Gangaur Vrat 2024: अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है गणगौर व्रत! जानें इसका महत्व, मुहूर्त एवं पूजा-व्रत के नियम इत्यादि!
Gangaur Vrat 2024

गणगौर तीज सुहागन महिलाओं द्वारा रखा जानेवाला राजस्थान का सबसे कलरफुल और पारंपरिक पर्व है, हालांकि गणगौर का यह व्रत एवं पूजा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा में भी धूमधाम से मनाया जाता है. मूलतः यह पर्व सुहागन महिलाओं द्वारा पति की अच्छी सेहत एवं दीर्घायु हेतु किया जाता है, लेकिन कुंवारी कन्याएं भी मनपसंद वर के लिए यह व्रत रखती हैं. जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि गण गौरी यानी भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा की जाती है. इस दिन सुहागन महिलाएं आकर्षक पोशाक पहनती हैं, सोलह-श्रृंगार करती हैं, तथा पति की सलामती और दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं. शिवजी एवं माता-गौरी का संयुक्त पूजन-भजन करती हैं. मान्यता है कि सच्ची आस्था से पूजन करने से वे अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. इस माह 11 अप्रैल 2024, को गणगौरी व्रत-पूजन किया जाएगा, आइये जानें गणगौर व्रत-पूजन आदि के बारे में विस्तार से..

गणगौर व्रत का महत्व

गणगौर पूजा भगवान शिव-पार्वती को समर्पित है. इस दिन महिलाएं भगवान शिव एवं माता पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा की जाती है. गौरी तृतीया के नाम से पूजा जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सुहागन स्त्रियां यह व्रत अपने पति के अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं, तो कुंवारी लड़किया शिव जैसा पति पाने के लिए अविवाहित कन्याएं भी यह व्रत रखती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव के साथ सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए इस दिन पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं महिलाएं परिवार में सुख-समृद्धि और सुहाग की रक्षा हेतु पूजा करती हैं. यह भी पढ़ें : Gudi Padwa 2024: गुड़ी पड़वा कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है? जानें इस पर्व के संदर्भ में महत्वपूर्ण बातें..

गणगौर व्रत तिथि एवं शुभ मुहूर्त

चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया प्रारंभः 05.32 PM (10 अप्रैल 2024, बुधवार)

चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया समाप्तः 03.00 PM (11 अप्रैल 2024, गुरुवार)

उदया तिथि के अनुसार गणगौर व्रत 11 अप्रैल 2024 को मनाया जाएगा.

गणगौर पूजा का शुभ मुहूर्तः 06.29 AM से 08.24 AM तक

गणगौर व्रत पूजा विधि

चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान शिव एवं गौरी का ध्यान कर गणगौर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब नये वस्त्र धारण करें और सोलह श्रृंगार करें. अब भगवान शिव एवं देवी पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाएं. एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर प्रतिमा को यहां स्थापित करें. धूप दीप प्रज्वलित कर गणगौरी पूजा के मंत्र का उच्चारण करें.

या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

अब माता गौरी को सुहाग की सारी सामग्री अर्पित करें. शिव-पार्वती जी को चंदन, रोली और अक्षत अर्पित करें. माँ गौरी का पसंदीदा भोग मालपुआ अर्पित करें. गणगौर व्रत की पौराणिक कथा सुनें अथवा सुनाएं. इसके पश्चात देवी गौरी की आरती उतारें.

गणगौर व्रत-पूजा की पौराणिक कथा

एक बार भगवान शिव देवी पार्वती एवं महर्षि नारद के साथ पृथ्वी पर अवतरित हुए. वे जंगल में विचरण कर रहे थे. तभी पास के गांव की महिलाओं को यह खबर मिली. सभी महिलाएं प्रसन्न होकर शिव-पार्वती के लिए तमाम पकवान बनाकर उनके पास आयीं. उनका फूलों से स्वागत कर उनकी पूजा की. उन्हें स्वादिष्ट भोजन अर्पित किया. गांववासियों की भक्ति एवं भोजन से शिव-पार्वती ने प्रसन्न हुए. देवी पार्वती ने अपने सभी सुहाग निचली जाति की महिलाओं को आशीर्वाद के रूप में दे दिया. इसके बाद उन्होंने अपना अंगूठा काटकर अपना रक्त ऊंची जाति की महिलाओं को आशीर्वाद स्वरूप दे दिया. इसी कहानी को दर्शाने हेतु सुहागन स्त्रियां गणगौर का पर्व खुशी से मनाते हैं.