'पुरुषों को पीरियड्स होता, तो उन्हें महिलाओं का कष्ट समझ आता', सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश HC को लगाई फटकार

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा राज्य की छह महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है. मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने महिलाओं जजों की सेवाओं को समाप्त करने के फैसले पर सवाल उठाए और उन्हें फिर से बहाल करने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने कहा, "काश, पुरुषों को माहवारी होती, तब शायद वे समझ पाते." कोर्ट ने यह टिप्पणी अप्रत्यक्ष रूप से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के लापरवाह रवैये पर की, जिसने महिलाओं जजों की बर्खास्तगी का फैसला लिया था, जबकि उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति को सही से नहीं समझा गया.

जस्टिस नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान कहा, "अगर महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से कष्ट में हैं, तो यह कहना कि वे धीरे काम कर रही हैं और उन्हें घर भेज दिया जाए, यह गलत है. अगर पुरुष जजों और न्यायिक अधिकारियों के लिए समान मापदंड हों, तो हम देखेंगे कि क्या होता है." कोर्ट ने यह भी कहा कि जिला न्यायालयों में मामलों के निपटारे के लिए लक्ष्य तय करना अनुचित है जब जज खुद मानसिक और शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे हों.

इस मामले पर अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी. कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से कहा है कि वह इन महिला जजों की बर्खास्तगी के मामले पर पुनः विचार करें और उन पर सख्त फैसला लें. जिन छह जजों की सेवाएं समाप्त की गई हैं, वे हैं: सरिता चौधरी, प्रिया शर्मा, रचना अतुलकर जोशी, अदिति कुमार शर्मा, सोनाक्षी जोशी, और ज्योति बारखड़े.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पिछले जुलाई में भी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि वह महिला जजों की सेवाओं को बहाल करने या उनके मामले पर पुनर्विचार करें.