कोलकाता हाई कोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि एक लेनदेन को केवल इसलिए बेनामी लेनदेन नहीं कहा जा सकता है क्योंकि पति ने संपत्ति पत्नी के नाम पर खरीदी थी. जस्टिस तापब्रत चक्रवर्ती और पार्थ सारथी चटर्जी की बेंच ने कहा, 'भारतीय समाज में, यदि एक पति अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति प्राप्त करने के लिए प्रतिफल राशि की आपूर्ति करता है, तो इस तरह के तथ्य का मतलब बेनामी लेनदेन नहीं है. धन का स्रोत निस्संदेह एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन निर्णायक नहीं है."

कलकत्ता हाईकोर्ट की ये टिप्पणी बाप-बेटे से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सामने आई है. एक बेटे ने अपने पिता पर उसकी मां को एक बेनामी संपत्ति देने का आरोप लगाया था. सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि शख्स अपने पिता के खिलाफ ये बात साबित करने में विफल रहा है कि विवादित संपत्ति एक बेनामी लेनदेन है.

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