आश्विन मास शुक्लपक्ष के प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जानें वाले नवरात्रि का समस्त हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस पर्व को लोग पूरी आस्था एवं उत्साह के साथ मनाते हैं. यह पर्व वस्तुतः बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाती है. इस पर्व की पृष्ठभूमि में एक तरफ शक्ति की देवी दुर्गा द्वारा दैत्यराज महिषासुर के आतंक से त्रिलोक को मुक्ति दिलाई थी, वहीं इसी दिन श्रीहरि के अवतार भगवान श्री राम के हाथों आतंक का प्रतीक बन चुके रावण का वध कर सुशासन की स्थापना की थी. नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व पर दुर्गा देवी के नौ अवतारों की पूजा की जाती है. दशमी के दिन एक तरफ जहां सुहागन स्त्रियां माँ दुर्गा के साथ सिंदूर की होली खेलकर उनकी विदाई करती हैं, लंकापति रावण, कुंभकरण एवं मेघनाथ के पुतले भी जलाए जाते हैं.
अमुक रंग के परिधान पहनकर तिथि अनुसार दुर्गा जी के इस रूप की करें पूजा!
शारदीय नवरात्रि पर हम निर्धारित रंग और देवी दुर्गा के एक स्वरूप की हम पूजा करते हैं. आइये देखें की प्रतिपदा से नवमी तक हमें किस रंग के वस्त्र पहनकर माँ दुर्गा के किस स्वरूप की पूजा करनी है,
प्रतिपदा (26 सितंबर, 2022, सोमवार): माँ शैलपुत्री की पूजा, सफेद रंग का वस्त्र पहन कर करें.
द्वितीया (27 सितंबर, 2022, मंगलवार): माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा, लाल रंग का वस्त्र पहनकर करें.
तृतीया (28 सितंबर, 2022, बुधवार): माँ चंद्रघंटा की पूजा, शाही नीले रंग का वस्त्र पहन कर करें.
चतुर्थी (29 सितंबर, 2022, गुरुवार): माँ कुष्मांडा की पूजा, पीले रंग का वस्त्र पहन कर करें.
पंचमी (30 सितंबर, 2022, शुक्रवार): माँ स्कंदमाता की पूजा, हरे रंग का वस्त्र पहन कर करें.
षष्ठी (01 अक्टूबर, 2022, शनिवार): माँ कात्यायनी की पूजा, ग्रे रंग का वस्त्र पहन कर करें.
सप्तमी (02 अक्टूबर, 2022, रविवार): माँ कालरात्रि की पूजा, नारंगी रंग का वस्त्र पहन कर करें.
अष्टमी (03 अक्टूबर, 2022, सोमवार): माँ महागौरी की पूजा, मयूरी हरे रंग का वस्त्र पहन कर करें.
नवमी (04 अक्टूबर, 2022, मंगलवार): माँ सिद्धिदात्री की पूजा, गुलाबी रंग का वस्त्र पहन कर करें.
नवरात्रि का इतिहास और महत्व:
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार नवरात्रि अच्छाई की बुराई पर जीत मानी जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा के वरदान से खुद को अजेय समझने वाले महिषासुर ने जब तीनों लोकों में अत्याचार मचाना शुरू किया, तब देवताओं की प्रार्थना पर विष्णु जी ने एक ऐसी स्त्री उत्पन्न करने की सोची, जो शक्ति में अद्वितीय हो. क्योंकि ब्रह्मा के वरदान स्वरूप महिषासुर को स्त्री ही मार सकती थी. अंततः ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के साथ सारे देवताओं की शक्ति से जो काया उभरी, वह आदिशक्ति थीं. उन्हें दुर्गा नाम दिया. ऐसी भी किंवदंती है कि दुर्गा भगवान शिव की पत्नी माँ पार्वती का अवतार हैं. ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत सभी देवताओं ने दुर्गा जी को अपने दिव्य शस्त्र दिये. कहते हैं कि दुर्गाजी ने महिषासुर के साथ नौ दिनों तक अथक संघर्ष करने के बाद दसवें दिन उसका वध करने में सफल रहीं. इसी वजह से नवरात्रि की दशमी को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है.