Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 2020: ‘राष्ट्रप्रेम’ की ज्वाला सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के युवावस्था में पदार्पण के बाद ही प्रज्जवलित हुई थी, लेकिन धर्म, आध्यात्म, योग एवं ध्यान आदि के प्रति आस्था किशोरावस्था तक आते-आते दिखने लगी थी. उनकी अधिकांश बायोग्राफी में उनके इस मंशा की झलक मिलती है. किशोरावस्था में जब वे धर्म-आध्यात्म की गूढ़ बातें करते, प्रकृति के संसर्ग में जाने का इरादा जताते, हिमालय की कंदराओं में कुछ पल बिताने की बात करते तो परिवार के लोग चिंतित हो उठते थे कि कहीं सुभाष वैराग्य की ओर तो नहीं मुड़ रहे? आखिर क्यों था उनमें धर्म और आध्यात्म के प्रति इतना अनुराग? आइये जानते हैं...
देश आजाद होते ही हिमालय जाऊंगा
नेताजी सुभाषचंद्र बोस के खास सहयोगी एस.ए. अय्यर ने अपनी पुस्तक में नेताजी के बारे में काफी कुछ लिखा है. जिसमें उन्होंने इस बात का स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया है कि नेताजी अक्सर कहते थे कि, ‘देश को आजादी मिलने के बाद वे हिमालय की कंदराओं में जाकर ध्यान-भजन करेंगे. भगवान शिव की साधना-आराधना करेंगे, क्योंकि यही उनके जीवन का मुख्य ध्येय है.’ यह भी पढ़ें: Subhash Chandra Bose Jayanti 2020: सुभाषचंद्र बोस की संदिग्ध मृत्यु के 75 वर्ष, जांच आयोगों की रिपोर्ट में विभिन्नता क्यों? नेताजी का परिवार क्यों चाहता है उनकी अस्थियों का हो DNA टेस्ट?
आध्यात्म के प्रति बढ़ते रुझान से परिवार सशंकित रहता था
दरअसल, आध्यात्म एवं धर्म सुभाष चंद्र के जीवन का अनिवार्य और गहन तत्व था. बालपन से किशोरावस्था में कदम रखने के साथ ही उनका रुझान आध्यात्म की ओर होने लगा था. अवसर मिलते ही वे बाबा एवं साधु-संतों के संसर्ग में कुछ पल बिताने का मौका नहीं खोते थे. उनकी बदलती दिनचर्या से अक्सर घर-परिवार एवं उनके दोस्त इत्यादि संशकित रहते थे.
एकांत मिलते ही ध्यान-साधना में लीन हो जाते थे
अमूमन किशोरावस्था मौज-मस्ती का होता है, कल्पनाओं में उड़ान भरने का होता है, लेकिन सुभाषचंद्र को साधु-संतों का सानिध्य पाने की तड़प होती थी. एकांत पाने के लिए वे आम दुनिया से कट से जाते थे, उन्हें प्रकृति का संसर्ग भी बहुत प्रिय था. प्रकृति का सानिध्य मिलते ही वे ध्यान-साधना में लीन हो जाते थे. एकांत उन्हें इतना प्रिय लगता कि घर-परिवार के बीच रहते हुए भी वह अंधेरा कमरा तलाशते और वहां जाकर खुद को ध्यान-साधना में डुबो देते थे. यही नहीं विदेश प्रवास में भी देर-देर तक ध्यान-साधना करते, भगवद्गीता पढ़ते थे, इससे उन्हें शांति एवं आध्यात्मिक शक्ति मिलती थी. यह भी पढ़ें: Subhash Chandra Bose Jayanti 2020: सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जयंती, प्रियजनों को WhatsApp, Facebook, Instagram और Twitter के जरिए नेताजी के इन महान विचारों को भेजकर दें शुभकामनाएं
देर रात ध्यान-साधना करते थे
दिन के वक्त वे अक्सर जनता के बीच रहते, जगह-जगह भाषण देते, लेकिन मंच से विलग होते ही सबसे अलग होने की कोशिश करते. ऐसे में वे किसी के साथ समय शेयर नहीं करते ना ही किसी से बातचीत करना पसंद करते थे. रात्रि का भोजन करने के बाद वे देर रात तक ध्यान साधना करते. रात्रि के प्रहर का उनका ध्यान लंबा होता था. ध्यान और साधना की शक्ति थी कि वे देर रात दो-तीन बजे तक सोने के बाद सुबह उठते तो उनके चेहरे पर फूलों सी ताजगी और ऊर्जा देखने को मिलती थी. यह भी पढ़ें: Subhash Chandra Bose Jayanti 2020 Quotes: सुभाष चंद्र बोस के ये क्रांतिकारी विचार युवाओं के दिलों में जगाते हैं देशभक्ति का जज्बा
तंत्र-साधना पर विश्वास करते थे
सुभाषचंद्र मां काली के अनन्य भक्त थे. तंत्र-मंत्र की शक्ति को मानते और उस पर विश्वास करते थे. 1939 में एक बार जब उन्होंने गांधीजी के विरुद्ध आवाज उठाई थी तो उसके बाद वे एक रहस्यमयी बीमारी से ग्रस्त हो गये थे. तब उनका कहना था कि कांग्रेस के ही कुछ सदस्यों ने उन पर तंत्र-मंत्र का प्रयोग किया था. वे मानते थे कि मंत्रों में बहुत शक्ति होती है. मंत्रों की इस शक्ति का अहसास उन्हें तब हुआ, जब उऩ्होंने तंत्र-फिलास्फी पढ़ी. उनके अनुसार कुछ मंत्र तो शक्ति लेने और देने के मामले में वाकई अदभुत होते हैं. वे स्वयं को भगवान शिव का भी भक्त मानते थे. वे शिव जी की दिव्य शक्ति पर विश्वास करते थे. इस तरह कह सकते हैं कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारत माता के ही नहीं काली माता के भी अनन्य भक्त थे.