Agni Utsav 2023: क्या है अग्नि उत्सव? जानें इस पर्व का महत्व एवं पूजा विधि? कैसे करते हैं इसका सेलिब्रेशन?
Agni Utsav (Photo Credits: File Photo )

   भारत के विभिन्न राज्यों की अपनी संस्कृति एवं अपना रीति-रिवाज है. ऐसा ही राज्य है उड़ीसा, जिसकी एक अलग पहचान और परंपरा है. यहां के प्रमुख राष्ट्रीय पर्वों में एक है. ‘अग्नि उत्सव’. किसानों का पर्व होने के कारण इसका विशेष महत्व बताया जाता है. इस बार यह पर्व 5 फरवरी 2023, रविवार को मनाया जायेगा. क्या है अग्नि उत्सव? क्या है इसकी परंपरा और रीति रिवाज? पूजा-पाठ एवं कैसे होता है इसका सेलिब्रेशन? आइये जानते हैं....

अग्नि उत्सव का महत्व?

यह एक आध्यात्मिक पर्व है. इस दिन अग्नि को सूर्य का प्रतीक मानते हुए सूर्य देव की पूजा की जाती है. उड़ीसा का किसानों का मानना है कि अग्नि में सूखी घास एवं पुआल के जलने से अगले साल आने वाली फसलों के बारे में सकारात्मक तरीके से भविष्यवाणी करने में मदद मिलती है. ये भविष्यवाणियां आमतौर पर अग्नि से निकलते लौ के आधार पर की जाती है. अगर आग की लौ पूर्व की ओर होती है तो पानी का खेतों में सीधा प्रवेश की संभावना को दर्शाता है, लौ का पश्चिम की ओर होना बाढ़ की भविष्यवाणी करता है. उत्तर पूर्व की ओर लौ का होना बेहतर फसल का प्रतीक होता है. इस पर्व को देखने के लिए प्रत्येक वर्ष काफी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं. यह भी पढ़ें : Jaya Ekadashi 2023 Messages: जया एकादशी की इन हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, GIF Greetings, Images के जरिए दें शुभकामनाएं

अग्नि उत्सव की पूजा विधि

  यह पर्व काफी हद तक लोहड़ी से मिलता-जुलता है. घरों के बाहर लगे घास-फूस, कंडों एवं लकड़ियों में आग लगाई जाती है. अग्नि-उत्सव की प्रथा के अनुसार अग्नि के लौ में आलू, बैग आदि सब्जी डाली जाती है. अग्नि की लौ के शांत होने पर उसमें से सब्जी निकालते हैं, इसे प्रसाद के तौर पर वहां उपस्थित लोगों को बांटा जाता है. यह उत्सव विभिन्न कालोनियों में तो होता ही है, साथ ही उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित लिंगराज मंदिर महाखला में भी इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है, और भारी संख्या में यहां उपस्थित होकर लोग पर्व का आनंद उठाते हैं.

ऐसे होता है सेलिब्रेशन

  अग्नि उत्सव के सेलिब्रेशन के लिए पास-पड़ोस के लोग घर के बाहर साफ-सफाई करते हैं. किसी एक जगह पर लोग पूजा के लिए घास-फूस, कंडे एवं लकड़ियां इकट्ठे करते हैं. इसके बाद पास-पड़ोस के सभी लोग यहां एकत्र होते हैं, इसमें अग्नि प्रज्वलित कर पूजा-अर्चना करते हैं, हाथ तापते हैं. इसके बाद अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करते हुए लोक गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं. इस तरह अग्नि को सूर्य देव का प्रतीक मानते हुए उनकी पूजा-अर्चना करते हुए अपने खेत-खलिहान, अच्छे फसल एवं घर-परिवार की सुरक्षा की कामना करते हैं.