Artificial Rain: कैसे करवाई जाती है नकली बारिश, हवा का रुख बदलते ही दिल्ली की बजाय मेरठ में हो जाएगी वर्षा!

दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए 'आर्टिफिशियल रेन' यानी कृत्रिम बारिश करवाने पर विचार कर रही है. लेकिन आखिर कैसी करवाई जाती है नकली बारिश और इसका क्या असर होता है?दिल्ली को गहराते वायु प्रदूषण की मार से बचाने के लिए दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश करवाने की योजना बना रही है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा है कि इस विषय में आईआईटी कानपुर की एक टीम ने 12 सितंबर को ही सरकार को प्रस्ताव दिया था.

उम्मीद की जा रही है कि बारिश की वजह से प्रदूषण से कुछ राहत मिलेगी. राय ने बताया कि आईआईटी ने इसके लिए कुछ प्रयोग बारिश के मौसम में किए हैं लेकिन सर्दियों के लिए यह एक नया प्रयोग होगा क्योंकि इसके लिए न्यूनतम 40 प्रतिशत बादलों का कवर होना चाहिए.

आर्टिफिशियल बारिश में कई समस्याएं भी सामने आती है. आर्टिफिशियल बारिश के दौरान अगर हवा का रुख बदलता है तो दिल्ली की बजाय मेरठ में वर्षा होने लगेगी.

कैसे होती है कृत्रिम बारिश

कृत्रिम बारिश क्लाउड सीडिंग नाम की तकनीक के जरिये करवाई जाती है. इसके तहत बादलों पर सिल्वर आयोडाइड और क्लोराइड जैसे नमक के कणों का छिड़काव किया जाता है. कहीं पर इसके लिए एक विशेष विमान का इस्तेमाल किया जाता है, कहीं रॉकेट का और कहीं जमीन पर मौजूद विशेष उपकरणों का.

नमक के यह कण बादल में मौजूद वाष्प को अपनी तरफ खींच लेते हैं. इससे नमी भी खिंची चली आती है जो गाढ़ी हो कर पानी की बूंदों का रूप धर लेती है और बारिश बन कर बरस जाती है. कोशिश यह होती है कि बादल के प्राकृतिक विकास के क्रम को बदल दिया जाए ताकि कृत्रिम रूप से बारिश करवाई जा सके.

दुनिया भर में कई दशकों से इसे लेकर कई प्रयोग किए जा रहे हैं. 'मोंगाबे' वेबसाइट पर छपे एक लेख के मुताबिक 1946 में पहली बार दो अमेरिकी वैज्ञानिक विंसेंट शेफर और बर्नार्ड वोन्नेगु ने ड्राई आइस का इस्तेमाल कर क्लाउड सीडिंग में सफलता हासिल की थी.

खेलों से लेकर शादियों तक के लिए

आज दुनिया भर के कम से कम 56 देशों में क्लाउड सीडिंग के अलग अलग कार्यक्रम चल रहे हैं. अमेरिका, चीन, माली, थाईलैंड, यूएई आदि जैसे देश सूखे का मुकाबला करने के लिए इसका इस्तेमाल करते आए हैं.

2008 में बीजिंग ओलंपिक खेलों के दौरान इसका इस्तेमाल यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि उद्घाटन और समापन समारोह के समय बारिश ना हो. इसके लिए क्लाउड सीडिंग की मदद से पहले ही बारिश करवा ली गई थी.

बल्कि आजकल कुछ लग्जरी ट्रैवल कंपनियां शादी के पहले बारिश करवाने का काम भी करती हैं ताकि शादी के दिन बारिश ना हो. यानी इस तकनीक का इस्तेमाल अब निजी और लग्जरी उद्देश्यों के लिए भी होने लगा है. भारत में भी क्लाउड सीडिंग के प्रयोग 1950 के दशक से चल रहे हैं. हालांकि अभी तक इस पर कोई राष्ट्रीय नीति या कार्यक्रम नहीं बनाया गया है.

दिल्ली में गोपाल राय ने बताया कि मौसम विभाग के मुताबिक 20 और 21 नवंबर को बादलों के होने का पूर्वानुमान है. सरकार ने आईआईटी को कहा है कि इन्हीं तारीखों पर कृत्रिम बारिश करवाने की तैयारी शुरू कर दी जाए. सरकार सुप्रीम कोर्ट की इजाजत मिलने के बाद इस योजना पर आगे बढ़ेगी.