अयोध्या में श्रीराम सीता की प्रतिमा के लिए शालिग्राम पत्थर ही क्यों? जानें शालिग्राम का महत्व एवं इतिहास!
Ayodhya(Photo Credits-ani )

अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण शुरू होने के साथ ही राम-सीता की प्रतिमा बनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी है. प्रतिमा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समझा जाने वाला शालिग्राम पत्थर भी नेपाल से अयोध्या पहुंच चुका है. बताया जा रहा है कि इसी शालिग्राम पत्थर से भगवान श्री राम एवं सीता जी की दिव्य प्रतिमा तराशी जाएंगी. आखिर राम सीता की प्रतिमा के लिए शालिग्राम पत्थर ही क्यों लाया गया है? आज बात करेंगे, शालिग्राम पत्थर के महात्म्य एवं इतिहास की, ताकि स्पष्ट हो सके कि श्री राम सीता की प्रतिमा में शालिग्राम पत्थर का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? साथ ही जानेंगे कि इसे नेपाल से ही लाने की क्या वजह है?

क्या है शालिग्राम पत्थर का महत्व?

शालिग्राम एक जीवाश्म अम्मोनीट है. एक प्रकार का मोलस्क, जो लाखों साल पहले पाया जाता था. वर्तमान में यह हिमालय की पवित्र नदियों, खासकर नेपाल की गंडकी नदी में उपलब्ध बेहद दुर्लभ पत्थर है. शालिग्राम शिवलिंग की तरह की दुर्लभ होते हैं, जो हर जगह नहीं मिलती है. अधिकतर शालिग्राम पत्थर नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र एवं काली गण्डकी नदी तट पर पाए जाते हैं. ये विभिन्न रंगों के होते हैं. लेकिन सुनहरा और ज्योति युक्त शालिग्राम सबसे दुर्लभ माना जाता है. यह भी पढ़ें : Agni Utsav 2023: क्या है अग्नि उत्सव? जानें इस पर्व का महत्व एवं पूजा विधि? कैसे करते हैं इसका सेलिब्रेशन?

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रतिरूप है. हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु ने राक्षस हयग्रीव का संहार करने के लिए शालिग्राम पत्थर का रूप धारण किया था. तब से, शालिग्राम पत्थर को विष्णुजी के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है, और आज भी प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन शालिग्राम से देवी तुलसी का विवाह रचाया जाता है

शालिग्राम में है विष्णु जी विभिन्न पहचान

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार शालिग्राम 33 प्रकार के होते हैं. इनमें 24 प्रकार को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. विभिन्न पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के विग्रह रूप में पूजा जाता है. मान्यताओं के अनुसार अगर शालिग्राम का आकार गोल है, तो इसे विष्णुजी का गोपाल स्वरूप (श्रीकृष्ण) मानते हैं. मछली के आकार का है, तो मत्स्य अवतार, कछुए के आकार का है तो कुर्म (कच्छप) अवतार का प्रतीक माना जाता है. इसके अलावा शालिग्राम पर उभरे हुए चक्र, रेखाएं अथवा अन्य निशान के होते हैं, तो इसे विष्णु जी के अन्य अवतारों का प्रतीक समझा जाता है.

शालिग्राम पत्थर ही क्यों?

जानकारों के अनुसार अयोध्या में शालिग्राम पत्थर से बनी श्रीराम सीता की प्रतिमा से इसका महात्म्य दुगुना हो जायेगा, क्योंकि यह प्रतिमा मंदिर विष्णु जी के एक अवतार श्री राम के जन्म-स्थल पर स्थापित की जायेगी, और यह श्रीराम सीता यानी भगवान विष्णु एवं माँ लक्ष्मी की प्रतिमा होगी. गौरतलब है कि प्राचीन काल से ही हिंदू मंदिरों में शालिग्राम पत्थर से बनी प्रतिमा स्थापित की जाती रही है. विद्वानों का मानना है कि शालिमार पत्थर में स्थित दैवीय गुण मंदिर के संपूर्ण क्षेत्र को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देते हैं. इसी परंपरा को जारी रखते हुए अयोध्या के रामलला मंदिर में श्रीराम एवं सीता की प्रतिमा शालिमार पत्थर पर ही तराशी जा रही हैं.