दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक व्यक्ति को अदालत की आपराधिक अवमानना के लिए छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई, जब उसने हाईकोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश के लिए मौत की सजा की मांग की थी.
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और शलिंदर कौर की खंडपीठ ने नरेश शर्मा को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया और कहा कि उन्होंने उस न्यायाधीश के लिए "अपमानजनक भाषा" का इस्तेमाल किया था जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी थी और यहां तक कि न्यायाधीश को 'चोर' भी कहा था. ये भी पढ़ें- POCSO के दुरुपयोग से बच्चों का हो रहा शोषण, पॉक्सो का उद्देश्य रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना नहीं है: इलाहाबाद HC
कोर्ट ने कहा कि शर्मा को अपने आचरण और कार्यों पर कोई पश्चाताप नहीं है और उन्होंने अपने आचरण के लिए बिना शर्त माफी मांगने से इनकार कर दिया है.
शर्मा ने आजादी के बाद से भारत सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की थी और इसकी जांच की मांग की थी. उनकी याचिका 27 जुलाई, 2023 को एकल-न्यायाधीश द्वारा खारिज कर दी गई थी. इसके बाद शर्मा ने फैसले के खिलाफ अपील दायर की. वे 31 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आये.
न्यायालय ने तीन अपीलों की जांच की, जिनमें एकल-न्यायाधीश और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ कई "आपराधिक कृत्यों के निराधार और सनकी आरोप" शामिल थे. इसलिए, न्यायालय ने शर्मा को अदालत की आपराधिक अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया और इसे रोस्टर पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया.
जैसे ही यह मामला न्यायमूर्ति कैत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया, न्यायालय ने कहा कि वह कथनों पर गौर करके "अत्यधिक स्तब्ध" है. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही शर्मा ने नाराजगी के कारण याचिकाएं दायर कीं, लेकिन उन्होंने कारण बताओ नोटिस का बेहद अपमानजनक जवाब दाखिल किया था और इससे पता चलता है कि उनका कोई अपराध नहीं था. इसलिए शर्मा को छह महीने कारावास की सजा सुनाई.