Tulsi Vivah 2020 Messages in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) का पर्व मनाया जाता है, जिसे हरिप्रबोधिनी एकादशी (Hari Prabodhini Ekadashi) और देवोत्थान एकादशी (Devotthan Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. कई जगहों पर देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का पर्व मनाया जाता है तो कई जगहों पर एकादशी के अलगे दिन यानी द्वादशी को तुलसी विवाह का उत्सव (Tulsi Vivah Celebration) धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह विधिवत संपन्न कराया जाता है. शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है, जबकि तुलसी को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. तुलसी के पौधे का इस दिन दुल्हन की तरह श्रृंगार किया जाता है, फिर शालिग्राम रूपी श्रीहरि से उनका विवाह होता है.
हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में तुलसी विवाह का खास महत्व बताया जाता है. तुलसी-शालिग्राम विवाह के इस बेहद पावन अवसर पर आप अपनों को तुलसी विवाह के शानदार हिंदी मैसेजेस, वॉट्सऐप स्टिकर्स, कोट्स, फेसबुक ग्रीटिंग्स, जीआईएफ इमेजेस, वॉलपेपर्स और एसएमएस के जरिए शुभकामनाएं दे सकते हैं.
1- माना कि पुरुष बलशाली हैं,
पर जीतती हमेशा नारी है,
सांवरियां के छप्पन भोग पर,
सिर्फ एक तुलसी भारी है.
तुलसी विवाह की शुभकामनाएं
यह भी पढ़ें: Tulsi Vivah 2020: तुलसी-शालिग्राम विवाह के लिए तुलसी के गमले को कैसे सजाएं, देखें सजावट के आसान और पारंपरिक तरीके
2- सबसे सुंदर वो नजारा होगा,
दीवारों पर दीयों की माला होगी,
हर आंगन में तुलसी मां विराजेंगी,
और मां तुलसी का विवाह होगा.
तुलसी विवाह की शुभकामनाएं
3- आ जाओ भरते हैं खुशियों की झोली,
तैयार है तुलसी-शालिग्राम की डोली.
तुलसी विवाह की शुभकामनाएं
4- मंडप सजा है,
तुलसी विवाह रचाएंगे,
आप भी होना शामिल,
हम सब मिलकर,
तुलसी का विवाह कराएंगे.
तुलसी विवाह की शुभकामनाएं
5- आमंत्रित हैं आप सभी तुलसी विवाह में,
आना है आपको, न रहना किसी अन्य चाह में,
भेजी है हमने आपको शुभकामनाएं,
आओ सब मिलकर तुलसी विवाह कराएं.
तुलसी विवाह की शुभकामनाएं
तुलसी विवाह से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर उनका पतिव्रता धर्म तोड़ दिया, जिसके कारण वृंदा का पति जलंधर युद्ध में मारा गया. श्रीहरि द्वारा छले जाने और पति के वियोग से दुखी वृंदा ने उन्हें पत्थर होने का श्राप दिया और खुद सती हो गईं. जहां वृंदा ने अपना देह त्यागा, उसी स्थान पर तुलसी का पौधा उग गया. इस श्राप से मुक्त होने के लिए विष्णु जी शालिग्राम बन गए और उन्होंने माता तुलसी से विवाह किया. तब से तुलसी विवाह की यह परंपरा चली आ रही है.