Raja Ravi Varma Death Anniversary 2020: राजा रवि वर्मा न होते तो दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती और शिव-विष्णु जैसे देवी देवताओं का क्या स्वरूप होता?
राजा रवि वर्मा (Photo Credits: Facebook)

Raja Ravi Varma Death Anniversary 2020: दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण समेत तमाम देवी-देवताओं की दिव्य तस्वीरें देख कर आज कोई भी श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज से लगभग सवा सौ साल पहले इस तरह की तस्वीरों का कोई अस्तित्व ही नहीं था. श्रद्धालु मंदिरों में रखी मूर्तियों की पूजा करते थे. जात-पात का भेदभाव चरम पर होने से हर किसी को मंदिरों में भी प्रवेश की अनुमति नहीं होती थी. गौरतलब है कि इन सभी देवी-देवताओं की तस्वीरें पेंटर राजा रवि वर्मा (Raja Ravi Varma) ने अपनी कल्पना शक्ति से बनायी थी. इसके अलावा भी उन्होंने हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रन्थों पर अनगिनत चित्र बनाये हैं. आज देश इस महान पेंटर राजा रवि वर्मा (Great Painter Raja Ravi Varma) की 114वीं पुण्यतिथि (114th Death Anniversary) मना रहा है. आइये जानें कौन थे. राजा रवि वर्मा और कैसी थी उनकी जीवन यात्रा...

गॉड गिफ्टेड थी यह कला

राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 को केरल स्थित किलिमानूर शहर में हुआ था. राजा शब्द उन्हें अंग्रेज सरकार ने टायटिल के रूप में दिया था. मात्र 5 वर्ष की आयु में उन्होंने घर की दीवारों पर दैनिक जीवन की घटना क्रमों को रेखांकित करना शुरू कर दिया था. उनकी कला प्रतिभा पर सबसे पहली नजर उनके चाचा की पड़ी. थोड़ी बहुत चित्रकारी वे भी करते थे, उन्होंने रवि वर्मा को कला की प्रारम्भिक शिक्षा दी. रवि जब 14 वर्ष के थे, चाचा उन्हें लेकर तिरुवनंतपुरम स्थित त्रावणकोर गये. त्रावणकोर महाराज के दरबार में उन्होंने वॉटर पेंटिंग के महारथी रामास्वामी नायडू से चित्रकारी के गुर सीखे. जल्द ही रवि वर्मा वॉटर पेंटिंग के महारथी बन गए. अपनी कला में और ज्यादा निखार लाने के लिए उन्होंने मैसूर, बड़ौदा की यात्रा की. सर्वप्रथम उन्होंने पारम्परिक तंजौर कला में महारत प्राप्त की, इसके बाद यूरोपीय कला का अध्ययन किया. उनके चित्र विविध विषय के हैं, किन्तु उनमें पौराणिक विषयों के और राजाओं के व्यक्ति चित्रों का आधिक्य है. उनकी कलाकृतियों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है.

* प्रतिकृति या पोर्ट्रेट,

* मानवीय आकृतियों वाले चित्र

* ऐतिहासिक एवं पौराणिक घटनाओं से सम्बन्धित चित्र.

थियोडोर जेनसेन से सीखा ऑयल पेंटिंग की कला

रवि वर्मा जब 20 साल के थे, उन्हीं दिनों नीदरलैंड (हालैंड) के मशहूर पेंटर थियोडोर जेनसन भारत आए. अन्य विदेशी पेंटर्स की तरह वे भी ऑयल पेंटिंग के मास्टर थे. रवि वर्मा ने जेनसन से न केवल ऑयल पेंटिंग की तकनीक सीखी, बल्कि उसमें महारत भी हासिल किया. ऑयल पेंटिंग सीखने के बाद रवि वर्मा अपनी कृतियों की सुरक्षा को लेकर निश्चिंत हो गये थे, क्योंकि वॉटर कलर से बनीं पेंटिंग पर मौसम की बुरी मार पड़ने से जल्दी खराब हो जाती थी. रवि वर्मा ने पोर्ट्रेट बनाने की कला भी थियोडोर जेनसन से ही सीखी. बहुत जल्दी रवि पोट्रेट बनाने की कला में सिद्धी हासिल कर ली. उनकी इस कला की लोकप्रियता का आलम यह था कि उनसे अपना पोट्रेट बनवाने के लिए लोग लाइन लगाकर बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे. इसके लिए उन्हें अच्छी कीमत मिलती थी. उनके द्वारा राणा प्रताप के बनाए पोट्रेट की बहुत प्रशंसा हुई थी. उनकी सर्वश्रेष्ठ कलाकृति के संदर्भ में जानकार बताते हैं कि बड़ौदा के महाराज और महारानी का पोर्ट्रेट अनमोल ही नहीं बल्कि अद्भुत था.

हिंदू देवी-देवताओं को बनाया मुख्य विषय

प्रशिक्षण हासिल करने के बाद पूरा करने के बाद उनके सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि उनकी पेंटिंग का विषय क्या होना चाहिए. काफी सोच विचार के बाद उनकी प्रोफेशनल समझ से उन्होंने माना कि धार्मिक ग्रंथों और महाकाव्यों में भारत की आत्मा बसती है. अंततः उन्होंने इसे ही अपना विषय बनाया. रवि वर्मा ने कई पौराणिक कथाओं और उनके पात्रों के जीवन को आधार बनाकर उनके विभिन्न पात्रों को अपने कैनवास पर उकेरा. रवि वर्मा देश के पहले चित्रकार थे, जिन्होंने हिंदू देवी-देवताओं को आम इंसान जैसा दिखाया. आज हम विभिन्न चित्रों में जिन सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, राधा या कृष्ण की जो तस्वीरें देखते हैं, वे उनकी ही कल्पना शक्ति की उपज है. उनके सबसे लोकप्रिय चित्रों में सरस्वती और लक्ष्मी के चित्र हैं. उनके अन्य चित्रों में विचारमग्न युवती, दमयंती-हंसा संभाषण, संगीत सभा, अर्जुन-सुभद्रा, शकुंतला, रावण द्वारा जटायु वध, इंद्रजीत-विजय, द्रौपदी कीचक, राजा शांतनु और मत्स्यगंधा आदि उनके प्रसिद्ध चित्र हैं.

विवाद भी कम नहीं थे

कहावत मशहूर है कि इंसान जितना लोकप्रिय होता है, उसके साथ विवाद भी उतना ही गहरा होता है. कट्टरपंथियों ने उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने उर्वशी और रंभा जैसी अप्सराओं की अर्द्धनग्न तस्वीरें बनाईं. कुछ ने इसे हिंदू धर्म का अपमान माना. उन पर देश में कई अदालतों में सालों मुकदमे चले. इससे उन्हें आर्थिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी काफी नुकसान पहुंचा. लोगों ने उनकी मुंबई स्थित प्रेस को जला कर खाक में मिला दिया था. इस दुर्घटना में उनके बेशकीमती चित्र भी जल गए. उन पर यह आरोप भी लगा कि सरस्वती और लक्ष्मी जैसे कई हिंदू देवियों का चेहरा उनकी प्रेमिका सुगंधा से मिलता है. लोगों का आरोप था कि वे अपने चित्र और पोर्ट्रेट के लिए सुगंधा की सहायता लेते थे. सुगंधा किसी वेश्या की बेटी बताई जाती है. इस संदर्भ में भी उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.