Papmochani Ekadashi 2024: हर व्यक्ति को पापमोचिनी एकादशी व्रत क्यों रखना चाहिए? जानें इसका महत्व, मुहूर्त एवं पूजा विधि!
Papmochani Ekadashi 2024

यूं तो साल पड़ने वाली सभी 24 एकादशियों का अपना महात्म्य और विशेषता होती है, लेकिन चैत्र कृष्ण पक्ष के 11वें दिन पड़ने वाली पापमोचिनी एकादशी के बारे में कहा जाता है, कि इस एकादशी का व्रत एवं पूजा करने वाले जातक के जन्म-जन्मांतर के सारे पापों से छुटकारा मिलता है. 5 अप्रैल 2024, शुक्रवार को पड़ने वाली पापमोचिनी एकादशी के दिन माँ लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णुजी की पूजा-अर्चना करने का विधान है. आइये जानते हैं पापमोचिनी एकादशी व्रत एवं पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त आदि के बारे में विस्तार से..

हर विष्णु-भक्त को पापमोचिनी एकादशी का व्रत क्यों रखना चाहिए!

भविष्यत्तर पुराण में उल्लेख है कि पापमोचिनी एकादशी के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि इस दिन उपवास रखते हुए भगवान श्रीहरि की पूजा करने से जीवन के अगले-पिछले सारे पापों से मुक्ति मिलती है. चूंकि हर मनुष्य अपने जीवन में जाने-अनजाने में कुछ ना कुछ पाप करता है, उन्हें नहीं पता होता कि राह चलते समय उनके पैरों से कितने कीड़े-मकोड़े कुचलकर मर जाते हैं, इसलिए हर मनुष्य को पापमोचिनी एकादशी का व्रत एवं पूजा अवश्य करनी चाहिए. यह भी पढ़ें : Happy Easter 2024 Messages: हैप्पी ईस्टर! दोस्तों-रिश्तेदारों संग शेयर करें ये हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, GIF Greetings और Photo SMS

पापमोचिनी एकादशी तिथि एवं शुभ मुहूर्त

पापमोचिनी एकादशी प्रारंभः 04.14 PM (04 अप्रैल 2024, गुरुवार)

पापमोचिनी एकादशी समाप्तः 01.28 PM (05 अप्रैल 2024, शुक्रवार)

उदया तिथि के अनुसार 5 अप्रैल 2024 को पापमोचिनी एकादशी मनाई जाएगी.

पारण कालः 06.05 AM से 08.37 AM तक (06 अप्रैल 2024)

पापमोचिनी एकादशी व्रत का महत्व

‘पापमोचिनी एकादशी’ का शाब्दिक अर्थ है पाप का मोचन (नष्ट करनेवाली) करने वाली एकादशी. इस एकादशी के दिन श्रीहरि और लक्ष्मीजी के नाम से व्रत तथा पूजा करने वाले जातक को उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिसके कारण उनके जीवन में सुख समृद्धि आती है, तथा जाने-अनजाने हुई हर पापों से मुक्ति मिलती है.

पापमोचनी एकादशी की पूजा-विधि

चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर गंगा स्नान करें अथवा गंगाजल मिले पानी से स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान श्रीहरि एवं देवी लक्ष्मी का ध्यान कर पूजा एवं व्रत का संकल्प लें. पूजा घर के समक्ष एक स्वच्छ चौकी पर आसन बिछाकर श्रीहरि एवं लक्ष्मीजी की प्रतिमा अथवा तस्वीर रखें. श्रीहरि को पहले पंचामृत फिर गंगाजल से स्नान कराकर पीतांबर पहनाएं. भगवान के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें.

ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

भगवान को पुष्पहार चढ़ाएं. अब गोपी चंदन का तिलक लगाएं. पीला चंदन, सुपारी, पान, तुलसी दल, इत्र तथा माता लक्ष्मी को कमल पुष्प अर्पित करें. भोग में पंजीरी, फल एवं पंचामृत अर्पित करें. पूजा के अंत में पहले विष्णुजी का और उसके पश्चात लक्ष्मी जी की आरती उतारें. अगले दिन सुबह स्नान-ध्यान कर व्रत का पारण करें.