Lal Bahadur Shastri 54th Death Anniversary 2020: गुदड़ी के लाल कहे जानेवाले लाल बहादुर शास्त्री जी ने चपरासी से थप्पड़ खाकर भी क्यों लगाया गले? जानें जिंदगी से जुड़ी कुछ प्रेरक बातें
लाल बहादुर शास्त्री (Photo Credits: Getty)

Lal Bahadur Shastri 54th Death Anniversary 2020: पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री अपनी सादगी, सौहार्दता, देशभक्ति और ईमानदारी के कारण आज भी जन-जन में लोकप्रिय हैं. शास्त्री जी ने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 11 जनवरी 1966 में विवादास्पद तरीके से उनकी मृत्यु हो गई. मात्र 1 साल 7 महीना 2 दिन के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल के बावजूद देश का सर्वोत्तम एवं सशक्त प्रधानमंत्री का तमगा आज भी उन्हीं के नाम है. शास्त्री जी की जीवन शैली और कार्य शैली में ज्यादा फर्क नहीं था. वे जितनी सादगी भरा जीवन घर में जीते थे, प्रधानमंत्री हाउस में भी उतने ही सरल थे. राजनीतिक जीवन में उनके द्वारा लगाए दो नारे ‘जय जवान जय किसान’ और ‘मरो नहीं, मारो!’ उनके प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व को उजागर करते हैं. शास्त्री जी जिस गरीबी और संघर्ष से जूझते हुए प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे, लोगों ने उन्हें ‘गुदड़ी का लाल’ नाम दिया. लाल बहादुर शास्त्री के सार्वजनिक, राजनीतिक और निजी जीवन से जुड़ी कई घटनाओं की आज भी मिसाल दी जाती है. आइए शास्त्री जी की 54वीं पुण्य-तिथि पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ प्रेरक पलों को शेयर करते हैं. यह भी पढ़ें: Lal Bahadur Shastri Jayanti 2019: देश जीता-दिल जीता किंतु जान हार गया! शास्त्री षडयंत्र का शिकार न होते तो पीओके ही नहीं लाहौर भी हमारा होता!

शास्त्रीजी जाति-पाति पर विश्वास नहीं करते थे

लाल बहादुर शास्त्री ने हमेशा से जात-पांत का विरोध किया. शास्त्री जी के पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और उनका खुद का नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था. लेकिन राजनीति में आने के बाद शास्त्री जी ने अपने नाम के साथ ‘श्रीवास्तव’ उपनाम का इस्तेमाल कभी भी नहीं किया. ‘शास्त्री’ जी उपाधि उन्हें काशी विद्यापीठ से मिली थी और जीवन पर्यंत उन्होंने इसी उपनाम को अपने साथ रखा. हालांकि उन्होंने इसकी वजह कभी नहीं बताई.

मंत्री बनने के बाद चपरासी को गले लगाया

जिन दिनों शास्त्री जी वाराणसी के हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में हाई स्कूल में पढ़ रहे थे, गलती से उनके हाथ से एक बीकर गिर कर टूट गया. स्कूल के चपरासी देवीलाल ने देख लिया. उसने शास्त्री जी को एक जोरदार थप्पड़ ज़ड़ दिया. जब शास्त्री जी रेल मंत्री बने तो वर्ष 1954 में एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज गए हुए थे. शास्त्री जी को सामने देख चपरासी देवीलाल ने उन्हें पहचान लिया और वह वहां से हटने लगा, शास्त्री जी की नजर देवीलाल पर पड़ी, उन्होंने देवीलाल को मंच पर बुलवाया और उसे गले से लगा लिया.

नदी तैर कर जाते थे स्कूल

लाल बहादुर शास्त्री का बचपन काफी गरीबी और अभावों के बीच गुजरा. तमाम मुश्किलें उठाकर वह हाई स्कूल की पढाई पूरी कर सके थे. बचपन में अकसर उन्हें नदी तैर कर स्कूल जाना पड़ता था, क्योंकि नाव वाले को रोज-रोज किराया देना उनके लिए संभव नहीं था. शास्त्री जी के पिता इतने सक्षम नहीं थे कि वे उनकी शिक्षा पूरी करवा पाते. उन्होंने शास्त्री जी को हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के लिए वाराणसी में उनके चाचा के पास भेज दिया. चाचा का घर स्कूल से कई मील दूर था, लेकिन शास्त्रीजी बिना उफ! किये प्रतिदिन मीलों पैदल नंगे पांव चलकर स्कूल जाते और आते थे.

शास्त्रीजी की ईमानदारी के कायल थे नेहरूजी भी

साल 1956, लाल बहादुर शास्त्री रेल मंत्री थे, उन्हीं दिनों अरियालूर रेल दुर्घटना हुई, जिसमें 114 लोग मारे गए. शास्त्री जी ने इस दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री नेहरू को भेज दिया. नेहरू जी ने शास्त्री जी का इस्तीफा लेते हुए संसद में बताया कि वह इस्तीफा इसलिए ले रहे हैं कि यह एक उदाहरण बने. वरना इस रेल दुर्घटना के लिए शास्त्री जी किंचित जिम्मेदार नहीं हैं. शास्त्री जी हमेशा से ईमानदार रहे हैं और आगे भी रहेंगे. हमें उन पर नाज है.

प्रधानमंत्री होकर पहनना पड़ा फटा कुर्ता

लाल बहादुर शास्त्री आजाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का जीवन जितनी शान-ओ-शौकत से गुजरा, शास्त्री जी उतने ही जमीनी शख्सियत माने जाते थे. एक बार जब शास्त्री जी को लोकसभा में जाना था, लेकिन घर से निकलते हुए उन्होंने देखा कि उनका कुर्ता फटा हुआ था. कुर्ता सिलवाने का वक्त नहीं था. शास्त्री जी ने पत्नी ललिता जी से कहा कि वे कुर्ता के ऊपर कोट पहन लेंगे तो फटा हुआ हिस्सा ढक जाएगा. इसी तरह 1965 का युद्ध जीतने के बाद शास्त्री जी को पाकिस्तान से समझौते के लिए ताशकंद जाना था. कोट का छोटा सा हिस्सा फटा हुआ था. लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पास नया कोट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने फटे कोट का रफू करवाया और वही पहनकर ताशकंद गए. जहां से उनकी मृत देह वापस आई.

प्रधानमंत्री बनने के पश्चात लाल बहादुर शास्त्री को सरकारी गाड़ी मिली थी, लेकिन शास्त्री जी ने कभी भी उस गाड़ी का इस्तेमाल निजी कार्य के लिए नहीं किया. लेकिन एक बार उनके बेटे ने गाड़ी का उपयोग किया. यह बात जब शास्त्री जी को पता चली तो उन्होंने बेटे को अगाह करते हुए उस दिन गाड़ी पर होने वाला खर्चा सरकारी खजाने में जमा करवा दिया. इसके बाद निजी कार्यों के लिए पत्नी की सलाह पर शास्त्री जी ने फिएट कार खरीदने का फैसला किया. उन दिनों फिएट कार की कीमत 12 हजार रूपये थी. लेकिन शास्त्री जी के खाते में मात्र 7 हजार रुपये थे. अंततः पंजाब नेशनल बैंक से 5 हजार रूपये का कर्ज लेने के बाद ही वह फिएट कार खरीद सके थे.