले सकते हैं. CJI ने कहा कि समलैंगिकों को अपने परिवार के पास लौटने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. समान रूप से कमाने वाली पत्नी को मिलेगा अंतरिम भरण-पोषण? जानें दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा.
CJI का कहना है कि ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह साबित करती हो कि केवल एक विवाहित विषमलैंगिक जोड़ा ही बच्चे को स्थिरता प्रदान कर सकता है. सीजेआई का कहना है कि समानता की मांग है कि व्यक्तियों के साथ उनके यौन रुझान के आधार पर भेदभाव न किया जाए.
सभी को समान अधिकार
Same-sex marriage | CJI says, "This Court has recognised that queer persons are not discriminated against and their union cannot be discriminated against based on sexual orientation. All persons, including queer persons, have the right to judge the moral quality of their lives.…
— ANI (@ANI) October 17, 2023
सीजेआई ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो और सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया. सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी, हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर 'गरिमा गृह' बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए.
समलैंगिक विवाह पर सीजेआई का कहना है, "इस न्यायालय ने माना है कि समलैंगिक व्यक्तियों के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है और उनके संघ में यौन अभिविन्यास के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है. समलैंगिक व्यक्तियों सहित सभी व्यक्तियों को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का न्याय करने का अधिकार है."