विभिन्न पुराणों में श्री गणेश (Lord Ganesha) को देवाधिदेव (देवों का देव) माना गया है. हिंदू धर्म (Hindu Religion) में मान्यता है कि किसी भी देवी-देवता की पूजा या कोई भी मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले श्री गणेश जी की पूजा अनिवार्य होता है. वरना पूजा फलदायी नहीं होती. यही वजह है कि गणेश चतुर्थी यानी श्री गणेश के जन्मदिवस पर देश भर में पूरे विधि-विधान और उत्साह के साथ श्री गणेश जी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन मुंबई (Mumbai) स्थित श्री सिद्धिविनायक मंदिर (Shri Siddhivinayak) में गणेशजी की पूजा-अनुष्ठान से सारी समस्याओं का समाधान होता है तथा घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है. आइए जानें विनायक चतुर्थी पर श्री सिद्धीविनायक मंदिर (मुंबई) के महात्म्य एवं पूजा-दर्शन के संदर्भ में..
जहां आस्था होती है, वहीं श्रद्धा औ विश्वास भी होता है. दादर के प्रभादेवी स्थित सिद्धीविनायक मंदिर में मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा-अर्चना का खास महत्व है. मान्यता है कि यहां भक्तों की सारी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. यही वजह है कि यहां देश-विदेश से गणेश भक्तों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियां मीलों पद-यात्रा कर सिद्धी विनायक जी का दर्शन एवं पूजन कर कृतार्थ होती हैं. यह गणेश जी के प्रति उनकी आस्था ही है कि उन्हें इस बात पर पूरा भरोसा होता है कि श्री सिद्धीविनायक जी के दर से वे खाली हाथ नहीं लौटेंगे. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस साल 30 नवंबर को विनायक चतुर्थी है, इस दिन श्री सिद्धीविनायक की पूजा अर्चना का विशेष महत्व बताया जाता है.
मंदिर का इतिहास एवं पुनरुद्धार:-
श्री सिद्धी विनायक मंदिर गणपति मंदिर न्यास (ट्रस्ट) के पूर्व अध्यक्ष सुभाष विट्ठल मयेकर (Subhash Vithal Mayekar) के अनुसार श्री सिद्धी विनायक मंदिर प्राचीनतम गणेश मंदिरों में से एक है. इसका निर्माण संवत 1692 में हुआ था. सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक मंदिर का जीर्णोद्धार और नवीनीकरण सन् 1801 में हुआ था. सन 1936 में श्री गोविंदराव फाटक द्वारा मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना शुरू हुई जो सन 1973 में उन्हीं के संरक्षण में होती रही. श्रीमयेकर के अऩुसार सिद्धी विनायक आने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए मंदिर प्रबंधन को सुगठित और व्यवस्थित करने की आवश्यकता महसूस हुई. लिहाजा सन 1980 में 11 सदस्यीय श्री सिद्धी विनायक गणपति मंदिर न्यास (ट्रस्ट) का गठन हुआ.
उन दिनों मंदिर में एक बार में 15 से 20 गणेश भक्त ही एक साथ दर्शन कर सकते थे. लेकिन जब गणेश भक्तों की संख्या लगातार बढ़नी शुरू हुई तो मंदिर और उसका परिसर बहुत छोटा लगने लगा. अंततः ट्रस्ट के प्रयास और तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Governemnt) के सहयोग से 27 अप्रैल 1990 के दिन 20 हजार वर्ग फिट अतिरिक्त भूमि मंदिर को आवंटित हुई. इस भूमि को मंदिर परिसर से जोड़ते हुए इसका निर्माण कार्य तेजी से शुरू हुआ. वर्तमान में श्री सिद्धी विनायक मंदिर का अष्टभुजी गर्भगृह 10 फिट चौड़ा और 13 फिट ऊंचा है.
गर्भगृह के चबूतरे पर स्वर्ण शिखर युक्त चांदी का बहुत खूबसूरत मंडप है, जहां भगवान सिद्धी विनायक जी विराजते हैं. ज्यादा से ज्यादा भक्तों को दर्शन लाभ प्राप्त हो इसे ध्यान में रखते हुए सामने से तीन दरवाजे बनाये गये हैं. इन दरवाओं पर अष्टविनायक, अष्टलक्ष्मी और दशावतार की आकृतियां चित्रित की गयी हैं. अब एक बार में सौ से भी ज्यादा भक्त श्री सिद्धी विनायक जी का दर्शन लाभ आसानी से कर लेते हैं.
सिद्धिविनायक मंदिर से जुड़ी खास बातें:-
इस सिद्धिविनायक मंदिर से कई रोचक बातें जुड़ी हैं. यह देश के तीन सबसे धनी मंदिर में एक माना जाता है. इसके पीछे तर्क यह है कि प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां यहां हर साल जितना चढ़ावा आता है, उतने पैसे में पूरी मुंबई को एक समय का भोजन कराया जा सकता है. समय-समय पर अपनी मन्नतें लेकर हिंदी सिनेमा के सितारे भी यहां आते हैं, जिनकी वजह से भी मंदिर को खूब लोकप्रियता मिली. कहा जा सकता है कि देश में भगवान श्रीगणेश का यह सबसे लोकप्रिय मंदिर है.
क्यों कहलाते हैं सिद्धी विनायक:-
आमतौर पर श्री गणेश जी की प्रतिमाओं में सूंड़ बाईं तरफ होते हैं, लेकिन यहां श्री सिद्धी विनायक में गणेश जी की प्रतिमा में सूंड़ दाईं तरफ मुड़ी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस तरह के सूंड़ वाले गणेश जी वस्तुतः सिद्धपीठ से जुड़े होते हैं, और ऐसे मंदिर सिद्धी विनायक मंदिर कहलाते हैं. मान्यतानुसार ऐसे गणपति जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं, उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं. चतुर्भुजी विग्रह सिद्धिविनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है. इस मंदिर में सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि हर धर्म के लोग दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं.