दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वास्तुकार कहे जानेवाले विश्वकर्मा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. इनकी पूजा देवशिल्पी (देवताओं के वास्तुकार) के रूप में की जाती है. मान्यतानुसार भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए महलों, हथियारों और भवनों का निर्माण किया था, इसीलिए वे सभी देवताओं में आदरणीय माने जाते हैं. विश्वकर्मा जयंती पर औजारों, मशीनों और दुकानों की पूजा-अर्चना का विधान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा जी सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्म-पुत्र हैं.
इस दिन घरों, दफ्तरों और कारखानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है, जो लोग इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, चित्रकारी, वेल्डिंग और मशीनरी कार्यों से जुड़े होते हैं, वे इस पूजा में जरूर सम्मिलित होते हैं.
भगवान विश्वकर्मा जन्म की कथाएं
भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर तमाम कथाएं प्रचलित हैं. कुछेक शास्त्रों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म थे. धर्म के पुत्र वास्तुदेव थे. वास्तुदेव और अंगिरसी को जो पुत्र हुआ उसका नाम विश्वकर्मा था. जबकि स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से हुआ था. भगवान विश्वकर्मा इन्ही भुवना ब्रह्मवादिनी के पुत्र हैं. महाभारत महाग्रंथ में इनके जन्म का उल्लेख मिलता है. इसके अलावा वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया.
भगवान विश्वकर्मा का महात्म्य
भगवान विश्वकर्मा जयंती को विश्वकर्मा पूजा, विश्वकर्मा दिवस अथवा विश्वकर्मा जयंती के नाम से पुकारा जाता है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था. विश्वकर्मा 'देवताओं के शिल्पकार', 'वास्तुशास्त्र के देवता', 'प्रथम इंजीनियर', 'देवताओं के इंजीनियर' और 'मशीनों के देवता' के नाम से भी जाने जाते हैं. विष्णु पुराण में उन्हें 'देव बढ़ई' भी कहा गया है. हिन्दू समाज में विश्वकर्मा पूजा का इसलिए भी महत्व है, क्योंकि मनुष्य को अगर शिल्पकला का ज्ञान न हो तो वह किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं कर पायेगा. न भव्य भवन बन सकेंगे, न ब्रिज, न गगनचुंबी इमारतें और ना ही अत्याधुनिक हथियार अथवा अंतरिक्ष में जाने योग्य स्पेश शिफ्ट इत्यादि. मान्यता है कि विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है.
कैसे करें पूजा
सर्वप्रथम स्नान करने के बाद घर अथवा फैक्ट्री में रखी हर तरह की मशीनरी वस्तुओं की साफ-सफाई करें. इसके पश्चात घर के मंदिर में विष्णुजी का मंत्र पढ़ते हुए पुष्प अर्पित करें, उन्हें अक्षत और रोली का तिलक लगायें. अब पुष्प से जल अर्पित करें और भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें. प्रतिमा के सामने आठ पंखुड़ियों वाले कमल की रंगोली बनाएं उसमें सात प्रकार के अनाज रखें. इस पर तांबे या मिट्टी के पात्र से गंगाजल का छिड़काव करें. इसके बाद सात स्थानों की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक दें. भगवान विश्वकर्मा को पुष्प अर्पित कर मन ही मन प्रार्थना करें कि आपके घर सुख, शांति एवं समृद्धि का वास हो. कुछ मन्नत मांगना चाहें तो मांग लें. अब पहले भगवान विश्वकर्मा एवं श्री विष्णु जी की आरती उतारें और प्रसाद को लोगों में वितरित करें.
भगवान विश्वकर्मा के दिव्य निर्माण
विश्वकर्माजी ने रावण की सोने की लंका, कृष्ण की द्वारिका नगरी, पांडवों की इंद्रप्रस्थ नगरी के अलावा घातक हथियारों मसलन भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड, देवराज इंद्र का वज्र, भगवान जगन्नाथ सहित बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति, दानवीर कर्ण के कुण्डल, पुष्पक विमान जैसी भव्य एवं चमत्कारिक वस्तुओं का निर्माण किया. वैज्ञानिक भी मानते हैं कि आज आकाश की ऊंचाइयों को छूने वाले हवाई जहाज पुष्पक विमान की तर्ज बनाये गये हैं. इसके अलावा कई वेशकीमती सिंहासन का भी निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.