Tokyo Olympics: भारत को मजबूत मुक्केबाजी दल से टोक्यो ओलंपिक में एक से ज्यादा पदक पाने की उम्मीद
प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credit PTI)

Tokyo Olympics:  स्टार मुक्केबाज विजेंदर सिंह (Boxer Vijender Singh) ने बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर भारतीय मुक्केबाजी को एक नयी दिशा दी जिसे एम सी मैरीकॉम ने आगे बढाया और इस बार तोक्यो ओलंपिक जा रहे नौ सदस्यीय भारतीय मुक्केबाजी दल से पदकों की संख्या में इजाफा करने की उम्मीद होगी. ओलंपिक मुक्केबाजी में भारत के नाम सिर्फ दो कांस्य पदक हैं जिसमें विजेंदर ने 2008 बीजिंग की मिडिलवेट 75 किग्रा स्पर्धा में देश को पहला पदक दिलाकर इतिहास रचा था और फिर छह बार की विश्व चैम्पियन मैरीकॉम 2012 लंदन में पदक जीतने वाली पहली महिला मुक्केबाज बनीं.

कोविड-19 के कारण एक क्वालीफायर रद्द होने के बावजूद नौ मुक्केबाज इस बार तोक्यो का टिकट कटाने में सफल रहे और पहली बार इतना बड़ा मुक्केबाजी दल ओलंपिक के लिये जायेगा. भारतीय दल में अमित पंघाल (52 किग्रा), मनीष कौशिक (63 किग्रा), विकास कृष्ण (69 किग्रा), आशीष कुमार (75 किग्रा) और सतीश कुमार (91 किग्रा), मैरीकॉम (51 किग्रा), सिमरनजीत कौर (60 किग्रा), लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) और पूजा रानी (75 किग्रा) शामिल हैं। इसमें विकास और मैरीकॉम को पहले भी ओलंपिक का अनुभव है। लेकिन बाकी अन्य पहली बार खेलों के महासमर में खेलेंगे. यह भी पढ़े: Tokyo Olympics: पीएम मोदी 13 जुलाई को करेंगे खिलाड़ियों से बात, देंगे शुभकामनाएं

मैरीकॉम (38 वर्ष) ने पिछले 20 वर्षों के करियर में विश्व चैम्पियनशिप में आठ पदक (छह स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य) अपने नाम किये हैं। मणिपुर की यह स्टार अपने अंतिम ओलंपिक में अपने पदक का रंग बदलने की कोशिश में होंगी जो 2016 रियो ओलंपिक में क्वालीफाई नहीं कर पायी थीं.

‘मैग्नीफिसेंट मैरी’ के नाम से मशहूर इस अनुभवी मुक्केबाज ने मार्च 2020 में जॉर्डन में एशियाई क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में ओलंपिक का टिकट कटाया था। इस साल मई में उन्होंने 2021 एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था.उनके नाम एशियाई चैम्पियनशिप में पांच पदक जीतने का रिकार्ड है। राष्ट्रमंडल खेलों की चैम्पियन एशियाई खेलों में भी देश को दो स्वर्ण पदक दिला चुकी हैं.

पंघाल अपने वजन वर्ग में अभी नंबर एक मुक्केबाज हैं जिससे उन्हें ड्रा में निश्चित रूप से फायदा मिलेगा. एशियाई खेलों के चैम्पियन पंघाल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाजों को बराबर की टक्कर दी है और कई मौकों पर मुकाबले काफी करीबी रहे। वह एशियाई चैम्पियनशिप के फाइनल में उज्बेकिस्तान के ओलंपिक पदक विजेता शाखोबिदिन जोइरोव से मामूली अंतर से पिछड़ गये थे.

दो बार के ओलंपियन विकास शायद अपने अंतिम ओलंपिक में 69 किग्रा वर्ग में हिस्सा ले रहे हैं. 2012 लंदन ओलंपिक में 64 किग्रा वर्ग में उनका सफर प्री क्वार्टर में खत्म हो गया था जबकि 2016 रियो ओलंपिक में वह 75 किग्रा में क्वार्टरफाइनल तक पहुंचे थे. एशियाई और राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता विकास ने इस बार अपनी तैयारियों में जरा भी कसर नहीं छोड़ी है. सरकार और प्रायोजकों की मदद से वह विदेशों में ट्रेनिंग में जुटे रहे.

पुरूष वर्ग में मनीष कौशिक (25 वर्ष) का भी प्रदर्शन लगातार अच्छा रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों के रजत पदक विजेता इस मुक्केबाज ने चोट के बाद वापसी करते हुए मार्च में अपने पहले टूर्नामेंट बॉक्साम अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता था। आशीष कुमार (26 वर्ष) और सतीश कुमार (30 वर्ष) भी अपने पहले ओलंपिक में कुछ उलटफेर करने के लिये जी-जान से जुटे हैं.

महिलाओं में 2018 विश्व चैम्पियनशिप की कांस्य पदक विजेता सिमरनजीत कौर चौथी रैंकिंग के साथ ओलंपिक में उतरेंगी और उन्होंने भी एशियाई मुक्केबाजी क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में रजत पदक जीतकर मार्च 2020 में ही तोक्यो के लिये क्वालीफाई कर लिया था. मौजूदा एशियाई चैम्पियन और अनुभवी मुक्केबाज पूजा रानी ने बॉक्साम टूर्नामेंट में विश्व चैम्पियन एथेयना बाइलोन को हराकर उलटफेर किया था पर फाइनल में विश्व चैम्पियनशिप की कांस्य पदक विजेता अमेरिका की नाओमी ग्राहम से हार गयी थीं। वहीं असम की ओर से ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली मुक्केबाज 23 साल की लवलीना ने मई में एशियाई चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था. एशियाई चैम्पियनशिप में कांस्य पदक से जीत की शुरूआत करने वाली लवलीना ने 2018 और 2019 विश्व चैम्पियनशिप में दो कांस्य पदक अपने नाम किये थे.

इस साल मई में दुबई में हुई एएसबीसी एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में भारत ने 15 पदक जीते जिसमें दो स्वर्ण, पांच रजत और आठ कांस्य पदक थे.दिसंबर 2020 में मुक्केबाजी विश्व कप में भी भारत तीन स्वर्ण सहित नौ पदक जीतने में सफल रहा.भारतीय दल इस समय इटली में ट्रेनिंग में जुटा है और मुक्केबाज यहीं से तोक्यो के लिये रवाना होंगे.

भारत ने ओलंपिक में मुक्केबाजी प्रतियोगिता में पहली बार 1948 में लंदन ओलंपिक में भाग लिया था। भारत ने सात भार वर्गों में मुक्केबाज उतारे थे जिनमें रॉबिन भाटिया, बाबू लाल और जॉन नटाल प्री क्वार्टर फाइनल तक पहुंचने में सफल रहे थे। हेलसिंकी ओलंपिक 1952 में भी भारतीय मुक्केबाजों ने हिस्सा लिया लेकिन इसके बाद भारतीय मुक्केबाजों को ओलंपिक में जगह बनाने के लिये 20 साल तक इंतजार करना पड़ा। म्यूनिख ओलंपिक 1972 में भारत के एकमात्र मुक्केबाज चंदर नारायणन (51 किग्रा से कम) खेले थे लेकिन वह दूसरे दौर से आगे नहीं बढ़ पाये थे. सिडनी ओलंपिक 2000 में गुरचरण सिंह लाइट हैवीवेट वर्ग के क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे.

बीजिंग में विजेंदर ने पदक जीता जबकि अखिल कुमार और जितेंदर कुमार भी क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे। लंदन ओलंपिक में मैरीकॉम ने फ्लाईवेट में कांस्य पदक जीता जबकि पुरुष वर्ग में विजेंदर और देवेंद्रो सिंह शुरुआती दो मुकाबले जीतकर क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे लेकिन उससे आगे बढ़ने में नाकाम रहे. रियो ओलंपिक में भारत के तीन मुक्केबाजों ने भाग लिया जिनमें से विकास अंतिम आठ में पहुंचे थे। इस तरह से 1948 से 2016 तक भारत के कुल 47 मुक्केबाजों ने ओलंपिक में हिस्सा लिया है जिनमें 46 पुरुष और एक महिला मुक्केबाज शामिल है.

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