हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष के चौथे दिन हेरंब संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. अन्य चतुर्थी तिथि की तरह यह चतुर्थी भी भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है. इस दिन ज्ञान और बुद्धि के देवता भगवान गणेश के हेरंब स्वरूप की पूजा-प्रार्थना की जाती है, मान्यता है कि हेरंब संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 22 अगस्त 2024, गुरुवार को हेरंब संकष्टी चतुर्थी की पूजा की जाएगी. आइये जानते हैं इस व्रत के महात्म्य, मुहूर्त एवं पूजा विधि आदि के बारे में विस्तार से...
हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि हेरंब संकष्टी चतुर्थी कहलाती है. हेरंब संकष्टी चतुर्थी का दिन भगवान गणेश के 32 स्वरूपों में से एक हेरंब देव को समर्पित है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी माह भगवान श्रीगणेश का जन्म हुआ था. यह पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तक चलता है. मान्यता है कि हेरम्ब चतुर्थी पर गणेशजी का व्रत एवं पूजा करने से गणेशजी प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से जातक के सारे विघ्न, परेशानियां, कुंडली दोष, शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट दूर होते हैं. यह भी पढ़ें : Kajari Teej 2024 Last Minute Mehndi Designs: कजरी तीज पर लास्ट मिनट मेहंदी डिजाइन्स से बढ़ाएं इस पर्व की शुभता (Watch Videos)
हेरंब संकष्टी चतुर्थी व्रत की मूल तिथि एवं पूजा मुहूर्त
भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी प्रारंभः 01.44 PM (22 अगस्त, 2024 गुरुवार)
भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी समाप्तः 10.38.44 AM (23 अगस्त, 2024 शुक्रवार)
गणेश जी की पूजा का मुहूर्तः 05.17 PM से 09.41 PM तक है.
चंद्रोदय कालः 08.51 PM
हेरंब संकष्टी चतुर्थी का व्रत गुरुवार 22 अगस्त 2024, गुरुवार को किया जाएगा.
चंद्रोदय की पूजा के कारण हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी व्रत 22 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा.
हेरंब संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान गणेश का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब मंदिर के सामने स्वच्छ चौकी रखकर उस पर पीले या लाल रंग का वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें और निम्न मंत्र का जाप करें.
‘गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः’
अब गणेशजी को दूर्वा, लाल पुष्प, गंध, अर्पित करें. भोग में लड्डू, मोदक एवं ताजे फल अर्पित करें. अब गणेशजी की आरती उतारें. इसके पश्चात संध्या काल में भी गणेश जी की पूजा-अर्चना होती है. इसके पश्चात चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा का विधान है. तत्पश्चात व्रत का पारण करें.