Magha Ganesh Jayanti 2019: हर साल माघ मास (Magha Month) के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को माघी गणेश जयंती (Maghi Ganesh Jayanti) मनाई जाती है. इसके अलावा भाद्रपद महीने में 10 दिनों तक महाराष्ट्र में धूमधाम से गणेशोत्सव (Ganesh Utsav) का पर्व मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन गणेश जयंती (Ganesh Jayanti) का पर्व मनाया जाता है. दरअसल, देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय भगवान गणेश ने भी भगवान शिव (Lord Shiva) और विष्णु (Lord Vishnu) की तरह अन्याय और अधर्म का सर्वनाश करने के लिए समय-समय पर आठ अवतार (Avatar) लिए. उनके इन आठ अवतारों को अष्टविनायक (Ashtvinayak) कहा जाता है.
इन आठों अवतारों के अनुरूप ही भगवान गणेश की पूजा अर्चना होती है. श्रीगणेश जी के ये 8 अवतार मनुष्य के 8 तरह के दोषों को दूर करते हैं. ये 8 दोष हैं काम, क्रोध, मद, लोभ, ईर्ष्या, मोह, अहंकार और अज्ञान. यह बहुत रोचक पहलू है कि गणेश जी का कौन सा अवतार मानव के किस दोष को दूर करता है. चलिए गणेश जयंती के इस खास मौके पर विस्तार से जानते हैं भगवान गणेश के 8 अवतारों को महिमा...
1- श्री वक्रतुंड
श्री गणेश जी का यह पहला अवतार माना जाता है. गणेश पुराण के अनुसार, यह अवतार उन्होंने मत्सरासुर नामक राक्षस और उसके दो पुत्रों सुंदरप्रिय और विषयप्रिय का संहार करने के लिए लिया था. वास्तव में मत्सरासुर ने शिव जी को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी. तब उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे दर्शन देते हुए कहा कि वह कोई भी वरदान मांग सकता है, तब मत्सरासुर ने शिव से महाशक्तियां हासिल कर लीं. इन शक्तियों के हासिल होते ही वह अतुलनीय बलवान होने के कारण निरंकुश हो गया.
इसके पश्चात उसने देवलोक ही नहीं, बल्कि संपूर्ण जगत में अत्याचार करना शुरु किया. उसके साथ ही उसके दोनों पुत्र भी पिता के साथ मिलकर लोगों को परेशान कर रहे थे. हारकर सभी देवी-देवता भगवान शंकर के पास गए. तब शंकर जी ने उन्हें बताया कि मत्सरासुर का वध करने के लिए श्री गणेश जी ने अवतार ले लिया है. आप सब मिलकर उनका आह्वान करें. तब देवी देवताओं के आह्वान पर श्रीगणेश ने वक्रतुंड धारण किया और मत्सरासुर को पराजित करते हुए उसके दोनों असुर पुत्रों का वध किया. बाद में मत्सरासुर श्रीगणेश जी का भक्त बन गया. यह भी पढ़ें: Magha Ganesh Jayanti 2019: क्या माघ महीने की चतुर्थी को हुआ था भगवान गणेश का जन्म? जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
2- एकदंत
महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नामक राक्षस की रचना की. उसने राक्षसगुरु शुक्राचार्य से शस्त्र एवं शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया. इससे वह इतना बलशाली हो गया कि उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर सारे देवी-देवताओं से युद्ध कर सबको परास्त कर दिया. देवी-देवताओं का कष्ट दूर करने के लिए श्रीगणेश जी ने एकदंत का अवतार लिया. उनके हाथ में पाश, फरसा, अंकुश और एक कमल का फूल था. शक्ति के दंभ में चूर मदासुर का वध कर श्रीगणेश ने देवी देवताओं को चिंतामुक्त रहने का वरदान दिया.
3- महोदर
जब श्रीगणेश के भाई कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया तो राक्षस गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर को देवताओं के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार कर लिया. मोहासुर के अत्याचार से देवी-देवताओं को राहत दिलाने के लिए महोदर के रूप में अवतार लेकर मोहासुर को ललकारा. मोहासुर चतुर राक्षस था, उसे पता था कि वह महाबलशाली श्री गणेश को युद्ध में परास्त नहीं कर सकता. तब उसने श्री गणेश के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
4- गजानन
एक बार कुबेर कैलाश पर्वत आते हैं तो पार्वती को देखते मोहित हो जाते हैं. उनकी कामेच्छा से लोभासुर का जन्म होता है. लोभासुर को भी दैत्यराज शुक्राचार्य शिक्षा देते हैं. शुक्राचार्य के सुझाव पर लोभासुर भगवान शंकर की कठिन तपस्या करता है और उनसे निर्भय होने का आशीर्वाद प्राप्त कर लेता है. इसके बाद वह निरंकुश होकर जनता को परेशान करना शुरु करता है, तब समस्त देवी देवता गणेश जी की स्तुति करते हैं. इसके पश्चात श्री गणेश गजानन का अवतार लेकर लोभासुर का अंत करते हैं.
5- लंबोदर
समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शंकर मोहिनी पर मोहित हो जाते हैं. उनके कामवासना से एक राक्षस क्रोधासुर का जन्म होता है. क्रोधासुर भगवान सूर्य की कठिन तपस्या करके उनसे दिव्य शक्ति प्राप्त कर लेता है. यह दिव्य शक्ति पाकर वह निरंकुश हो जाता है. जब तीनों लोकों में उसका अत्याचार बढ़ने लगता है तब देवता विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी की स्तुति करते हैं. इसके पश्चात श्री गणेश लंबोदर का अवतार लेते हैं. क्रोधासुर का उनके साथ घनघोर युद्ध होता है और अंततः क्रोधासुर मारा जाता है.
6- विकट
असुर जलंधर का संहार करने के लिए जब भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी वृंदा का स्त्रीत्व भंग किया. इससे कामासुर नामकर असुर पैदा हुआ. कामासुर ने त्रिलोक को अपने कब्जे में कर लिया. जब उससे अधर्म बढ़ने लगा तब देवी-देवताओं ने श्रीगणेश जी की स्तुति की. श्रीगणेश जी ने विकट के रूप में अवतार लेकर मोर पर सवार होकर कामासुर के साथ युद्ध कर उसका अंत किया. यह भी पढ़ें: Sankashti Chaturthi Vrat in Year 2019: संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वालों के जीवन से सारे कष्ट दूर करते हैं भगवान गणेश, देखें साल 2019 में पड़नेवाली तिथियों की लिस्ट
7- विघ्नराज
यह गणेश जी का सातवां अवतार माना जाता है. बताया जाता है कि यह अवतार उन्होंने ममासुर दैत्य का अंत करने के लिए लिया था.
8- धूम्रवर्ण
एक बार सूर्यदेव अचानक को छींक आ गयी, उस छींक से एक दैत्य अहम का जन्म हुआ. गुरु शुक्राचार्य से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वह अहंता सुर हो गया. उसने श्री गणेश की कठोर तपस्या कर महाशक्तिशाली बन गया, लेकिन जब उसका अत्याचार बढने लगा तब श्री गणेश जी ने धूम्रवरण का अवतार लेकर अहंतासुर का वध कर दिया.