Shahidi Saptah Guru Gobind Singh: गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे, जुलियन कैलेंडर के अनुसार उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब (बिहार) में हुआ था. इस साल 17 जनवरी को उनकी जयंती मनाई जाएगी. वे न केवल एक आध्यात्मिक नेता थे, बल्कि एक महान योद्धा, कवि, और दार्शनिक भी थे. गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख धर्म को एक संगठित और सशक्त रूप प्रदान किया और सिखों को अत्याचार और अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया. गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की. उन्होंने "पांच प्यारों" का चयन कर उन्हें अमृतपान करवाया और सिखों को समानता, साहस और सेवा का पाठ पढ़ाया. खालसा पंथ ने सिख धर्म को एक नई पहचान दी, जिसमें हर सिख को "सिंह" (पुरुष) और "कौर" (महिला) की उपाधि दी गई. यह भी पढ़ें: Modern Christmas 2024: मॉर्डन क्रिसमस में कितनी शेष रह गई हैं क्रिसमस की प्राचीनजड़ें! जानें आधुनिक क्रिसमसबनाम प्राचीन परंपराएं!
उनके चारों पुत्रों को "चार साहिबजादे" कहा जाता है, जिन्होंने धर्म और न्याय की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. उनके बड़े बेटे, साहिबजादा अजीत सिंह और जुझार सिंह चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए. छोटे साहिबजादे, फतेह सिंह और जोरावर सिंह को सरहिंद के नवाब ने ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया. गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिख धर्म का अंतिम और शाश्वत गुरु घोषित किया. उन्होंने स्वयं भी कई रचनाएं कीं, जिनमें "दशम ग्रंथ" और "जफरनामा" शामिल हैं. गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख समुदाय को प्रेरित किया कि वे मानवता की सेवा करें और धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलें. उनका जीवन समर्पण, त्याग, और साहस का अद्वितीय उदाहरण है. उनका हर कार्य समाज को प्रेरणा और शक्ति प्रदान करता है.
दिसंबर महीने में गुरु गोविंद सिंह शहीदी सप्ताह मनाया जाता है. शहीदी सप्ताह सिख धर्म में एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो उनके महान बलिदानों और उनके परिवार की असाधारण शहादत को स्मरण करने के लिए मनाया जाता है. इस सप्ताह के दौरान निम्नलिखित घटनाओं और उनके बलिदानों को विशेष रूप से याद किया जाता है.
1761 को गुरु गोबिंद सिंह अपने परिवार और सिख श्रद्धालुओं के साथ औरगजेब के नाम पर दी गई सुरक्षा की शपथ और वचन पर आनंदपुर साहिब से चले गए. ये शपथ तुरंत तोड़ दी गई और गुरु जी पर शाही टिब्बी के पास हमला किया गया. पहाड़ी राज्यों के राजाओं के नेतृत्व में मुगल सेना और राज्य बलों ने सरसा नदी की ओर सिखों का पीछा किया. कई जगहों पर सेनाएं आपस में भिड़ गईं. दुख की बात है कि गुरु का परिवार तीन समूहों में बंट गया और एक दूसरे के बारे में कोई जानकारी या संवाद नहीं हो पाया. भाई उदय सिंह और अन्य लोग पीछे से एक मजबूत कार्रवाई करते हुए युद्ध के मैदान में वीरतापूर्वक शहीद हो गए.
1. गुरु गोविंद सिंह जी और उनके परिवार की शहादत
- चार साहिबजादों की शहादत:
बड़े साहिबजादे: साहिबजादा अजीत सिंह (18 वर्ष) और साहिबजादा जुझार सिंह (14 वर्ष) ने चमकौर के युद्ध में मुगलों से लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए.
छोटे साहिबजादे: साहिबजादा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और साहिबजादा फतेह सिंह (6 वर्ष) को सरहिंद के नवाब वज़ीर खान ने ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया, क्योंकि उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
माता गुजरी जी: गुरु गोविंद सिंह जी की माता को छोटे साहिबजादों के साथ बंदी बनाया गया. कठोर सर्दी के कारण ठंड में बंदीगृह में ही उनका निधन हो गया.
2. चमकौर की गढ़ी का युद्ध
चमकौर की गढ़ी में गुरु गोविंद सिंह जी ने मुगलों की विशाल सेना के खिलाफ अपने 40 सिखों के साथ वीरतापूर्ण संघर्ष किया. इस युद्ध में साहिबजादा अजीत सिंह और जुझार सिंह ने शहादत दी. यह युद्ध सिखों के त्याग, साहस और बलिदान का अद्भुत उदाहरण है.
3. गुरु गोविंद सिंह जी का बलिदान और त्याग
गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने चारों पुत्रों और अपनी मां के बलिदान के बावजूद धर्म और न्याय की रक्षा के लिए संघर्ष जारी रखा. उन्होंने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और "गुरु ग्रंथ साहिब" को सिख धर्म का अंतिम गुरु घोषित कर दिया.
गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन सिखाता है कि धर्म, न्याय और मानवता की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार का त्याग छोटा नहीं है. उनके बलिदान सिख समुदाय के लिए प्रेरणा हैं और हर व्यक्ति को साहस, सच्चाई और सेवा का मार्ग अपनाने का संदेश देते हैं.