कोविड-19 टीकाकरण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
कोरोना वैक्सीन (Photo credits: PTI)

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कोविड टीकाकरण के बारे में लोग अक्सर उठाते हैं. डॉ. वी के पॉल, सदस्य (स्वास्थ्य), नीति आयोग, और डॉ. रणदीप गुलेरिया, निदेशक, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ने रविवार 6 जून को डीडी न्यूज पर एक विशेष कार्यक्रम में कोविड-19 टीकों के बारे में लोगों की विभिन्न शंकाओं का समाधान किया. सही तथ्यों और सूचनाओं की जानकारी के लिए इसे पढ़ें, और संक्रमण से सुरक्षित रहें. इसके अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी अक्सर पूछे जाने वाले अन्य प्रश्नों के भी उत्तर दिये हैं.

क्या एलर्जी वाले लोगों को टीका लगाया जा सकता है?

डॉ. पॉल: अगर किसी को एलर्जी की गंभीर समस्या है, तो डॉक्टरी सलाह के बाद ही कोविड का टीका लगवाना चाहिए. हालांकि, अगर यह केवल मामूली एलर्जी - जैसे सामान्य सर्दी, त्वचा की एलर्जी आदि का सवाल है, तो टीका लेने में संकोच नहीं करना चाहिए.

डॉ. गुलेरिया: एलर्जी की पहले से दवा लेने वालों को इन्हें रोकना नहीं चाहिए, टीका लगवाते समय नियमित रूप से दवा लेते रहना चाहिए. यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि टीकाकरण के कारण उत्पन्न होने वाली एलर्जी के प्रबंधन के लिए सभी टीकाकरण स्थलों पर व्यवस्था की गई है. अतः हम सलाह देते हैं कि यदि आपको गंभीर एलर्जी हो, तो भी आप दवा लेते रहें और जाकर टीकाकरण लगवाएं.

क्या गर्भवती महिलाएं कोविड-19 का टीका लगवा सकती हैं?

डॉ पॉल: हमारे वर्तमान दिशानिर्देशों के अनुसार गर्भवती महिलाओं को टीका नहीं लगाया जाना चाहिए. इसका कारण यह है कि डॉक्टरों और वैज्ञानिक समुदाय द्वारा टीका परीक्षणों से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर अभी गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण की सिफारिश करने का निर्णय नहीं लिया जा सका है. हालांकि, भारत सरकार नए वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर कुछ दिनों में इस स्थिति को स्पष्ट करेगी. यह भी पढ़ें : भारत सरकार ने होने वाले नेशनल कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए

यह पाया जा रहा है कि गर्भवती महिलाओं के लिए कई कोविड-19 टीके सुरक्षित पाए जा रहे हैं; हमें उम्मीद है कि हमारे दो टीकों के लिए भी रास्ता खुल जाना चाहिए. हम जनता से थोड़ा और धैर्य रखने का अनुरोध करते हैं, विशेष रूप से यह देखते हुए कि टीके बहुत कम समय में विकसित किए गए हैं, और गर्भवती महिलाओं को आमतौर पर सुरक्षा चिंताओं के कारण प्रारंभिक परीक्षणों में शामिल नहीं किया जा रहा है.

डॉ. गुलेरिया: कई देशों ने गर्भवती महिलाओं के लिए टीकाकरण शुरू कर दिया है. अमरीका के एफडीए ने फाइजर और मॉडर्ना के टीकों को इसके लिए मंजूरी दे दी है. कोवेक्सीन और कोविशील्ड से संबंधित आंकड़े भी जल्द आएंगे; कुछ डेटा पहले से ही उपलब्ध है, और हम आशा करते हैं कि कुछ दिनों में, हम पूर्ण आवश्यक आंकड़े प्राप्त करने और भारत में भी गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण को मंजूरी देने में सफल होंगे.

क्या स्तनपान कराने वाली माताएं कोविड-19 टीका लगवा सकती हैं?

डॉ पॉल: इस बारे में बहुत स्पष्ट दिशानिर्देश है कि टीका स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए बिल्कुल सुरक्षित है. किसी प्रकार के भय की कोई आवश्यकता नहीं है. टीकाकरण से पहले या बाद में स्तनपान न कराने की कोई आवश्यकता नहीं है. यह भी पढ़ें : आजाद भारत में आज ही के दिन एयर इंडिया ने भरी थी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान

क्या टीका लगवाने के बाद मुझमें पर्याप्त एंटीबॉडी बन जाती हैं?

डॉ. गुलेरिया: यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमें टीकों की प्रभावशीलता का आकलन केवल उससे उत्पन्न होने वाली एंटीबॉडी की मात्रा से नहीं करना चाहिए. टीके कई प्रकार की सुरक्षा प्रदान करते हैं - जैसे एंटीबॉडी, कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा तथा स्मृति कोशिकाओं के माध्यम से (जो हमारे संक्रमित होने पर अधिक एंटीबॉडी उत्पन्न करते हैं). इसके अलावा, अब तक जो प्रभावोत्पादकता परिणाम सामने आए हैं वे परीक्षण अध्ययनों पर आधारित हैं, जहां प्रत्येक परीक्षण का अध्ययन डिजाइन कुछ अलग है. अब तक उपलब्ध आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि सभी टीकों के प्रभाव - चाहे कोवेक्सीन यो, कोविशील्ड हो या स्पूतनिक वी हो कमोबेश बराबर हैं. इसलिए हमें यह नहीं कहना चाहिए कि यह टीका या वह टीका, जो भी टीका आपके क्षेत्र में उपलब्ध है, कृपया आगे बढ़ें और अपना टीकाकरण कराएं ताकि आप और आपका परिवार सुरक्षित रहे.

डॉ. पॉल: कुछ लोग टीकाकरण के बाद एंटीबॉडी परीक्षण करवाने की सोच रहे लगते हैं. लेकिन इसकी आवश्यकता नहीं है क्योंकि अकेले एंटीबॉडी किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा का संकेत नहीं देते. ऐसा टी-कोशिकाओं या स्मृति कोशिकाओं के कारण होता है; जब हम टीका लगवाते हैं तो इनमें कुछ परिवर्तन होते हैं, वे मजबूत हो जाते हैं और प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त कर लेते हैं. और टी-कोशिकाओं का एंटीबॉडी परीक्षणों से पता नहीं चलता क्योंकि वे अस्थि मज्जा में पाए जाते हैं. अतः हमारी अपील है कि टीकाकरण से पहले या बाद में एंटीबॉडी परीक्षण करने की प्रवृत्ति में न पड़ें. जो टीका उपलब्ध है उसे लगवाएं, दोनों खुराक सही समय पर लें और कोविड उपयुक्त आचरण का पालन करें. साथ ही, लोगों को यह गलत धारणा भी नहीं बनानी चाहिए कि यदि आपको कोविड-19 हो चुका है तो वैक्सीन की आवश्यकता नहीं है.

क्या वैक्सीन का इंजेक्शन लगने के बाद रक्त का थक्का बनना सामान्य है?

डॉ पॉल: इस जटिलता के कुछ मामले सामने आए हैं, खासकर एस्ट्रा-जेनेका वैक्सीन के संबंध में. यह जटिलता यूरोप में हुई, जहां यह जोखिम उनकी जीवनशैली, शरीर और आनुवंशिक संरचना के कारण उनकी युवा आबादी में कुछ हद तक मौजूद पायी गई. लेकिन, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि हमने भारत में इन आंकड़ों की व्यवस्थित रूप से जांच की है और पाया है कि रक्त के थक्के जमने की ऐसी घटनाएं यहां लगभग नगण्य हैं - इतनी नगण्य कि किसी को इसके बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. यूरोपीय देशों में, ये जटिलताएं हमारे देश की तुलना में लगभग 30 गुना अधिक पाई गईं है.

डॉ. गुलेरिया: यह पहले भी देखा गया है कि सर्जरी के बाद रक्त का थक्का बनना भारतीय आबादी में अमेरिका और यूरोपीय आबादी की तुलना में कम होता है. वैक्सीन प्रेरित थ्रोम्बोसिस या थ्रोम्बोसाइटोपेनिया नाम का यह दुष्प्रभाव भारत में बहुत दुर्लभ है, जो यूरोप की तुलना में बहुत कम अनुपात में पाया जाता है. इसलिए इससे डरने की जरूरत नहीं है. इसके लिए उपचार भी उपलब्ध हैं, जिन्हें जल्दी निदान होने पर अपनाया जा सकता है.

अगर मुझे कोविड संक्रमण हो गया है, तो कितने दिनों के बाद मैं टीका लगवा सकता हूं?

डॉ. गुलेरिया: नवीनतम दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिस व्यक्ति को कोविड-19 का संक्रमण हुआ है, वह ठीक होने के दिन से तीन महीने बाद टीका लगवा सकता है. ऐसा करने से शरीर को मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में मदद मिलेगी और टीके का असर बेहतर होगा. दोनों विशेषज्ञों - डॉ पॉल और डॉ गुलेरिया - ने जोर देकर आश्वस्त किया कि हमारे टीके आज तक भारत में देखे गए म्यूटेंट पर प्रभावी हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों को भी झूठी और निराधार बताया कि टीके लगने के बाद हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है या लोग टीके लगवाने के बाद मर जाते हैं जैसी कि ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के इलाकों में कुछ लोगों की गलत धारणा है.