म्यांमार में दुर्लभ खनिज खोद निकालने में क्यों लगा है चीन
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

म्यांमार खनिजों की होड़ में फंसा हुआ है. एक्टिविस्टों ने डीडब्ल्यू को बताया कि देश के काचिन राज्य में इन दुर्लभ खनिजों का दोहन ना सिर्फ लोगों की मौतों का कारण बन रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है.लहतव काई अपने हाथों से हवा में एक पहाड़ बनाती हैं और अपनी उंगलियों से उस पर छोटे-छोटे छेद करती हैं. म्यांमार की पर्यावरण कार्यकर्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "वह पहाड़ की चोटी पर छेद करते हैं और फिर अमोनियम नाइट्रेट जैसे रसायनों को उसके जरिए जमीन में डालते हैं ताकि नीचे से दुर्लभ खनिजों को निकाला जा सके.”

लहतव काई, जिनका नाम सुरक्षा कारणों से बदला गया है. वह उस प्रक्रिया को समझा रही थी, जिसे इन-सिटू लिचिंग कहा जाता है. जिसका इस्तेमाल म्यांमार के उत्तरी काचिन राज्य में दुर्लभ खनिजों की खुदाई के लिए दशकों से किया जा रहा है. इस प्रक्रिया की शुरुआत पहाड़ की चोटी से होती है, जहां रसायनों को पाइपों के एक जाल से जमीन के अंदर डाला जाता है. यह रसायन नीचे की तरफ बहते हुए दुर्लभ खनिजों को अपने साथ इकट्ठा कर लेता है. जो बाद में जाकर बड़े-बड़े तालाबों में जमा हो जाता है.

यहां हजारों खनन इलाकों में इन-सिटू लिचिंग तकनीक के कारण पर्यावरण और ग्रामीणों पर भारी खतरा हो रहा है. लहतव काई ने कहा, "दुर्लभ खनिजों से बने कीचड़ को लकड़ी से जलने वाली भट्टियों में सुखाया जाता है. जिस कारण खनन स्थलों के आस-पास के इलाकों में लगातार दुर्गंध फैली रहती है.” उन्होंने यह भी बताया कि वह और उनकी रिसर्च टीम वहां आधे घंटे से ज्यादा नहीं रुकती है क्योंकि उनके लिए वहां सांस लेना मुश्किल हो जाता है. उन्होंने आगे कहा, "लेकिन वहां लोग बिना दस्ताने और मास्क के काम करते हैं. कंपनियां उन्हें किसी तरह की कोई सुरक्षा नहीं देती है. और जब मजदूर बीमार हो जाते हैं, तो कंपनी उन्हें निकालकर नए मजदूर ले आती है.”

थाईलैंड के चियांग माई के मानवाधिकार कार्यकर्ता, सेंग ली ने उत्तरी म्यांमार के खनन इलाकों को शोध किया है. वह बताते हैं कि खनन शुरू होने से पहले यह पहाड़ हरे-भरे हुआ करते थे. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अब यह पहाड़ काफी भद्दे दिखते हैं और नदी का पानी भी लाल हो चुका है क्योंकि खनन तालाबों में इस्तेमाल होने वाले रसायनों को सीधे पानी में फेंक दिया जाता है.”

लहतव काई और सेंग ली दोनों से डीडब्ल्यू ने हाल ही में उनके यूरोप दौरे के दौरान मुलाकात की, जहां पर वह अपने मिशन के समर्थन के लिए आए थे. वह चाहते हैं कि यूरोप के लोग यह जानें कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की शुरुआत कहां से हो रही है. बाद में जिसको इलेक्ट्रिक वाहन, विंड टर्बाइन, चिकित्सा उपकरण और हथियारों के उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है.

उद्योगों के लिए कितने आवश्यक हैं दुर्लभ खनिज?

अमेरिका के डेलावेयर विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर, जूली क्लिंगर ने बताया कि "दुर्लभ खनिज” शब्द का मतलब उन 17 तत्वों से है, जो रासायनिक रूप से समान हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "इन तत्वों की खासियत यह है कि इनमें अद्भुत चुंबकीय (मैग्नेटिक), विद्युत चालक (कंडक्टिव) और कुछ में तो तापीय गुण (थर्मल) भी होते हैं.”

इन्हें अक्सर "उद्योग जगत का मसाला” भी कहा जाता है क्योंकि बहुत ही कम मात्रा में इस्तेमाल होने पर भी यह औद्योगिक प्रक्रियाओं को काफी बेहतर बना सकते हैं. क्लिंगर बताती हैं कि जैसे डाइस्प्रोसियम का इस्तेमाल पेट्रोकेमिकल रिफाइनिंग में उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है. यह चांदी जैसा चमकदार तत्व म्यांमार के उत्तरी हिस्से में पाया जाता है और बैटरियों के निर्माण के लिए बेहद जरूरी होता है. क्योंकि यह बैटरियों की ताप सहनशीलता और लंबे समय तक चलने की क्षमता को बढ़ाता है. और यह ग्रीन एनर्जी के लिए भी काफी जरूरी है. डाइस्प्रोसियम का उपयोग स्थायी चुंबक बनाने में भी होता है. जो कि इलेक्ट्रिक वाहनों और पवन टर्बाइनों में उपयोग होने वाले आधुनिक जनरेटरों के लिए आवश्यक है.

गैर-लाभकारी संगठन, ग्लोबल विटनेस ने 2024 में रिपोर्ट किया कि चीन की स्थायी चुंबक बनाने वाली कंपनियां म्यांमार से दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति लेती हैं. इस रिपोर्ट में चीन निर्मित दुर्लभ खनिज उत्पादों के ग्राहकों के बारे में भी जानकारी दी गई. जैसे वैश्विक ऑटोमोबाइल कंपनियां, फॉक्सवागन, टोयोटा, निसान, फोर्ड और ह्युंडाई. इसके साथ-साथ पवन ऊर्जा की कंपनियां जैसे जीमन्स गामेसा और वेस्तास का भी इसमें नाम था.

कनाडा के टोरंटो स्थित रणनीतिक धातुओं और खनिजों पर काम करने वाली सलाहकार संस्था, एडम्स इंटेलिजेंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में चीन के स्थायी चुंबकों का सबसे बड़ा ग्राहक जर्मनी था.

जिम्मेदारी से किया जाए खनन

चीन ने अपने घरेलू दुर्लभ खनिजों के खनन को घटा दिया है. लेकिन पड़ोसी देश, म्यांमार के खनिज भंडारों का शोषण बढ़ा दिया है. ग्लोबल विटनेस की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने म्यांमार से भारी दुर्लभ खनिजों का आयात 2021 में 19,500 टन से बढ़ाकर 2023 में 41,700 टन कर दिया है. जूली क्लिंगर ने कहा, "यह तो बिल्कुल वैसा ही है जैसा अमेरिका ने 20वीं सदी में किया था. जब उसने रणनीतिक रूप से अपने यूरेनियम भंडारों का खनन नहीं किया था ताकि उन्हें भविष्य के लिए सुरक्षित रखा जा सके.”

लहतव काई कहती हैं कि म्यांमार के लोग नहीं चाहते कि चीनी कंपनियां खनन जारी रखें और कहती हैं, "अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन खनिजों को खरीदना चाहता है, तो उन्हें जिम्मेदारी से और नैतिक तरीके से इसे प्राप्त करना चाहिए.” ग्लोबल विटनेस के अनुसार, 2023 में म्यांमार का दुर्लभ खनिज व्यापार 1.4 अरब डॉलर का था. जो इस अस्थिर क्षेत्र में संघर्ष और विनाश का कारण बन गया है.

2018 में म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था और चीनी खनिकों को काम समेटने का आदेश दे दिया था. लेकिन 2021 में सैन्य तानाशाही के सत्ता में आने के बाद से खनन धड़ल्ले से जारी है.

2024 के अंत में, काचिन इंडिपेंडेंस ऑर्गनाइजेशन (केआईओ) और उसके सहयोगी सशस्त्र दलों ने उत्तर के खनिज-समृद्ध क्षेत्रों का नियंत्रण सरकार समर्थक बलों से छीन लिया. केआईओ, 1960 के दशक से ही क्षेत्र की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा है.

अब केआईओ और चीनी कंपनियों के बीच कर और खनन के नए समझौते हो रहे हैं. हालांकि केआईओ को स्थानीय लोगों का व्यापक समर्थन और सरकारी मिलिशिया की तुलना में अधिक वैधता प्राप्त है. लेकिन फिर भी 2024 की ग्लोबल विटनेस रिपोर्ट ने बताया, "दोनों पक्षों द्वारा किया जा रहा यह अनियंत्रित खनन पर्यावरण के लिए विनाशकारी है और यह पारिस्थितिक तंत्र और मानव स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है.”

क्या केआईओ जिम्मेदार खनन सुनिश्चित करेगा?

लहतव काई और सेंग ली चाहते हैं कि खनन कार्यों में सुरक्षा और पारदर्शिता बढ़े. सेंग ली ने कहा, "अब तक खनन से जुड़े नीति-निर्माण प्रक्रिया से नागरिकों समूहों और आम जनता को पूरी तरह से बाहर रखा गया है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और सरकारों को सीधे केआईओ से संवाद करना चाहिए ताकि प्रशासन को मजबूत किया जा सके.”

हालांकि सेंग ली मानते हैं कि दुर्लभ खनिजों के खनन को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता है. वह कहते हैं कि केवल सशस्त्र गुटों और चीनी निवेशकों को ही नहीं बल्कि स्थानीय समुदायों और राज्य को भी एक व्यवस्थित और नियमित प्रक्रिया के जरिए इसका लाभ मिलना चाहिए.