नई दिल्ली, 7 सितंबर: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि सर्वोच्च अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को अपराध की श्रेणी से मुक्त किये जाने से समलैंगिकों को कानूनी रूप से अधिकारसंपन्न नागरिक बनने में मदद मिली है. TTD: तिरुमाला श्रीवारी मंदिर 25 अक्टूबर और 8 नवंबर को सूर्य और चंद्र ग्रहण के कारण बंद रहेगा
उन्होंने कहा कि न्यायालय के इस फैसले ने समलैंगिकों को अधिकार और गर्व के साथ अपने हक की मांग करने में सक्षम बनाया, लेकिन फिर भी हाशिये पर खड़े वैसे लोगों के लिए सकारात्मक कानूनी प्रभाव सुनिश्चित करने के वास्ते ढांचागत बदलावों की आवश्यकता है, जो लगातार उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने मंगलवार को आईआईटी-दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा कि समलैंगिक व्यक्ति अपनी जाति और वर्ग की स्थिति के कारण कानून के दुरुपयोग के लिहाज से अतिसंवेदनशील और कमजोर हैं.
उन्होंने कहा कि ‘नवतेज सिंह जौहर’ मामले में सर्वोच्च अदालत का छह सितंबर, 2018 का फैसला याचिकाकर्ताओं की कहानियों और अनुभवों के बिना संभव नहीं होता. न्यायालय ने अपने फैसले में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘आज एक विशेष मौका भी है, क्योंकि हमें नवतेज सिंह जौहर मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले की चौथी वर्षगांठ मनाने का मौका मिला है. धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से समलैंगिकों को कानूनी रूप से सशक्त नागरिक बनने का मौका मिला और वे अपने अधिकारों की मांग करने में सक्षम हो सके, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए अब भी ढांचागत बदलावों की आवश्यकता है....’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विविधता का अपने आप में एक आंतरिक मूल्य है और यह निष्पक्षता तथा सामाजिक न्याय की हमारी समझ को आगे बढ़ाता है. उन्होंने कहा कि आईआईटी के छात्रों ने धैर्य के साथ अदालतों में धारा 377 को चुनौती देने का फैसला किया.
उन्होंने कहा कि विज्ञान में नवाचार तभी होता है, जब किसी में विभिन्न प्रकार के सवाल पूछने, समस्या को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने और नयी अंतर्दृष्टि प्राप्त करने का साहस होता है.
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